विधान पर न्यायपालिका का अधिकार क्षेत्र
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सांविधानिक विधि

विधान पर न्यायपालिका का अधिकार क्षेत्र

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 24-May-2024

स्रोत: द  हिंदू  

परिचय:

भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) और इसके साथ जुड़े नियमों की संवैधानिकता का आकलन करने की उम्मीद है। CAA नियमों के भीतर स्पष्टता की कमी के बारे में चिंताएँ  व्यक्त की गई हैं, खासकर उन व्यक्तियों के भविष्य के विषय में जिनके नागरिकता आवेदन खारिज कर दिये गए हैं। ऐसी आशंका है कि अस्वीकृत आवेदकों को अभिरक्षा में लिया जा सकता है, जिससे अनिश्चितता उत्पन्न होगी। याचिकाकर्त्ताओं ने दोहरी नागरिकता की संभावना के विषय में चिंता व्यक्त की है, जो मुख्य अधिनियम के मूल सिद्धांतों के विपरीत है और नागरिकता मामलों को जटिल बनाती है।

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) क्या है?

CAA, 2019 एक भारतीय विधि है जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से छह धार्मिक अल्पसंख्यकों: हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई प्रवासियों के लिये भारतीय नागरिकता का विकल्प प्रदान करती है।

  • अधिनियमन:
    • नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 भारत में विदेशी प्रवासियों की कुछ श्रेणियों के लिये एक विशिष्ट विधि है।
    • इसे 10 दिसंबर 2019 को लोकसभा में और 11 दिसंबर 2019 को राज्यसभा में पारित किया गया।
    • इसे 12 दिसंबर 2019 को राष्ट्रपति की सहमति मिली।
  • अनुप्रयोज्यता:
    • यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों- हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी तथा ईसाइयों को शीघ्र नागरिकता प्रदान करता है, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे।
    • CAA अनुप्रयोज्यता का केंद्र बिंदु संकीर्ण है, जो धर्म के आधार पर हुए उत्पीड़न को संबोधित करता है।
  • गैर-अनुप्रयोज्यता:
    • CAA मुस्लिमों सहित भारतीय नागरिकों को प्रभावित नहीं करता है, क्योंकि उन्हें संविधान द्वारा संरक्षित अधिकार प्राप्त हैं। यह मुसलमानों या अन्य देशों से आए प्रवासियों पर लागू नहीं होता है।
    • इसमें उत्पीड़न के अन्य प्रकार शामिल नहीं हैं।
    • कुछ दावों के विपरीत, CAA भारतीय मुस्लिमों को नागरिकता से बाहर नहीं करता है; यह पूरी तरह से विदेशी प्रवासियों के नागरिकीकरण की सुविधा प्रदान करता है।
  • गैर प्रभाव:
    • अधिनियम सभी विदेशियों के लिये उपलब्ध, प्राकृतिकीकरण अथवा पंजीकरण के माध्यम से नागरिकता प्राप्त करने की मौजूदा प्रक्रियाओं में बदलाव नहीं करता है।

न्यायपालिका और विधायिका के बीच क्या खींचतान है?

  • गुरुदेवदत्त Vksss मर्यादित और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (2001):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि "विधायी द्वेष, विधि न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।"
  • विवेक नारायण शर्मा बनाम भारत संघ (2023):
    • इस मामले में SC ने सरकारी कार्यों तथा उनकी संवैधानिक वैधता से संबंधित मुद्दों पर निर्णय सुनाया।
    • यह मामला संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने में "कुछ सरकारी निर्णयों की वैधता तथा न्यायिक समीक्षा की भूमिका" की प्रासंगिकता के लिये जाना जाता है।
  • अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ (2023):
    • इस मामले में, SC की संविधान पीठ ने, भारत के चुनाव आयोग (ECI) का चयन करने के लिये कार्यपालिका के प्रभाव से मुक्त एक स्वतंत्र निकाय का समर्थन किया।
    • हालाँकि, मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें तथा कार्यालय की अवधि) अधिनियम, 2023 के अधिनियमन ने पहले के निर्णय के विपरीत, ECI को चुनने में प्रधानमंत्री समिति की भूमिका को बहाल कर दिया।
  • जया ठाकुर बनाम भारत संघ (2024):
    • इस मामले में न्यायालय ने किसी चुनौती दी गई विधि की वैधता के "अनुमान" का हवाला देते हुए, एक चुनौती दी गई विधि के संचालन को रोकने से मना कर दिया।
    • इस दावे के बावजूद कि यह अधिनियम पूरी तरह से असंवैधानिक है और लोकतंत्र के लिये खतरा है, न्यायालय का निर्णय, विधायी धारणा को चुनौती देने के लिये न्यायिक अनिच्छा का उदाहरण है, जो संभावित रूप से न्यायालय के पिछले निर्णयों को कमज़ोर करता है।

विधान को लक्षित करने वाले प्रमुख निर्णय कौन-से हैं?

  • CAA तथा उससे जुड़े नियम लक्षित विधान का गठन करते हैं, जो उनकी भेदभावपूर्ण प्रकृति से स्पष्ट है। यह अधिनियम लोगों को धर्म के नाम पर वर्गीकृत करता है तथा मुस्लिमों को नागरिकता देने की प्रक्रिया से बाहर रखता है।
  • मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम (2019) लक्षित विधि का एक प्रमुख उदाहरण है, क्योंकि इसने शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017) मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अमान्य किये जाने के बावजूद तीन तलाक को अपराध घोषित कर दिया है।
  • मुस्लिम समुदाय पर लक्षित यह अधिनियम अनावश्यक था क्योंकि इस प्रथा को न्यायपालिका द्वारा पहले ही अवैध माना जा चुका था।
  • मुस्लिम महिलाओं की रक्षा करने के बजाय, इस अधिनियम ने पतियों को तलाक या परित्याग के अन्य वैकल्पिक तरीकों का सहारा लेने के लिये प्रेरित करके, संभावित रूप से उनकी स्थिति को खराब कर दिया, जिससे यह अधिनियम दंपतियों में पृथक्करण को बढ़ाते हुए अपने उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहा।

दुनिया भर में विधान पर न्यायपालिका का दृष्टिकोण क्या है?

  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने कथित द्वेष के आधार पर विधानों को रद्द करने का समर्थन नहीं किया।
  • एक अमेरिकी विधिक विद्वान, जॉन हार्ट एली ने राजनीतिक व्यक्तियों के द्वेषपूर्ण आशयों को दण्डित करने के लिये संविधान का उपयोग करने के विरुद्ध तर्क दिया।
  • विधायी निकायों के दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों से प्रभावित होने के कटु सत्य को स्वीकार किया गया है।
  • ऐसे दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों से प्रेरित विधानों को अधिक कठोर न्यायिक जाँच से गुज़रना चाहिये।
  • विद्वान सुज़ानाह डब्ल्यू. पोलवोग्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि विद्वेष द्वारा, राज्य हित के लिये समान सुरक्षा विश्लेषण को उचित नहीं ठहराया जा सकता।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका कृषि विभाग बनाम मोरेनो (1973) के मामले का हवाला देते हुए कहा गया, कि आवासीय अधिकारों से "हिप्पियों" को बाहर करने के उद्देश्य से बनाए गए विधान का आशय भेदभाव के रूप में देखा गया था।
  • भारत में, सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ मामलों में संसदीय विधियों के कार्यान्वयन को प्रभावी ढंग से रोक दिया है।
  • उदाहरणों में अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ (2007) तथा राकेश वैष्णव बनाम भारत संघ (2021) शामिल हैं।
  • स्पष्ट रूप से असंवैधानिक या विभाजनकारी विधानों के लिये तीव्र, दृढ़ तथा स्पष्ट न्यायिक समीक्षा आवश्यक है।
  • सर्वोच्च न्यायालय को महत्त्वपूर्ण मामलों में अपने कार्यों के राजनीतिक प्रभाव पर विचार करना चाहिये।
  • न्यायिक समीक्षा में देरी इसके उद्देश्य को क्षीण करती है, विशेषतः दुर्भावनापूर्ण एवं असंवैधानिक विधानों से जुड़े मामलों में।

निष्कर्ष:

CAA की संवैधानिकता का आकलन, विधायी मंशा और न्यायिक समीक्षा के मध्य संतुलन पर प्रकाश डालता है। जबकि CAA और मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम (2019) जैसी  लक्षित विधियाँ  संवैधानिक सिद्धांतों की चुनौतियों को प्रकट करती हैं, लोकतंत्र तथा मौलिक अधिकारों को बनाए रखने में न्यायपालिका की भूमिका इन जटिलताओं को दूर करने एवं सभी नागरिकों के लिये न्याय सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण बनी हुई है।