हरियाणा अधिवास आरक्षण पर निर्णय
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सांविधानिक विधि

हरियाणा अधिवास आरक्षण पर निर्णय

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 21-Nov-2023

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

परिचय:

हाल ही में न्यायमूर्ति जी.एस. संधावालिया तथा न्यायमूर्ति हरप्रीत कौर जीवन ने ‘IMT इंडस्ट्रियल एसोसिएशन और अन्य बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य’ मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हरियाणा राज्य द्वारा स्थानीय उम्मीदवारों के रोज़गार अधिनियम, 2020 के तहत अधिवास आरक्षण देना असंवैधानिक है।

पीठ ने विधि को अमान्य करते हुए कहा कि "भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत दी गई स्वतंत्रता को छीना नहीं जा सकता है तथा लागू किये गए प्रावधान गलत सिद्ध हो रहे हैं और असंवैधानिक घोषित किये जाने योग्य हैं क्योंकि राज्य द्वारा इसे बाध्य नही किया जा सकता है तथा भारत के संविधान की भावना एवं एकता को राज्य के संकीर्ण सीमित दृष्टि से कम नहीं किया जा सकता है।

निर्णय में अनुच्छेद 35 की क्या भूमिका है?

  • अनुच्छेद 35 के उद्देश्य पर चर्चा करते हुए न्यायालय ने कहा कि “राज्य की विधायिका के लिये अनुच्छेद 16(3) के तहत आने वाले मामलों के संबंध में कानून बनाने की मनाही है। इसमें यह भी प्रावधान है कि सार्वजनिक रोज़गार के मामलों में सभी को अवसर की समानता भी होनी चाहिये।
  • अनुच्छेद 35 के खंड (i)- संसद को शक्ति होगी और राज्य के विधान-मंडल को शक्ति नहीं होगी कि वह जिन विषयों के लिये अनुच्छेद 16 के खंड (3), अनुच्छेद 32 के खंड (3), अनुच्छेद 33 एवं अनुच्छेद 34 के अधीन संसद विधि द्वारा उपबंध कर सके।

निर्णय में अनुच्छेद 14 की क्या भूमिका है?

  • याचिकाकर्त्ता की दलीलों के अनुसार, इस मामले में भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के उल्लंघन का भी आरोप लगाया गया है क्योंकि देश के सभी नागरिकों को हरियाणा राज्य में समान रोज़गार प्राप्त करने, निवास एवं बसने का अधिकार होगा। इस प्रकार यह अधिनियम देश की एकता एवं समग्रता और सामान्य भारतीय पहचान के विचार पर एक गंभीर क्षति को दर्शाता है।

निर्णय में अनुच्छेद 19 की क्या भूमिका है?

  • इस मामले के तथ्य में उल्लेख किया गया है कि याचिकाकर्त्ता इस तथ्य के आधार पर अधिनियम को चुनौती देते हैं कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत प्रदान किये गए निजी रोज़गार में आरक्षण प्रदान करता है तथा राज्य सरकार द्वारा निजी नियोक्ताओं के अपने व्यवसाय एवं व्यापार में संलग्न होने के लिये मूल अधिकारों में एक अभूतपूर्व हस्तक्षेप उत्पन्न करता है।
  • न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 2(e) के तहत परिभाषित सभी प्रकार के निजी नियोक्ताओं पर लगाए गए प्रतिबंध इतने गंभीर हैं कि किसी व्यक्ति का व्यवसाय, व्यापार या व्यवसाय करने का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत पूर्ण रूप से क्षीण हो जाता है।
  • ऐसे किसी भी कर्मचारी को तीन माह के भीतर निर्दिष्ट पोर्टल पर पंजीकृत करने की आवश्यकता है जिसे प्रति माह 30,000 रुपए से कम (75%) तक भुगतान किया जा रहा था, यह भारत के संविधान के तहत संरक्षित मूल अधिकारों का उल्लंघन है।