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सांविधानिक विधि

ज्ञानवापी मस्जिद मामले की वैधता

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 21-Dec-2023

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने हिंदू भक्तों द्वारा मस्जिद में पूजा करने के मुकदमे को चुनौती देने वाली यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद समिति की पाँच याचिकाओं को खारिज़ कर दिया है। उनका तर्क था कि वाराणसी मस्जिद को लेकर वर्ष 1991 में दायर मामले को उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के तहत अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।

न्यायालय ने अनुमति दी कि मामला वाराणसी सिविल न्यायाधीश के न्यायालय द्वारा उठाया जाएगा और वाराणसी सिविल न्यायाधीश के न्यायालय को इसे जल्दी से निपटाने तथा छह महीने के भीतर कार्यवाही पूर्ण करने का निर्देश दिया।

ज्ञानवापी मामले का घटनाक्रम क्या है?

  • इतिहास:
    • ऐसा माना जाता है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण वर्ष 1669 में मुगल शासक औरंगज़ेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर कराया था, जैसा कि साकिब खान ने अपनी पुस्तक यासिर आलमगिरी में उद्धृत किया है।
    • ज्ञानवापी मस्जिद का मामला वर्ष 1991 से विवाद में है, जब काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों के वंशधर पंडित सोमनाथ व्यास सहित तीन लोगों ने वाराणसी के सिविल न्यायाधीश के न्यायालय में मुकदमा दायर किया और दावा किया कि औरंगज़ेब ने भगवान विश्वेश्वर के मंदिर को ध्वस्त कर दिया था।
  • वर्ष 1991 में:
    • वाराणसी में पुजारी एक मस्जिद के अंदर प्रार्थना करने की अनुमति मांगने के लिये न्यायालय गए।
      • उनका तर्क था कि मस्जिद का निर्माण मूल काशी विश्वनाथ मंदिर की जगह पर किया गया था।
      • उनके अनुरोध में मस्जिद की ज़मीन हिंदुओं को देने की भी मांग की गई।
    • मस्जिद की प्रबंधन समिति ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के विरुद्ध है, लेकिन निचले न्यायालय ने वर्ष 1998 में उनकी चुनौती खारिज़ कर दी।
      • समिति ने इसके लिये इलाहाबाद उच्च न्यायालय से भी संपर्क किया।
  • वर्ष 2019 में:
    • एम. सिद्दीक बनाम महंत सुरेश दास और अन्य (2019) मामले में निर्णय के बाद, वाराणसी सिविल कोर्ट में एक नया अनुरोध किया गया था।
      • उस अनुरोध में ज्ञानवापी मस्जिद के इतिहास की पुरातात्विक जाँच की मांग की गई थी।
    • जिन लोगों ने वर्ष 1991 में मुकदमा दायर किया था, वे मूल अनुरोध की फिर से जाँच करने के लिये वाराणसी के सिविल कोर्ट में वापस गए।
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फरवरी 2020 में कार्यवाही पर रोक लगा दी।
  • वर्ष 2021 में:
    • श्रीमती राखी सिंह और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य (2022) मामले में वाराणसी के न्यायालय ने हिंदू महिलाओं को इस तथ्य पर विचार करते हुए मस्जिद में पूजा करने की अनुमति दी कि वे 15 अगस्त, 1947 के बाद वहाँ पूजा करती थीं और इस कारण उपासना स्थल अधिनियम, 1991 उन पर लागू नहीं होता है।
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) सर्वेक्षण:
    • वाराणसी न्यायालय द्वारा मस्जिद के ASI सर्वेक्षण की अनुमति दी गई थी, जिस पर उच्चतम न्यायालय ने रोक लगा दी थी, लेकिन बाद में अंजुमन इंतज़ामिया मसाजिद वाराणसी बनाम राखी सिंह और 8 अन्य (2023) और SC के मामले में वर्ष 2023 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इसे फिर से शुरू किया गया।

इस मामले में न्यायालय का निष्कर्ष क्या था?  

  • मुकदमा वर्जित नहीं:
    • वादी द्वारा वर्ष 1991 में दायर किया गया मुकदमा उपासना स्थल अधिनियम, 1991 की धारा 4 के प्रावधानों द्वारा वर्जित नहीं है और सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश 7 नियम 11 के तहत वाद को खारिज़ नहीं किया जा सकता है।
  • ट्रायल कोर्ट को निर्देश:
    • उच्च न्यायलय मामले की त्वरित सुनवाई को लेकर चिंतित था और उसने कहा कि निचला न्यायालय किसी भी पक्ष को अनावश्यक स्थगन नहीं देगा। यदि स्थगन दिया गया तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
  • ASI को निर्देश:
    • ASI वर्ष 1991 के मामले में वही रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा और यदि यह पाया जाता है कि आगे सर्वेक्षण की आवश्यकता है, जिनपर ASI द्वारा ध्यान नहीं दिया गया, तो निचला न्यायालय आदेश दिनांक 8 अप्रैल, 2021 के मद्देनज़र आगे सर्वेक्षण करने के लिये आवश्यक निर्देश जारी करेगा।