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सांविधानिक विधि
इंडिया का नाम परिवर्तित कर ‘भारत’ करने के कानूनी परिप्रेक्ष्य
« »07-Sep-2023
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
परिचय
09-10 सितंबर 2023 को G20 की बैठक निर्धारित है। G20 रात्रिभोज के लिये आधिकारिक निमंत्रण भारतीय राष्ट्रपति द्वारा 'प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया' के बजाय 'प्रेसिडेंट ऑफ भारत' शीर्षक के तहत भेजे गए हैं।
नामकरण में इस परिवर्तन को आधिकारिक G20 बैठक पुस्तिका में भी शामिल किया गया है जो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक बड़ा कदम है। भारत सरकार का यह कदम विवाद का विषय बन गया है जिससे देश का नाम परिवर्तित करने की वैधता पर बहस छिड़ गई है।
देश का नाम परिवर्तित करने का कानूनी दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना:
- इस प्रस्तावना को भारत के संविधान, 1950 में निहित संप्रभु सिद्धांतों की प्रस्तावना माना जाता है। यह "हम भारत के लोग" शब्दों से शुरू होती है।
- हालाँकि संविधान के हिंदी संस्करण में निहित प्रस्तावना में इंडिया के स्थान पर 'भारत' शब्द है, जिसका अर्थ है कि यह शब्द विनिमेय है लेकिन परस्पर विनाशकारी नहीं है।
- अनुच्छेद 1:
- संविधान का अनुच्छेद 1 विशेष रूप से दर्शाता है कि यह 'भारत' शब्द को मान्यता देता है जिसका अर्थ है 'भारत' भी राष्ट्र का एक आधिकारिक नाम है, न कि केवल 'इंडिया' का अनुवाद।
- अनुच्छेद के खंड 1 में कहा गया है, इंडिया, यानी भारत, राज्यों का एक संघ होगा।
- हालाँकि, इस अनुच्छेद के अलावा संविधान में कहीं भी 'इंडिया' के स्थान पर 'भारत' शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है।
- संविधान का अनुच्छेद 1 विशेष रूप से दर्शाता है कि यह 'भारत' शब्द को मान्यता देता है जिसका अर्थ है 'भारत' भी राष्ट्र का एक आधिकारिक नाम है, न कि केवल 'इंडिया' का अनुवाद।
- संविधान में प्राधिकारी:
- अनुच्छेद 52: के अनुसार भारत का एक राष्ट्रपति होगा जिसके पास संघ की कार्यकारी शक्ति होगी।
- अनुच्छेद 76: के अनुसार राष्ट्रपति ऐसे कानूनी मामलों पर भारत सरकार को सलाह देने तथा कानूनी कर्त्तव्यों का पालन करने हेतु भारत के लिये एक अटॉर्नी जनरल नियुक्त करेगा।
- अनुच्छेद 124: के अनुसार भारत का एक सर्वोच्च न्यायालय होगा जिसमें भारत के एक मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) शामिल होंगे।
- सर्वोच्च न्यायालय की मान्यता:
- SC ने वर्ष 2016 और वर्ष 2020 में दो बार इंडिया का नाम परिवर्तित कर भारत करने की याचिका खारिज कर दी है।
- वर्ष 2020 में याचिका इस आधार पर दायर की गई थी कि इस तरह का नाम परिवर्तित करने से "इस देश के नागरिकों को औपनिवेशिक अतीत से छुटकारा मिल जाएगा"।
- पूर्व CJI एस.ए. बोबडे ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि भारत और इंडिया दोनों नाम संविधान में निहित हैं और इसलिये सर्वोच्च न्यायालय नाम नहीं परिवर्तित कर सकता।
- हालाँकि, न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता को इस मुद्दे पर सरकार के समक्ष अभ्यावेदन देने की अनुमति है.
देश का नाम परिवर्तित करने पर संविधान सभा की राय:
- संविधान सभा द्वारा08.1947 को डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में राष्ट्र के लिये एक संविधान का मसौदा तैयार करने हेतु एक मसौदा समिति की स्थापना की गई थी।
- 09.1949 को संविधान सभा की बहस के दौरान देश के लिये 'इंडिया' और 'भारत' नाम चर्चा का एक प्रमुख विषय बन गया।
- संविधान सभा के सदस्य और फॉरवर्ड ब्लॉक नेता हरि विष्णु कामथ ने संविधान के अनुच्छेद 1 को निम्नलिखित के साथ प्रतिस्थापित करने का प्रस्ताव रखा:
- भारत या, अंग्रेज़ी भाषा में, इंडिया, राज्यों का एक संघ होगा। या
- हिंदी , या, अंग्रेज़ी भाषा में, इंडिया, राज्यों का एक संघ होगा।
- इस सभा के एक अन्य सदस्य, गोविंद वल्लभ पंत ने सुझाव दिया कि "हमें इंडिया के स्थान पर" भारत "या" भारत वर्ष "शब्द रखना चाहिये"।
- उन्होंने आगे तर्क दिया कि, इस सभा के सदस्यों को 'इंडिया' शब्द से क्यों जोड़ा जाता है, एक नाम जो हमारे देश को विदेशियों द्वारा दिया गया था, जिन्होंने इस भूमि की समृद्धि के बारे में सुना था तथा इसके प्रति आकर्षित हुए थे और हमसे हमारी स्वतंत्रता छीन ली थी।
- हालाँकि, जब राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संशोधन को मतदान के लिये रखा तो सभी प्रस्तावित संशोधनों को अस्वीकार कर दिया गया, "इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा" बना रहा।
देश का नाम परिवर्तित करने की कानूनी आवश्यकताएँ:
- भारत में, "भारत" नाम का महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व है।, क्योंकि यह प्राचीन भारतीय ग्रंथों जैसे महाभारत, मनुस्मृति तथा सम्राट भरत के नाम से लिया गया है।
- यह देश के ऐतिहासिक विरासत सहित देश के पारंपरिक नाम एवं उसके सांस्कृतिक पहलुओं का भी प्रतिनिधित्व करता है।
- हालाँकि, संविधान के निर्माताओं ने देश की भौतिक एवं प्रशासनिक पहचान को प्रतिबिंबित करने के लिये "भारत" नाम का उपयोग करने का एक प्रबुद्ध निर्णय लिया।
- आधिकारिक निमंत्रण पर इंडिया से भारत में परिवर्तित करना कानूनी रूप से स्वीकार्य है, लेकिन संविधान से 'इंडिया' जैसे किसी भी शब्द को हटाने के लिये संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी।
- संविधान की प्रस्तावना में 'भारत' नाम का उल्लेख है, जिसे संविधान का ही एक भाग माना जाता है।
- संविधान में संशोधन की प्रक्रिया अनुच्छेद 368 में उल्लिखित है।
- इसमें संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत (उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत) के साथ कम से कम आधे राज्य विधानमंडलों द्वारा अनुसमर्थन के साथ एक विधेयक पारित करना शामिल है।
- इंडिया का नाम परिवर्तित करके भारत करने से कानूनी कार्यवाही और अधिनियमों में अंग्रेजी भाषा का उपयोग करने के संवैधानिक आदेश पर प्रभाव पड़ेगा।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348(1)(a) के अनुसार, जब तक संसद इसके विपरीत कोई कानून पारित नहीं करती, तब तक सर्वोच्च न्यायालय तथा प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी सुनवाई अंग्रेजी में की जानी चाहिये।
- अनुच्छेद के उपखंड (b) के अनुसार, संविधान के अंर्तगत अथवा संसद या राज्य के विधानमंडल द्वारा स्थापित किसी भी कानून के अंर्तगत जारी किये गए सभी विधेयकों, अधिनियमों, आदेशों, नियमों, विनियमों एवं उप-कानूनों के आधिकारिक पाठ,अंग्रेजी भाषा में होने चाहिये।
- उपर्युक्त संशोधन से वर्तमान कानूनों में संशोधन होगा जिनके आवेदन का क्षेत्र या तो भारत के अंर्तगत अथवा बाहर निर्दिष्ट किया गया है।
निष्कर्ष:
- चूँकि इंडिया (भारत) विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, इसलिये नामकरण से संविधान की पहचान, धर्मनिरपेक्षता एवं व्यापक सार्वजनिक सहमति की आवश्यकता से संबंधित तर्कों के साथ कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- इंडिया, का नाम विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है, इसके साथ ही इस तरह के परिवर्तन के लिये राजनयिक प्रयासों की आवश्यकता होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अन्य देश नए नाम को पहचानें और स्वीकार करें।
- नाम परिवर्तन के संबंध में किसी भी निर्णय के लिये भारत के समाज की विविधता एवं इसकी बहुलवादी प्रकृति के साथ इसके ऐतिहासिक और संवैधानिक संदर्भ को ध्यान में रखना होगा।