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सिविल कानून
वाद करने का स्थान
«27-May-2025
परिचय
सिविल वादों को संस्थापित करने हेतु उपयुक्त अधिकारिता का निर्धारण प्रक्रियात्मक विधि का एक मूलभूत अंग है, जो न्याय के सुव्यवस्थित प्रशासन को सुनिश्चित करता है। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) में इस विषय में विस्तृत उपबंध है, जो यह नियंत्रित करते हैं कि विधिक कार्यवाही कहाँ आरंभ की जा सकती है, तथा इसमें सुविधा और न्यायिक दक्षता के बीच संतुलन स्थापित किया गया है। ये उपबंध अनुचित मंच चयन (forum shopping) को रोकते हैं एवं स्पष्ट प्रादेशिक अधिकारिता निदेशों के माध्यम से न्याय प्राप्ति की पहुँच सुनिश्चित करते हैं।
न्यायालय पदानुक्रम का मूल सिद्धांत (धारा 15)
- प्रत्येक वाद उस निम्नतम श्रेणी के न्यायालय में संस्थित किया जाएगा जो उसका विचारण करने के लिये सक्षम है।
- यह सिद्धांत न्यायिक संसाधनों के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करता है और उच्चतर न्यायालयों को उन मामलों की सुनवाई से बचाता है, जिन्हें अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा निपटाया जा सकता है। न्यायालय की योग्यता का निर्धारण उसके प्रादेशिक अधिकारिता एवं विधि द्वारा विनिर्दिष्ट वित्तीय सीमा के आधार पर किया जाता है।
अचल संपत्ति विवाद (धारा 16)
- अचल संपत्ति से संबंधित वाद उस न्यायालय में संस्थित किया जाना चाहिये जिसकी स्थानीय सीमा के भीतर संपत्ति स्थित है, सिवाय प्रतिवादी के द्वारा या निमित्त धारित संपत्ति के संबंध में अनुतोष की या ऐसे संपत्ति के प्रति किये गए दोष के लिये प्रतिकर की अभिप्राप्ति के लिये वाद, जहाँ चाहा गया अनुतोष उसके स्वीय आज्ञानुवर्तन के द्वारा पूर्ण रूप से अभिप्राप्त किया जा सकता है।
- अचल संपत्ति से संबंधित वाद उस स्थान पर दायर किये जाने चाहिये जहाँ संपत्ति स्थित है, जिसमें प्रत्युद्धरण, विभाजन, बंधक मामले और प्रतिकर के दावे सम्मिलित हैं। यद्यपि, जब अनुतोष के लिये केवल प्रतिवादी के व्यक्तिगत अनुपालन की आवश्यकता होती है, तो वादी को यह विकल्प प्राप्त होता है कि वह वाद संपत्ति की स्थिति वाले अधिकारिता प्राप्त न्यायालय में या प्रतिवादी के निवास स्थान के न्यायालय में दायर कर सकता है।
उदाहरण : दिल्ली की भूमि पर निर्माण के विरुद्ध व्यादेश के लिये, दिल्ली (संपत्ति का स्थान) या प्रतिवादी के निवास शहर में वाद संस्थित किया जा सकता है।
बहु-न्यायालयीय संपत्ति और अनिश्चित सीमाएँ (धारा 17-18)
- एकाधिक अधिकारिताओं में स्थित संपत्ति किसी भी सक्षम न्यायालय में वाद चलाने की अनुमति देती है; अनिश्चित अधिकारिता किसी भी संभावित न्यायालय को अनिश्चितता अभिलिखित करने के पश्चात् आगे बढ़ने की अनुमति देता है।
- जब संपत्ति विभिन्न न्यायालयों के क्षेत्रों में स्थित हो, तो किसी भी भाग पर अधिकारिता रखने वाले किसी भी न्यायालय में वाद संस्थित किया जा सकता है, परंतु यह तब जबकि संपूर्ण दावा उस वाद की विषय-वस्तु के मूल्य की दृष्टि से ऐसे न्यायालय द्वारा संज्ञेय है। अनिश्चित अधिकारिता की सीमाओं के लिये, कोई भी सक्षम न्यायालय अनिश्चितता अभिलिखित कर सकता है और सीमित अपीलीय हस्तक्षेप के साथ आगे बढ़ सकता है।
व्यक्तिगत क्षति और जंगम संपत्ति के दावे (धारा 19)
- किसी व्यक्ति या चल संपत्ति के साथ किये गए दोषों से संबंधित प्रतिकर के वादों के लिये अधिकारिता या तो उस स्थान पर होता है जहाँ दोष हुआ हो या जहाँ प्रतिवादी निवास करता है/कार्य करता है।
उदाहरण : यदि ‘A’ (दिल्ली निवासी) मुम्बई प्रकाशन के माध्यम से ‘B’ को मानहानि करता है, तो ‘B’ या तो मुम्बई (जहाँ दोष हुआ हो) या दिल्ली (प्रतिवादी का निवास) में वाद संस्थित कर सकता है।
सामान्य अधिकारिता नियम (धारा 20)
- अन्य वादों के लिये सामान्य नियम - अधिकारिता वहाँ निहित है जहाँ प्रतिवादी निवास करता है/कार्य करता है, जहाँ कोई भी प्रतिवादी निवास करता है (शर्तों के साथ), या जहाँ वाद-हेतुक उत्पन्न होता है।
- विशिष्ट उपबंधों के अंतर्गत न आने वाले वादों के लिये:
- एकल प्रतिवादी: जहाँ प्रतिवादी निवास करता है, काम करता है, या कारबार करता है।
- एकाधिक प्रतिवादी: जहाँ कोई भी प्रतिवादी निवास करता है (न्यायालय की अनुमति या गैर-निवासियों की उपमति (मौन स्वीकृति) से)।
- वाद-हेतुक: जहाँ यह पूर्णतः या आंशिक रूप से उत्पन्न होता है।
उदाहरण : चेन्नई परिदान के लिये मुंबई में ‘A’ (शिमला) और ‘B’ (दिल्ली) के बीच संविदा निष्पादित की गई - इन चार शहरों में से किसी में भी वाद संभव है।
कॉर्पोरेट संस्थाएँ : स्थानीय वाद-हेतुक के लिये मुख्य कार्यालय या अधीनस्थ कार्यालयों में कारोबार करने वाली मानी जाएंगी।
अधिकारिता संबंधी आक्षेप और सुरक्षा उपाय (धारा 21-23)
आक्षेप विचारण न्यायालय में शीघ्र उठाया जाना चाहिये; जहाँ एक से अधिक न्यायालयों को अधिकारिता प्राप्त हो, वहाँ अंतरण हेतु आवेदन किया जा सकता है; डिक्री की वैधता पर केवल अनुचित वाद स्थान के आधार पर पृथक् वाद द्वारा आक्षेप नहीं किया जा सकता।
प्रमुख उपबंध:
- त्याग (छूट) का नियम: अधिकारिता संबंधी आक्षेप यथाशीघ्र उठाया जाना चाहिये, यथासंभव सर्वप्रथम अवसर पर और विवाद्यक के निपटारे से पूर्व।
- अंतरण का अधिकार : जब एक से अधिक अधिकारिता विद्यमान हों तो प्रतिवादी उचित न्यायालय में अंतरण के लिये आवेदन कर सकते हैं।
- संपार्श्विक आपत्ति का निषेध: यदि केवल अनुचित वाद स्थान को आधार बनाकर डिक्री की वैधता को चुनौती दी जा रही हो, तो उस आधार पर पृथक् वाद स्वीकार्य नहीं होगा।
- आवेदन प्रक्रिया : अंतरण संबंधी आवेदन उस सामान्य अपील न्यायालय, उच्च न्यायालय, अथवा उपयुक्त उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, जो न्यायालयों के अनुक्रम (hierarchy) के अनुसार न्यायिक अधिकारिता रखता हो।
प्रशासनिक अंतरण शक्तियां (धारा 24-25)
उच्च न्यायालय/जिला न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों के बीच वादों को अंतरित कर सकते हैं; उच्चतम न्यायालय राज्यों के उच्च न्यायालयों के बीच वादों को अंतरित कर सकते है।
उच्च न्यायालय की शक्तियां (धारा 24):
उच्च न्यायालय वादों को अधीनस्थ न्यायालयों को अंतरित कर सकते हैं या उनके विचारार्थ मामलों को वापस ले सकते हैं, जिससे कुशल मामले का निपटान और उचित प्रशासन सुनिश्चित हो सके।
उच्चतम न्यायालय की शक्तियां (धारा 25):
न्याय के लिये आवश्यक होने पर विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों के बीच वादों को स्थानांतरित किया जा सकता है। आवेदनों के लिये शपथपत्र की आवश्यकता होती है, और तुच्छ आवेदनों के परिणामस्वरूप ₹2,000 तक का प्रतिकर आदेशित किया जा सकता है।
मुख्य व्यावहारिक दिशा-निर्देश
- संपत्ति संबंधी विवाद : सामान्यतः उसी स्थान की न्यायालय में दायर करें जहाँ संपत्ति स्थित हो, जब तक कि केवल व्यक्तिगत अनुतोष की मांग न हो।
- व्यक्तिगत दोषों के लिये : वादी प्रतिवादी के निवास स्थान अथवा दोष के स्थान में से किसी एक को चुन सकता है।
- वाणिज्यिक संबंधी विवाद : कई विकल्प उपलब्ध हैं - प्रतिवादी का निवास स्थान, वाद-हेतुक उत्पन्न होने का स्थान आदि।
- प्रारंभिक आक्षेप : अधिकारिता संबंधी विवाद्यक यथाशीघ्र उठाएँ या उनका परित्याग माना जा सकता है।
- अंतरण विकल्प : जब एक से अधिक न्यायालयों को अधिकारिता हो तो अंतरण के उपबंधों का प्रयोग करें।
प्रक्रियागत सर्वोत्तम अभ्यास
- वाद दायर करने से पूर्व अधिकारिता का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करें जिससे वाद खारिज होने से बचा जा सके।
- जब कई विकल्प विद्यमान हों, तो सुविधा के तत्त्वों पर विचार करें।
- अधिकारिता पर आक्षेप प्रथम अवसर पर ही उठाएँ।
- अंतरण आवेदन को उचित एवं युक्तिसंगत आधारों से समर्थन दें।
- यह समझें कि यदि अधिकारिता की त्रुटियों पर समय रहते आक्षेप न की जाए, तो उन्हें त्याज्य (waivable) माना जा सकता है।
निष्कर्ष
अधिकारिता संबंधी रूपरेखा एक संतुलित प्रणाली का प्रतिनिधित्व करती है, जो न्यायिक प्रशासन में विधिक निश्चितता एवं व्यावहारिक सुविधा को प्राथमिकता प्रदान करती है। यह नियम इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि वाद-निर्णय उपयुक्त मंचों (forums) में ही संपन्न हो, तथा अधिकारिता के दुरुपयोग को रोका जा सके। प्रारंभिक चरण में आक्षेप उठाने की अनिवार्यता तथा अपीलीय हस्तक्षेप की सीमितता अधिकारिता संबंधी निर्धारणों में अंतिमता को प्रोत्साहित करती है, जिससे न्याय तक सुलभ पहुँच सुनिश्चित करने के मूलभूत उद्देश्य की पूर्ति उचित मंच चयन के माध्यम से होती है।