भ्रामक विज्ञापन
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वाणिज्यिक विधि

भ्रामक विज्ञापन

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 09-May-2024

स्रोत: द हिंदू  

परिचय:

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने उपभोक्ताओं को भ्रामक विज्ञापनों से बचाने के लिये निर्देश जारी किये हैं। यह निर्देश पतंजलि आयुर्वेद द्वारा प्रचारित भ्रामक विज्ञापनों से जुड़े एक मामले में दिये हैं। एक समाधान देते हुए न्यायालय ने आदेश दिया कि विज्ञापनदाता अपनी स्व-घोषणाएँ प्रस्तुत करके केबल टीवी नेटवर्क विनियम, 1994 का पालन करें।

उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देश:

  • सर्वप्रथम न्यायालय ने उत्पाद प्रचार में सार्वजनिक हस्तियों, प्रभावशाली लोगों और मशहूर हस्तियों के समर्थन के महत्त्वपूर्ण प्रभाव को स्वीकार किया। इस प्रभाव को पहचानते हुए, न्यायालय ने विज्ञापन प्रयासों में उत्पादों का समर्थन करते समय इन व्यक्तियों के लिये विवेक और जवाबदेही बरतने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
  • भ्रामक विज्ञापन के अंतरिम समाधान के रूप में, विज्ञापनदाताओं को विज्ञापन की अनुमति देने से पहले वर्ष 1994 के केबल टेलीविज़न नेटवर्क नियमों के अनुसार एक स्व-घोषणा प्रदान करनी होगी।
  • न्यायालय ने मंत्रालय को चार सप्ताह के भीतर विशेष रूप से प्रेस और प्रिंट मीडिया के लिये स्व-घोषणा अपलोड करने के लिये एक अलग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म स्थापित करने का निर्देश दिया है। एक बार पोर्टल शुरू हो जाने पर, विज्ञापनदाताओं को प्रिंट मीडिया में कोई भी विज्ञापन प्रकाशित करने से पहले अपनी स्व-घोषणाएँ जमा करनी होंगी।

भ्रामक विज्ञापन क्या हैं?

  • भ्रामक विज्ञापन उन प्रचार संदेशों या अभियानों को संदर्भित करता है, जिनमें मिथ्या या भ्रामक जानकारी होती है, जो उपभोक्ताओं को सदोष या अधूरी जानकारी के आधार पर निर्णय लेने के लिये प्रेरित करती है।
  • इसमें किसी उत्पाद की विशेषताओं, लाभों या प्रभावशीलता के बारे में झूठे दावे, साथ ही भ्रामक मूल्य निर्धारण या समर्थन शामिल हो सकते हैं।
  • भारत सहित कई देशों में उपभोक्ताओं की सुरक्षा और बाज़ार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भ्रामक विज्ञापनों को रोकने तथा दंडित करने के लिये कानून एवं नियम मौजूद हैं।

भारत में भ्रामक विज्ञापन से संबंधित कानून:

  • भारत में, कई कानूनों और विनियमों का उद्देश्य भ्रामक विज्ञापनों को संबोधित करना है। भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित कुछ प्रमुख कानूनों और विनियमों में शामिल हैं:
    • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019: इस अधिनियम का उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना और भ्रामक विज्ञापनों सहित अनुचित व्यापार प्रथाओं को रोकना है। यह भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित शिकायतों के निवारण हेतु उपभोक्ताओं के लिये तंत्र स्थापित करता है।
    • केबल टेलीविज़न नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 (CTN अधिनियम): यह अधिनियम भारत में केबल टेलीविज़न नेटवर्क के संचालन को नियंत्रित करता है। यह उन विज्ञापनों के प्रसारण पर रोक लगाता है जो अशोभनीय, आपत्तिजनक या दर्शकों के हितों के लिये हानिकारक हैं।
    • भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI): यह कोई कानून नहीं है, ASCI एक स्व-नियामक संगठन है जो भारत में विज्ञापन सामग्री की निगरानी और विनियमन करता है। यह ज़िम्मेदार विज्ञापन प्रथाओं को बढ़ावा देता है और अपने स्व-नियमन संहिता के माध्यम से भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित शिकायतों का समाधान करता है।
    • औषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954: यह अधिनियम उन विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है जो "जादुई" या "चमत्कारी" समझी जाने वाली औषधियों या उपचारों का उपयोग करके कुछ बीमारियों को ठीक करने का दावा करते हैं। इसका उद्देश्य अप्रामाणित या धोखाधड़ी वाले चिकित्सा उपचारों के प्रचार को रोकना है।

भ्रामक विज्ञापन के लिये क्या दण्ड निर्धारित हैं?

  • औषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 (DOMA):
    • DOMA की धारा 4 के तहत, औषधियों के संबंध में भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करना प्रतिषेधित है, जिसके लिये कारावास या ज़ुर्माना हो सकता है।
    • इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई व्यक्ति किसी औषधि के संबंध में किसी विज्ञापन के प्रकाशन में भाग नहीं लेगा यदि उस विज्ञापन में कोई ऐसी बात है—
      • जिसमें उस औषधि की वास्तविक प्रकृति के बारे में कोई मिथ्या धारणा प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः बनती है; अथवा
      • जिसमें उस औषधि के लिये कोई मिथ्या दावा किया गया है; अथवा
      • जो अन्यथा किसी तात्त्विक विशिष्ट में मिथ्या या भ्रामक है।
    • DOMA की धारा 7 में कहा गया है कि जो कोई इस अधिनियम [या तद्धीन बनाए गए नियमों] के उपबंधों का उ‍ल्लंघन करेगा, वह, सिद्धदोष ठहराए जाने पर, दंडनीय होगा।
      • प्रथम दोषसिद्धि की दशा में, कारावास से, जिसकी अवधि छह माह तक हो सकेगी, या ज़ुर्माने से, या दोनों से दण्डनीय होगा।
      • किसी पश्चातवर्ती दोषसिद्धि की दशा में, कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या ज़ुर्माने, या दोनों से दण्डनीय होगा।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA):
    • CPA की धारा 89 में मिथ्या या भ्रामक विज्ञापनों के लिये कठोर दण्ड का प्रावधान है।
    • इसमें कहा गया है कि कोई भी निर्माता या सेवा प्रदाता जो सदोष या भ्रामक विज्ञापन देता है, जो उपभोक्ताओं के हितों के लिये हानिकारक है, उसे दो वर्ष तक का कारावास और दस लाख रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है; और उसके पश्चात् प्रत्येक अपराध के लिये पाँच वर्ष का कारावास तथा पचास लाख रुपए के ज़ुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।

भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) क्या है?

  • यह भारत में एक स्व-नियामक निकाय के रूप में कार्य करता है, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाना है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1985 में ज़िम्मेदार विज्ञापन प्रथाओं को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने के लिये की गई थी कि विज्ञापनों में नैतिक मानकों का पालन हो।
  • भ्रामक कृत्य या भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित शिकायतों का समाधान करना है।
  • उपभोक्ता, प्रतिस्पर्द्धी और अन्य हितधारक ASCI के पास शिकायत दर्ज कर सकते हैं, यदि उन्हें लगता है कि कोई विज्ञापन स्व-विनियमन संहिता का उल्लंघन करता है तत्पश्चात् इन शिकायतों की जाँच करने के साथ-साथ उचित कार्रवाई करता है।

भ्रामक विज्ञापन का ऐतिहासिक मामला क्या है?

  • हैवेल्स इंडिया लिमिटेड बनाम अमृतांशु खेतान और अन्य, (वर्ष 2015) के मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह पता लगाने के लिये दो आवश्यक तत्त्व निर्धारित किये कि कोई विज्ञापन भ्रामक है या नहीं।
    • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि किसी विज्ञापन को भ्रामक बनाना, उसे अपने इच्छित दर्शकों को धोखा देना माना जाएगा। अथवा,
    • इसमें अपनी भ्रामक प्रकृति के कारण उपभोक्ता के व्यवहार को प्रभावित करने या प्रतिस्पर्द्धियों को नुकसान पहुँचाने की क्षमता हो।
    • ये तत्त्व विज्ञापनों की वैधता और नैतिकता निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण हैं।

निष्कर्ष:

  • निष्कर्षतः भ्रामक विज्ञापन के संबंध में उच्चतम न्यायालय के हालिया निर्देश विज्ञापनदाताओं और समर्थनकर्त्ताओं के बीच साझा उत्तरदायित्व की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। विज्ञापन जारी करने से पहले स्व-घोषणा को अनिवार्य करना एक अंतरिम समाधान के रूप में कार्य करता है, जो विज्ञापन उद्योग में पारदर्शिता और जवाबदेहिता को बढ़ावा देता है।