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सांविधानिक विधि

आवारा कुत्ते का मामला

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 22-Aug-2025

विषय: 'शहर आवारा कुत्तों से परेशान, बच्चे चुका रहे कीमत' | SMW(C) संख्या 5/2025 

"नगरपालिका अधिकारियों को प्रत्येक वार्ड में आवारा कुत्तों के लिये भोजन के लिये निर्धारित स्थान बनाने का निदेश दिया गया, तथा जनता की असुविधा और सुरक्षा जोखिम को रोकने के लिये सड़कों पर कुत्तों को भोजन खिलाने पर प्रतिबंध लगाया गया।" 

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया नेयह निर्णय दिया है कि सार्वजनिक स्थानों पर आवारा कुत्तों को खाना खिलाना प्रतिबंधित है और यह केवल नगरपालिका अधिकारियों द्वारा बनाए गए निर्दिष्ट भोजन स्थलों पर ही किया जाना चाहिये 

  • उच्चतम न्यायालय ने IN RE : 'आवारा पशुओं से परेशान शहर, बच्चों को चुकानी पड़ रही कीमत' | SMW(C) संख्या 5/2025 (2025)के मामले में यह निर्णय दिया । 

IN RE: 'आवारा पशुओं से परेशान शहर, बच्चों को चुकानी पड़ी कीमत' (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • उच्चतम न्यायालय ने 28 जुलाई, 2025 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित "शहर आवारा कुत्तों से परेशान और बच्चे कीमत चुका रहे हैं (City hounded by strays and kids pay price)" शीर्षक वाली खबर पर स्वतः संज्ञान लिया। 
    • यह मामला शुरू में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की दो न्यायाधीशों वाली पीठ के समक्ष शुरू हुआ, जिन्होंने 11 अगस्त, 2025 को दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आवारा कुत्तों के संबंध में निदेश पारित किये 
  • बाद में यह मामला न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ को स्थानांतरित कर दिया गया, जब अधिवक्ताओं ने मुख्य न्यायाधीश के समक्ष उल्लेख किया कि 11 अगस्त, 2025 के निदेश पूर्ववर्ती उच्चतम न्यायालय के आदेशों के विपरीत हैं। 
    • पशु प्रेमियों और गैर सरकारी संगठनों ने 11 अगस्त के आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि सभी आवारा कुत्तों के लिये आश्रय सुविधाएँ अपर्याप्त हैं और बड़े पैमाने पर उन्हें हटाने से पशुओं को मार दिया जा सकता है। 
  • सॉलिसिटर जनरल ने चिंताजनक आंकड़े प्रस्तुत किये, जिसमें बताया गया कि भारत में प्रतिवर्ष लगभग 3.7 मिलियन कुत्ते के काटने के मामले सामने आते हैं (प्रतिदिन लगभग 10,000), तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, प्रतिवर्ष रेबीज से संबंधित 20,000 मृत्यु होती हैं। 
    • इस मामले ने लोक सुरक्षा चिंताओं और पशु कल्याण अधिकारों के बीच तनाव को उजागर किया, जिसमें नगरपालिका अधिकारियों की मौजूदा पशु जन्म नियंत्रण (Animal Birth Control (ABC)) नियमों को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफलता के लिये आलोचना की गई। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • पूर्व आदेश: 11 अगस्त 2025 
    • तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि आवारा कुत्तों की समस्या के प्रति अधिक "समग्र दृष्टिकोण" अपनाने के लिये आदेश में संशोधन की आवश्यकता है। न्यायालय ने माना कि स्थानीय नगरपालिका अधिकारी वर्षों से अपने सांविधिक कर्त्तव्यों का पालन करने में असफल रहे हैं, और कहा कि "सरकार ने कुछ नहीं किया है, स्थानीय निकायों ने कुछ नहीं किया है।" 
    • न्यायालय ने लोक सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन की आवश्यकता को स्वीकार किया और कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर आवारा कुत्तों को अनियमित रूप से भोजन दिये जाने से आम नागरिकों को परेशानी हो रही है और अप्रिय घटनाएँ हो रही हैं। 
  • अंतिम आदेश: 22 अगस्त 2025 
    • उच्चतम न्यायालय ने 11 अगस्त को जारी उन निदेशों पर रोक लगा दी, जिनमें आवारा कुत्तों को छोड़ने पर रोक लगाई गई थी, तथा अखिल भारतीय स्तर पर लागू होने वाले नए व्यापक निदेश पारित किये 
      • न्यायालय ने आदेश दिया कि नगरपालिका प्राधिकारियों द्वारा पकड़े गए आवारा कुत्तों की नसबंदी की जाए, उन्हें कृमिनाशक दवा दी जाए, टीका लगाया जाए, तथा उन्हें उसी क्षेत्र में वापस छोड़ दिया जाए जहाँ से उन्हें पकड़ा गया था, सिवाय उन कुत्तों के जो रेबीज से संक्रमित हों, जिनमें रेबीज संक्रमण का संदेह हो, या जो आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित करते हों। 
    • न्यायालय ने सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर आवारा कुत्तों को खाना खिलाने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है और नगर निगम अधिकारियों को निदेश दिया है कि वे हर वार्ड में उचित नोटिस बोर्ड लगाकर खाने के लिये निर्धारित स्थान बनाएँ। इस प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों पर संबंधित विधिक ढाँचे के अधीन विधिक कार्रवाई की जाएगी। 
    • नगर निगम अधिकारियों को उल्लंघनों की सूचना देने के लिये समर्पित हेल्पलाइन बनाने तथा यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया कि इन निदेशों को लागू करने वाले अधिकारियों को कोई बाधा न पहुँचे 
      • न्यायालय ने संबंधित पक्षकारों पर वित्तीय दायित्त्व अधिरोपित किये, जिसके अधीन व्यक्तिगत कुत्ता प्रेमियों को 25,000 रुपए और गैर सरकारी संगठनों को 2 लाख रुपए न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा करने को कहा गया, अन्यथा वे कार्यवाही में आगे भाग नहीं ले सकेंगे। 

आवारा कुत्तों के मामले में क्या निदेश जारी किये गए हैं? 

  • नगरपालिका अधिकारियों को 11 अगस्त के आदेश के अनुसार कुत्तों के लिये आश्रय स्थल और पाउंड्स (shelters and pounds) का निर्माण निरंतर जारी रखना होगा 
  • आवारा कुत्तों की नसबंदी, टीकाकरण और उन्हें उसी क्षेत्र में वापस छोड़ना होगा (पागल/आक्रामक कुत्तों को छोड़कर)। 
  • प्रत्येक वार्ड में भोजन के लिये विशेष स्थान बनाए जाएंगे, जिन पर नोटिस बोर्ड लगाए जाएंगे - सड़क पर भोजन कराना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। 
  • उल्लंघनों की रिपोर्ट करने के लिये हेल्पलाइन स्थापित की जाएंगी। 
  • किसी भी प्रकार की बाधा की अनुमति नहीं है उल्लंघनकर्त्ताओं पर लोक कर्त्तव्य में बाधा डालने के लिये अभियोजन चलाया जाएगा। 
  • भागीदारी जारी रखने के लिये व्यक्तिगत कुत्ता प्रेमियों को 25,000 रुपए तथा गैर सरकारी संगठनों को 2 लाख रुपए जमा करने होंगे। 
  • गोद लेने की प्रक्रिया स्थापित की गई, जिसमें यह सुनिश्चित करना होगा कि गोद लिए गए कुत्तों को पुनः सड़कों पर न छोड़ा जाए। 
  • नगर निगम के अधिकारियों को संसाधन विवरण के साथ अनुपालन शपथपत्र दाखिल करना होगा।  

    इसमें क्या विधिक प्रावधान सम्मिलित हैं? 

    अनुच्छेद 21 आवारा कुत्तों के जीवन और स्वास्थ्य के लिये मानव अधिकार के रूप में। 

    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को प्रत्याभूत करता है, जिसमें गरिमा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के साथ जीने का अधिकार सम्मिलित है। 
      • आवारा कुत्तों के संदर्भ में, अनुच्छेद 21 नागरिकों को हमलों के भय के बिना सार्वजनिक स्थानों पर स्वतंत्र रूप से घूमने के अधिकार की रक्षा करता है, तथा विशेष रूप से बच्चों और बुजुर्गों जैसे कमजोर समूहों के लिये सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करता है। 
    • उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि "शिशुओं और छोटे बच्चों को किसी भी कीमत पर रेबीज का शिकार नहीं होना चाहिये" और बच्चों को "आवारा कुत्तों द्वारा काटे जाने के भय के बिना स्वतंत्र रूप से घूमना चाहिये।" 
      • इससे यह बात पुष्ट होती है कि अनुच्छेद 21 अनियंत्रित आवारा कुत्तों की आबादी से उत्पन्न खतरों को समाप्त करने के लिये राज्य को कार्रवाई करने का आदेश देता है। 
    • अनुच्छेद 21 राज्य पर मानव जीवन और गरिमा के अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित करने का सकारात्मक दायित्व अधिरोपित करता है। नगरपालिका अधिकारियों द्वारा प्रभावी पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रमों को लागू करने और आवारा पशुओं का प्रबंधन करने में विफलता इस सांविधानिक कर्त्तव्य का उल्लंघन है। 
    • मानव अधिकारों और पशु कल्याण के बीच संतुलन यह दर्शाता है कि जहाँ पशुओं को क्रूरता से संरक्षण मिलना चाहिये, वहीं संविधान के अधीन मानव जीवन और सुरक्षा भी सर्वोपरि है। 

    पशु अधिकारों से संबंधित विधि क्या हैं? 

    • भारत का संविधान, 1950 
      • भारतीय संविधान के अनुसार, देश के प्राकृतिक संसाधनों, जैसे वन, झील, नदियाँ और जानवरों की देखभाल और संरक्षण करना सभी का उत्तरदायित्त्व है। 
      • तथापि, इनमें से कई प्रावधानराज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (DPSP)औरमौलिक कर्त्तव्योंमें आते हैं - जिन्हें तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि सांविधिक समर्थन न हो। 
      • अनुच्छेद 48 में कहा गया हैकि राज्य पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन करने तथा देश के वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा करने का प्रयास करेगा। 
      • अनुच्छेद 51() में कहा गया हैकि भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह “वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और संवर्धन करे तथा जीवित प्राणियों के प्रति दया का भाव रखे।”  
      • इसके अतिरिक्त, राज्य और समवर्ती सूची मेंपशु अधिकारों के बारे में निम्नलिखित विषय बताए गए हैं । 
      • राज्य सूची के प्रविष्टि 14 के अनुसार, राज्यों को "पशुधन को संरक्षित करने, बनाए रखने और सुधारने, पशु रोगों को रोकने और पशु चिकित्सा प्रशिक्षण और अभ्यास को लागू करने" का अधिकार दिया गया है।  
      • समवर्ती सूची में ऐसे विषय सम्मिलित हैं जिन पर केंद्र एवं राज्य दोनों ही विधि बना सकते हैं।  
        • पशु क्रूरता निवारण”, जिसका उल्लेख प्रविष्टि 17 में किया गया है। 
        • जंगली जानवरों और पक्षियों का संरक्षण” जिसका उल्लेख प्रविष्टि 17ख के रूप में किया गया है।  
    • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS): 
      • भारतीय न्याय संहिता, 2023 भारत की आधिकारिक आपराधिक संहिता हैजो आपराधिक विधि के सभी मूलभूत पहलुओं को सम्मिलित करती है। 
      • भारतीय न्याय संहिता कीधारा 325 में पशुओं को मारने, विष देने, विकलांग बनाने या निरुपयोगी कर देने जैसे सभी क्रूरतापूर्ण कृत्यों के लिये दण्ड का प्रावधान है।  
    • पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960 : 
      • यह केंद्रीय विधि आवारा कुत्तों सहित पशुओं के प्रति क्रूरता पर प्रतिबंध लगाता है। 
      • इसमें कहा गया है कि आवारा कुत्तों की आबादी के प्रबंधन के लिये एकमात्र स्वीकार्य तरीका मानवीय नसबंदी कार्यक्रम है। 
      • इस अधिनियम का उद्देश्य पशुओं को अनावश्यक पीड़ा या कष्ट पहुँचाने से रोकना तथा पशुओं के प्रति क्रूरता की निवारण से संबंधित विधियों में संशोधन करना है। 
      • अधिनियम में "पशु" की परिभाषा मनुष्य के अतिरिक्त किसी भी जीवित प्राणी के रूप में दी गई है। 
    • पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2001 और 2023: 
      • आवारा कुत्तों की जनसंख्या प्रबंधन के लिये दिशानिर्देश प्रदान करने हेतु पशु जन्म नियंत्रण अधिनियम के अधीन 2001 पशु जन्म नियंत्रण नियमों को अधिसूचित किया गया था।  
      • 2023 में, अद्यतन पशु जन्म नियंत्रण नियम लागू किये गए, जिससे आवारा कुत्तों को मारने की बजाय उनकी नसबंदी के लिये अनिवार्यता को और मजबूत किया गया। 
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: 
      • इस अधिनियम का उद्देश्य पर्यावरण और पारिस्थितिकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये देश में सभी पौधों और पशु प्रजातियों की सुरक्षा करना है। 
      • यह अधिनियम लुप्तप्राय जानवरों के शिकार पर प्रतिबंध लगाता है, साथ ही वन्यजीव अभयारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों और चिड़ियाघरों की स्थापना का प्रावधान करता है।  
    • राज्य/नगरपालिका विधियों के साथ टकराव: 
      • कुछ राज्य और स्थानीय प्राधिकारियों ने आवारा कुत्तों को मारने की अनुमति देने वाली विधि या नीतियाँ बनाई थीं, जो केंद्रीय पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (PCA Act) के विपरीत थीं।  
      • इसके परिणामस्वरूप विभिन्न उच्च न्यायालयों में परस्पर विरोधी निर्णयों के साथ विधिक लड़ाइयाँ हुईं।