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सिविल कानून
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 10
« »15-May-2025
तेलंगाना राज्य बनाम डॉ. पसुपुलेटी निर्मला हनुमंत राव चैरिटेबल ट्रस्ट " इस न्यायालय का यह भी मत है कि 1975 के नियम तथा राजस्व बोर्ड के स्थायी आदेश एक पूर्णतः पृथक् स्थान पर काम करते हैं और संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 10 द्वारा निरस्त या प्रभावित नहीं होते हैं।" न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने कहा कि संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 10 सरकारी अन्यसंक्रामण पर लागू नहीं होती है।
- उच्चतम न्यायालय ने तेलंगाना राज्य बनाम डॉ. पशुपुलेटी निर्मला हनुमंत राव चैरिटेबल ट्रस्ट (2025) के मामले में यह निर्णय दिया गया।
तेलंगाना राज्य बनाम डॉ. पशुपुलेटी निर्मला हनुमंत राव चैरिटेबल ट्रस्ट (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला तेलंगाना उच्च न्यायालय के 5 जुलाई 2022 के निर्णय को चुनौती देने वाली अपील से संबंधित है, जिसमें अपीलकर्त्ता-राज्य की रिट अपील को खारिज कर दिया गया था।
- यह विवाद मेडक जिले के मुलुगु मंडल के चिन्नाथिम्मापुर गाँव में स्थित भूमि से संबंधित है।
- उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि प्रतिवादी-ट्रस्ट ही भूमि का पूर्ण स्वामी है, क्योंकि अपीलकर्त्ता-राज्य ने भूमि को बाजार मूल्य पर विक्रय किया था।
- उच्च न्यायालय ने यह भी निर्धारित किया कि राज्य, जब भूमि को बाजार मूल्य पर विक्रय कर चुका हो, तो वह उपभोग पर कोई प्रतिबंधात्मक शर्तें नहीं लगा सकता; ऐसी शर्तों को संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 10 के अधीन शून्य माना जाएगा।
- अपीलकर्त्ता-राज्य का तर्क है कि भूमि का आवंटन तेलंगाना राज्य भूमि एवं भूमि राजस्व अन्यसंक्रामण नियम, 1975 के अधीन किया गया था, जो भूमि के सशर्त अन्यसंक्रामण की अनुमति देता है।
- मेडक के जिला कलेक्टर ने 8 फरवरी 2001 को भूमि का आवंटन जी.ओ.एम. संख्या 635, दिनांक 2 जुलाई 1990 के अधीन किया गया था, जिसमें भूमि उपयोग से संबंधित विशिष्ट शर्तें निर्धारित की गई थीं।
- अपीलकर्त्ता-राज्य का तर्क है कि भूमि का आवंटन एक धर्मार्थ ट्रस्ट को लोक हित में किया गया था, न कि इसे पूर्णतः विक्रय करने के आशय से।
- अपीलकर्त्ता का आरोप है कि प्रतिवादी-ट्रस्ट ने मूल आवंटन शर्तों का संदर्भ दिये बिना 18 जून 2011 को जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी निष्पादित कर दी।
- अपीलकर्त्ता का दावा है कि पावर ऑफ अटॉर्नी धारक ने भूमि पर 'ईडन ऑर्चर्ड' नामक एक कॉलोनी विकसित की और मूल आवंटन शर्तों का खुलासा किये बिना तीसरे पक्षकार को भूखंड विक्रय कर दिया।
- प्रत्यर्थी-ट्रस्ट का तर्क है कि यह अन्यसंक्रामण बाजार मूल्य पर विक्रय किया गया था, न कि रियायती आवंटन, तथा इसमें सटीक उद्देश्य निर्दिष्ट किये बिना केवल एक सामान्य शर्त सम्मिलित थी।
- प्रत्यर्थी ने आगे तर्क दिया कि कोई भी प्रतिबंधात्मक शर्त संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 10 का उल्लंघन होगी, जैसा कि उच्च न्यायालय ने कहा है।
- प्रत्यर्थी ने यह भी तर्क दिया कि 19 जनवरी 2012 का पुनर्ग्रहण आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने तीन प्रमुख विवाद्यकों की पहचान की: क्या उक्त भूमि अंतरण विक्रय था या आवंटन, क्या शर्तें अधिरोपित की गई थीं, और क्या ऐसी शर्तें संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 10 का उल्लंघन करती है।
- न्यायालय ने निर्धारित किया कि विचाराधीन भूमि (सर्वेक्षण संख्या 72/31 में एकड़ 3.01 ग्राम) 1989 में घोषित अभिलेखों के अनुसार सरकारी (पोरम्बोके) भूमि थी।
- प्रत्यर्थी-ट्रस्ट, एक धर्मार्थ संगठन होने के नाते, भूमि आवंटन के लिये आवेदन किया था, जिसे जी.ओ.एम.सं. 635, दिनांक 2 जुलाई 1990 के अनुसार संसाधित किया गया था।
- मेडक के जिला कलेक्टर ने तेलंगाना राज्य भूमि एवं भूमि राजस्व अन्यसंक्रामण नियम, 1975 के अंतर्गत 8 फरवरी 2001 को सशर्त भूमि आवंटित की।
- आवंटन के साथ तीन विशिष्ट शर्तें रखी गईं: भूमि का उपयोग केवल आवंटित उद्देश्य के लिये ही किया जाना चाहिये, निर्माण कार्य दो वर्षों के भीतर पूरा किया जाना चाहिये, तथा खुले क्षेत्रों में पेड़ लगाए जाने चाहिये।
- न्यायालय ने पाया कि भूमि अंतरण एक सांविधिक योजना के अधीन आवंटन था, न कि विक्रय जैसा कि प्रत्यर्थी-ट्रस्ट द्वारा दावा किया गया था और उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित किया गया था।
- न्यायालय ने कहा कि यद्यपि आवंटन पत्र में किसी विशिष्ट उद्देश्य का उल्लेख नहीं किया गया था, तथापि भूमि का उपयोग केवल धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये ही किया जा सकता था, क्योंकि यह एक धर्मार्थ ट्रस्ट को आवंटित की गई थी।
- प्रत्यर्थी-ट्रस्ट ने पहले ही 29 नवंबर 2011 के अपने पत्राचार और अपनी रिट याचिका में आवंटन की सशर्त प्रकृति को स्वीकार किया था।
- न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि उच्च न्यायालय ने अन्यसंक्रामण/आवंटन की सांविधिक योजना की अनदेखी करते हुए संव्यवहार को विक्रय के रूप में मानने में त्रुटी की।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 10, 1975 के नियमों और राजस्व बोर्ड के स्थायी आदेशों को रद्द या प्रभावित नहीं करती है, क्योंकि वे पूर्णत: पृथक् विधिक क्षेत्र में काम करते हैं।
- न्यायालय ने कहा कि 2011 में डॉ. पशुपुलेटि निरमाला हनुमंत राव ने आवंटन की शर्तों को प्रकट किये बिना जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी निष्पादित की, जो दुर्भावना को दर्शाता है।
- न्यायालय ने पाया कि प्रत्यर्थी-ट्रस्ट ने एक कॉलोनी विकसित करके तथा तीसरे पक्षकार को भूखंड बेचकर आबंटन की शर्तों का उल्लंघन किया, जो "विधि के विरुद्ध कपट" था।
- इन निष्कर्षों के आधार पर, उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णयों को अपास्त कर दिया और अपील को स्वीकार कर लिया।
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 10 क्या है?
- संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 10 संपत्ति अंतरण में ऐसी शर्तों पर रोक लगाती है जो अंतरिती को संपत्ति में अपने हित का व्ययन करने से पूर्णत: रोकती हैं।
- कोई भी शर्त या परिसीमा जो नए स्वामी को संपत्ति विक्रय, दान देने या अन्यथा अंतरित करने से पूर्णत: रोकती है, उसे विधि के अधीन शून्य और अप्रवर्तनीय माना जाता है।
- विधि अन्यसंक्रामण पर इस तरह के पूर्ण प्रतिबंधों को लोक नीति के विरुद्ध मानती है, क्योंकि वे संपत्ति के अधिकारों को अनुचित रूप से प्रतिबंधित करती हैं और बाजार में संपत्ति के मुक्त प्रवाह में बाधा उत्पन्न करती हैं।
- इसका एक विशिष्ट अपवाद पट्टा करारों के संदर्भ में मान्य है, जहाँ अंतरण को प्रतिबंधित करने वाली शर्तों की अनुमति दी जाती है यदि वे पट्टाकर्त्ता (भू- स्वामी) या पट्टाकर्त्ता के अधीन दावा करने वालों को लाभ पहुँचाती हैं।
- एक अन्य अपवाद कुछ महिलाओं (हिंदू, मुस्लिम या बौद्ध महिलाओं के सिवाय) को अंतरित संपत्ति के लिये विद्यमान है, जहाँ विवाह के दौरान उन्हें संपत्ति अंतरित करने से रोकने के लिये शर्तें अधिरोपित की जा सकती हैं।
- यह धारा अनिवार्यतः संपत्ति के अधिकारों को संविदा की स्वतंत्रता के साथ संतुलित करती है, तथा यह सुनिश्चित करती है कि एक बार संपत्ति अंतरित हो जाने पर, नए स्वामी को सामान्यत: इसे आगे अंतरित करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त होता है।
- इस धारा के पीछे सिद्धांत यह है कि विधि संपत्ति के मुक्त अन्यसंक्रामण का पक्षधर है और सामान्यत: संपत्ति अंतरण पर स्थायी प्रतिबंधों को अस्वीकार करता है।