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आपराधिक कानून
किशोर की आयु का अवधारण
«02-Jun-2025
परिचय
किसी व्यक्ति की आयु, बालकों की देखरेख और संरक्षण अधिनियम, 2015 ("न्याय किशोर अधिनियम") के अधीन यह अवधारण करने में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कारक है कि वह व्यक्ति किशोर है या नहीं। आयु का सटीक अवधारण न केवल लागू होने वाले प्रक्रिया-संबंधी संरक्षणों को प्रभावित करता है, अपितु आपराधिक दायित्त्व की सीमा और पुनर्वास की दृष्टिकोण को भी प्रभावित करता है। किशोर न्याय अधिनियम की धारा 94 ऐसे अवधारण के लिये एक संरचित विधि को उपबंधित करती है, जिसमें दस्तावेज़ी साक्ष्य को प्राथमिकता दी जाती है और केवल आवश्यक होने पर ही चिकित्सा परीक्षणों का सहारा लिया जाता है।
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अधीन विधिक ढाँचा
- धारा 94 - आयु अवधारण की प्रक्रिया
- किशोर न्याय अधिनियम की धारा 94 के अधीन निम्नलिखित चरणों के माध्यम से आयु अवधारण की प्रक्रिया निर्धारित की गई है:
- दृश्य मूल्यांकन (धारा 94(1))
- यदि किसी व्यक्ति की उपस्थिति या भौतिक स्वरूप से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि वह एक बालक (किशोर) है, तो किशोर न्याय बोर्ड अथवा बाल कल्याण समिति उस व्यक्ति की अनुमानित आयु को अभिलिखित करेगी और बिना किसी अतिरिक्त पुष्टि की प्रतीक्षा किये आगे की कार्यवाही करेगी।
संदेहात्मक मामलों में प्रक्रिया (धारा 94(2))
यदि उचित संदेह हो तो:
(i) विद्यालय से प्राप्त जन्म तारीख प्रमाणपत्र (या समकक्ष मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र) प्राप्त करें,
(ii) यदि उपलब्ध न हो तो निगम/नगरपालिका/पंचायत द्वारा दिया गया जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त करें।
(iii) केवल उपर्युक्त के अभाव में ही अस्थि जांच या कोई नवीनतम चिकित्सा आयु अवधारण जांच कराएं ।
- आयु निर्धारण की विधिक स्थिति (धारा 94(3))
- इस प्रकार अभिलिखित की गई आयु अधिनियम के अंतर्गत सभी प्रयोजनों के लिये वास्तविक आयु मानी जाएगी।
न्यायिक पूर्वनिर्णय
- विनोद कटारा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2024
- उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि विद्यालय अभिलेख या जन्म प्रमाण पत्र को चिकित्सा राय से अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि 25 वर्ष की आयु के पश्चात् अस्थि जांच विश्वसनीय नहीं होते तथा इनका सहारा केवल विश्वसनीय दस्तावेज़ी साक्ष्य के अभाव में ही लिया जाना चाहिये।
- जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2013)
- उच्चतम न्यायालय ने किशोर न्याय नियम के नियम 12 (जो कि वर्तमान में धारा 94 के समतुल्य है) के अधीन निर्धारित प्रक्रिया को लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) और अन्य बाल-संबंधी अपराधों के पीड़ितों तक बढ़ाया।
- कोर्ट ऑन इट्स ओन मोशन बनाम राज्य (दिल्ली उच्च न्यायालय, 2024)
- जब मामला हड्डियों की आयु के अनुमान (Bone Age Estimation) से संबंधित हो, तो न्यायालय ने यह निदेश दिया कि अस्थि रिपोर्ट में उल्लिखित अधिकतम आयु सीमा को पीड़ित की अनुमानित आयु माना जाएगा।
- इसमें चिकित्सा जांचों में अंतर्निहित अनिश्चितता के कारण 2 वर्ष की त्रुटि सीमा भी जोड़ दी गई ।
वैज्ञानिक विचार
- अस्थि अस्थिकरण जांच : यह हड्डियों के संयोजन पर निर्भर करता है तथा यह आयु का अनुमान लगाने का एक तरीका है, न कि कोई सटीक उपकरण।
- 25 वर्ष की आयु के बाद थोड़े से शारीरिक परिवर्तन के कारण यह अविश्वसनीय हो जाता है।
निष्कर्ष
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 एक क्रमबद्ध एवं सावधानीपूर्ण दृष्टिकोण को अपनाते हुए आयु अवधारण की प्रक्रिया निर्धारित करता है, जिसमें प्राथमिकता दस्तावेज़ी साक्ष्य को दी जाती है तथा चिकित्सकीय जांच को केवल असाधारण परिस्थितियों में अपनाने का निदेश दिया गया है। न्यायालयों ने अनेक बार यह स्पष्ट किया है कि अस्थि जांच (Ossification Test) केवल एक सहायक माध्यम है तथा वह मान्य विद्यालय अथवा नगरपालिका/पंचायती अभिलेखों पर वरीयता नहीं पा सकता। धारा 94 का समुचित अनुप्रयोग यह सुनिश्चित करता है कि किशोरों के अधिकारों की रक्षा हो सके, साथ ही आपराधिक एवं संरक्षात्मक कार्यवाहियों में प्रक्रियात्मक निष्पक्षता भी बनाए रखी जाए।