होम / भारतीय संविदा अधिनियम
सिविल कानून
प्रत्यासन का सिद्धांत
« »30-May-2024
परिचय:
प्रत्यासन एक विधिक सिद्धांत है, जिसमें एक पक्ष अपने ऋणी के विरुद्ध लेनदार के अधिकार प्राप्त करता है।
- भारत में, इस अधिकार को भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 140 एवं 141 में उल्लिखित किया गया है।
- भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 140 एवं 141 गारंटीकृत ऋण पर चूक की स्थिति में ज़मानतदार (प्रत्याभूतिदाता) के अधिकारों की व्याख्या करती है।
- बीमा एवं प्रतिभूति की संविदा में प्रत्यासन का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।
- यह शब्द लैटिन शब्दों "सब" एवं “रोगेट" से उत्पन्न हुआ है, जिसका क्रमशः अर्थ है "अंडर" और "पूछना"।
- बीमा संविदा में, प्रत्यासन एक प्रमुख सिद्धांत है जिसे क्षति से जुड़ी स्थितियों में लागू किया जाता है।
प्रत्यासन का सिद्धांत क्या है?
- प्रत्यासन से तात्पर्य है, बीमा दावे में ऋण के संबंध में एक पक्ष को दूसरे पक्ष से बदलना, साथ ही किसी भी संबंधित अधिकार एवं उत्तरदायित्व का अंतरण।
- प्रत्यासन बीमाकर्त्ता का तीसरे पक्ष से क्षतिपूर्ति मांगने के लिये बीमित व्यक्ति की स्थिति से अवगत होने का अधिकार है।
- यह अधिकार आम तौर पर दो परिदृश्यों में उभरता है: यह या तो परिस्थितियों से स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हो सकता है या संविदात्मक विधि के माध्यम से स्थापित किया जा सकता है।
- भारत में, प्रत्यासन अधिकारों को भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 140 एवं 141 में उल्लिखित किया गया है, जो ऋणी की प्रतिभूति से लाभ प्राप्त करने के लिये ज़मानतदार के अधिकार को रेखांकित करता है।
- यह अवधारणा आमतौर पर बीमा दावों के दायरे में लागू होती है।
प्रत्यासन कितने प्रकार के होते हैं?
- क्षतिपूर्ति की बीमा में प्रत्यासन का अधिकार:
- बीमा कंपनी को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह क्षतिपूर्ति के लिये बीमित व्यक्ति को दी गई राशि प्राप्त करने के लिये दोषी पक्ष के विरुद्ध विधिक कार्यवाही कर सके।
- प्रत्यासन के संबंध में ज़मानत के अधिकार:
- जब कोई प्रत्याभूतिदाता किसी अन्य पक्ष की ओर से ऋण का निपटान करता है, तो उसे ऋणी के रूप में ऋणी के विरुद्ध प्रतिपूर्ति के लिये उन्हीं दावों एवं उपचार को आगे बढ़ाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
- न्यासियों के लिये प्रत्यासन के अधिकार:
- लाभार्थियों की ओर से संव्यवहार में शामिल न्यासी को यह अधिकार है कि वह लाभार्थियों से किसी भी व्यक्तिगत क्षति के लिये क्षतिपूर्ति मांग सके तथा ऐसी क्षतिपूर्ति के लिये प्रतिभूति के रूप में न्यास को ग्रहण करने का अधिकार स्थापित कर सके।
- ऋणी के प्रत्यासन का अधिकार:
- जब ऋणी किसी तीसरे पक्ष को उधारकर्त्ता का ऋण चुकाने के लिये धन उपलब्ध कराता है, तो ऋणी ऋण के निपटान की राशि तक, उधारकर्त्ता के विरुद्ध तीसरे पक्ष के अधिकारों को ग्रहण कर लेता है।
- वित्तीय संस्थाओं के प्रत्यासन का अधिकार:
- जब कोई बैंक किसी तीसरे पक्ष को धनराशि अंतरित करता है, जिससे ग्राहक प्रभावी रूप से अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाता है, तो बैंक ग्राहक के विरुद्ध उपचारों के संबंध में तीसरे पक्ष के अंतरण से पूर्व के अधिकारों को ग्रहण कर लेता है।
प्रत्यासन की श्रेणियाँ क्या हैं?
- न्यायसंगत समानुदेशन (असाइनमेंट) का प्रत्यासन:
- आमतौर पर पॉलिसीधारक के दावे का निपटान करने पर जब बीमाकर्त्ता बतौर पॉलिसीधारक स्वयं को प्रदर्शित करता है तो ऐसी स्थिति को न्यायसंगत समानुदेशन का प्रत्यासन कहते हैं।
- संविदा का प्रत्यासन:
- बीमा की संविदा में इस सिद्धांत का अक्सर प्रयोग किया जाता है। प्रत्यासन का सिद्धांत बीमाकर्त्ता के अधिकार को संदर्भित करता है कि वह क्षति की स्थिति में तीसरे पक्ष के विरुद्ध बीमाधारक के अधिकारों एवं उपचारों को प्राप्त कर सकता है, इस सीमा तक कि बीमाकर्त्ता ने क्षतिपूर्ति की है।
- प्रत्यासन-सह-समानुदेशन:
- इस वर्गीकरण के अंतर्गत, बीमा कंपनी पुनः प्राप्त की गई पूरी राशि अपने पास रख लेती है तथा उसे पॉलिसीधारक की ओर से या अपने नाम से, प्रत्यासन-सह-समानुदेशन के निष्पादन के माध्यम से वाद दायर करने का अधिकार होता है।
प्रत्यासन के सिद्धांत क्या हैं?
- प्रतिस्थापन:
- प्रत्यासन बीमा प्रदाता को बीमित व्यक्ति की ओर से निर्णय लेने एवं बीमित व्यक्ति के क्षति के लिये उत्तरदायी तीसरे पक्ष के विरुद्ध विधिक उपाय करने में सक्षम बनाता है।
- संक्षेप में, बीमाकर्त्ता बीमित व्यक्ति की भूमिका या स्थिति लेता है।
- क्षति से सुरक्षा:
- प्रत्यासन क्षतिपूर्ति के आधार पर संचालित होता है, यह प्रत्याभूति (गारंटी) देता है कि पॉलिसीधारक को उनके वास्तविक क्षति से अधिक लाभ नहीं मिलता है।
- यह बीमाधारक को एक ही क्षति के लिये दोहरा क्षतिपूर्ति (पहले बीमाकर्त्ता से एवं फिर तीसरे पक्ष से) प्राप्त करने से रोकता है।
- बीमाधारक के अधिकारों के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं:
- प्रत्यासन से बीमाधारक के पॉलिसी में उल्लिखित पूर्ण क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के अधिकार पर अनुचित प्रभाव नहीं पड़ना चाहिये।
- बीमाकर्त्ता किसी तीसरे पक्ष से प्रत्यासन की मांग तभी कर सकता है, जब बीमाधारक को उसके क्षति के लिये पूर्ण क्षतिपूर्ति मिल गई हो।
- प्रस्थापन का अधित्यजन:
- किसी संविदा में पक्षकार प्रत्यासन के अधिकार को त्यागने के लिये सहमति दे सकते हैं, जो बीमाकर्त्ता को तीसरे पक्ष से प्रतिपूर्ति मांगने से रोकता है।
- इस प्रकार का अधित्याजन अक्सर निर्माण के करारों या किराये के संविदा में दिखाई देती है।
- भुगतान के बाद उत्पन्न होने वाली समस्या:
- प्रत्यासन अधिकार आम तौर पर तभी प्रभावी होते हैं जब बीमाकर्त्ता ने बीमाधारक को मुआवज़ा दे दिया हो।
- बीमाकर्त्ता को प्रत्यासन का अधिकार तभी मिलता है जब उसने बीमाधारक को नुकसान की भरपाई कर दी हो।
- साम्या एवं सद्भावना:
- प्रत्यासन निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता के सिद्धांतों पर आधारित है।
- बीमा कंपनी न्यायपूर्ण तरीके से व्यवहार करने के लिये बाध्य है तथा पॉलिसीधारक को जो क्षतिपूर्ति दिया गया था, उससे अधिक प्राप्त करने के लिये प्रत्यासन का लाभ नहीं उठा सकती है।
- संविदात्मक आधार:
- बीमा की संविदा में प्रत्यासन के अधिकारों को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया जा सकता है।
- ये अधिकार विधिक प्रक्रियाओं के माध्यम से भी शुरू हो सकते हैं, जो अधिकार क्षेत्र एवं ज़ब्ती से संबंधित विशेष स्थितियों पर निर्भर करते हैं।
- विधिक एवं साम्यापूर्ण अधिकार:
- प्रत्यासन में विधिक एवं साम्यापूर्ण दोनों अधिकार निहित हैं। विधिक ढाँचे के भीतर, बीमाकर्त्ता को क्षति के लिये उत्तरदायी माने जाने वाले तीसरे पक्ष के विरुद्ध विधिक कार्यवाही करने का अधिकार है।
- निष्पक्ष रूप से, प्रत्यासन बीमाधारक को बीमा से लाभ प्राप्त करने से रोककर क्षतिपूर्ति के सिद्धांत की रक्षा करता है।
प्रत्यासन से संबंधित निर्णयज विधियाँ क्या हैं?
- अबूबुकर बनाम आयशा, 1999
- यह कहा गया कि मूल ऋणी ने अधिकांश भुगतान का निपटान कर दिया है, केवल शेष राशि प्रत्याभूतिदाता से वसूली के लिये स्वीकार्य है, जो तब मूल ऋणी से क्षतिपूर्ति पाने का पात्र है।
- न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम जेनस पावर इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड, 2015
- इसने माना कि इस मामले में डिस्चार्ज, साथ ही प्रत्यासन पत्र पर हस्ताक्षर, बिना किसी अनुचित प्रभाव के हुआ।
- ये कार्य स्वैच्छिक थे तथा बलपूर्वक या अनुचित प्रभाव का परिणाम नहीं थे।
- इन परिस्थितियों में, हम मानते हैं कि प्रत्यासन-पत्र के निष्पादन ने दावे का पूर्ण एवं अंतिम समाधान किया।
- बैंक ऑफ बिहार लिमिटेड बनाम दामोदर प्रसाद, 1969
- यह स्थापित किया गया कि मुख्य ऋणी के दिवालिया होने की स्थिति में, ज़मानतदार यह माँग करने का अधिकारी नहीं है कि लेनदार भुगतान मांगने से पहले मुख्य ऋणी के विरुद्ध उपचार करे।
- उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसी परिस्थितियों में, ज़मानतदार भुगतान करने के लिये बाध्य है। परिणामस्वरूप, ज़मानतदार प्रत्यासन के माध्यम से मुख्य ऋणी के संबंध में लेनदार के अधिकारों को ग्रहण करेगा।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ज़मानतदार के विरुद्ध उपचार करने में लेनदार की देरी प्रतिभूति के मूल उद्देश्य को क्षीण करती है।
निष्कर्ष:
संक्षेप में, प्रत्यासन के न्यायसंगत सिद्धांतों को लागू करते समय, यह सावधानीपूर्वक आकलन करना महत्त्वपूर्ण है कि बीमित पक्ष को उनके क्षति के लिये कैसे क्षतिपूर्ति दिया जाता है। प्रत्यासन के अधिकारों की उपस्थिति या अनुपस्थिति जोखिम प्रालेख को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है, विशेष रूप से बड़े, जटिल मामलों के लिये जिसमें कई बीमित पक्ष शामिल होते हैं। क्षति के बाद कार्यवाही का प्रबंधन करने वाले पक्ष को सद्भावना के साथ निपटान करना चाहिये तथा विधिक अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिये।
जब किसी प्रत्यासन के दावे में अप्राप्त क्षतियाँ शामिल होती हैं, तो इस बात पर अनिश्चितता बनी रहती है कि कार्यवाही को कौन नियंत्रित करता है तथा वसूली की आय को कैसे वितरित किया जाना चाहिये। विधि प्रत्याभूतिदाता को उनकी पूरी राशि का दावा करने के लिये सभी प्रतिभूतियाँ प्रदान करता है।