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सांविधानिक विधि

संविधान के तहत अध्यक्ष

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 16-Jan-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष को यह निर्धारित करने का कार्य सौंपा गया था कि क्या शिवसेना के भीतर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के नेतृत्त्व वाले गुट के विधानसभा सदस्यों (MLA) ने स्वेच्छा से अपने दल की सदस्यता त्याग दी है। अध्यक्ष का निर्णय इस तथ्य पर निर्भर करता है कि क्या अलग हुए समूह ने शिवसेना के व्हिप/सचेतक के विरुद्ध मतदान करके संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत निरर्हता अर्जित की है। प्रमुख कारकों में एकनाथ शिंदे का मुख्यमंत्री पद पर पदोन्नत होना, शिवसेना के अधिकांश विधायकों का शिंदे समूह में शामिल होना तथा मूल शिवसेना का विधानसभा में अल्पमत की स्थिति में होना शामिल है किंतु  इन सभी को दसवीं अनुसूची के तहत निरर्हता संबधी प्रश्न के लिये विसंगत ठहराया गया।

भारतीय संविधान में अध्यक्ष से संबंधित अनुच्छेद क्या हैं?

  • अनुच्छेद 178: विधान सभा का अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष:
    • प्रत्येक राज्य की विधान सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने दो सदस्यों को अपना अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष चुनेगी और जब-जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है तब-तब विधानसभा किसी अन्य सदस्य को, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनेगी।
  • अनुच्छेद 179: अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, पदत्याग एवं पद से हटाया जाना-
    • विधानसभा के अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष के रूप में पद धारण करनेवाला सदस्य-
      • यदि वह विधानसभा का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद रिक्त कर देगा;
      • किसी भी समय, यदि वह सदस्य अध्यक्ष है तो उपाध्यक्ष को संबोधित तथा यदि वह सदस्य उपाध्यक्ष है तो अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा; और
      • विधानसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित सकंल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा: परंतु खंड (ग) के प्रयोजन के लिये कोई संकल्प तब तक प्रतावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रतावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो: परंतु यह और कि जब कभी विधानसभा का विघटन किया जाता है तो विघटन के पश्चात् होने वाले विधानसभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहले तक अध्यक्ष अपने पद को रिक्त नहीं करेगा।
  • अनुच्छेद 180: अध्यक्ष के पद के कर्त्तव्यों का पालन करने अथवा अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष अथवा अन्य व्यक्ति शक्ति—
    • जब अध्यक्ष का पद रिक्त है तो उपाध्यक्ष, अथवा यदि उपाध्यक्ष का पद भी रिक्त है तो विधानसभा का ऐसा सदस्य, जिसको राज्यपाल इस प्रयोजन के लिये नियुक्त करें, उस पद के कर्त्तव्यों का पालन करेगा।
    • विधानसभा की किसी बैठक से अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष अथवा यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति, जो विधानसभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए, या यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्ति, जो विधानसभा द्वारा अवधारित किया जाए, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा।
  • अनुच्छेद 181: जब अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष को पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन हो तब उसका पीठासीन न होना -
    • विधानसभा की किसी बैठक में, जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब अध्यक्ष, या जब उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उपाध्यक्ष, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा तथा अनुच्छेद 180 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वह उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अनुपस्थित है।
  • लोकसभा का अध्यक्ष:
    • अनुच्छेद 93 से 97 में लोकसभा के अध्यक्ष से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।

संविधान की दसवीं अनुसूची क्या है ?  

  • भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची को अमूमन "दल-बदल विरोधी कानून" के रूप में जाना जाता है। इसे वर्ष 1985 में 52वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान में शामिल किया गया था जिसे दल-बदल विरोधी कानून अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है। दसवीं अनुसूची का मुख्य उद्देश्य निर्वाचित प्रतिनिधियों को विधायी निकाय के लिये चयनित किये जाने के बाद अपना दल छोड़कर दूसरे दल  में शामिल होने से रोकना है।

दसवीं अनुसूची के प्रमुख उपबंधों में शामिल हैं:

  • दल-बदल की परिभाषा:
    • दसवीं अनुसूची दल-बदल को स्वेच्छा से अपने राजनीतिक दल की सदस्यता त्यागने अथवा विधायिका में दल के आधिकारिक व्हिप के विरुद्ध मतदान करने के रूप में परिभाषित करती है।
  • निरर्हता:
    • यदि संसद सदस्य (सांसद) अथवा विधानसभा सदस्य (विधायक) दल-बदल विरोधी प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं तो उन्हें निरर्हित (Disqualified) ठहराया जा सकता है।
  • पीठासीन अधिकारी द्वारा निर्णय:
    • निरर्हता पर निर्णय संबंधित विधायी निकाय के पीठासीन अधिकारी (लोकसभा अथवा राज्य विधानसभाओं के मामले में अध्यक्ष, तथा राज्यसभा अथवा राज्य विधानपरिषदों के मामले में सभापति) द्वारा लिया जाता है।
  • विभाजन संबंधी छूट:
    • कानून कुछ शर्तों के तहत किसी राजनीतिक दल में विभाजन की अनुमति देता है तथा ऐसे मामलों में जो सदस्य दल-बदल नहीं करेगा उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।
  • अपवाद:
    • दसवीं अनुसूची में कुछ अपवाद भी सूचीबद्ध हैं, जैसे कि जब कोई सदस्य दल के निर्देशों का अनुपालन कर मत देता अथवा या ऐसे मामले में मत से प्रविरत रहता है जिसमें व्हिप जारी नहीं किया गया है।

निष्कर्ष:

अध्यक्ष द्वारा सदस्यों की निरर्हता के कारण संविधान के तहत दसवीं अनुसूची तथा अध्यक्ष की शक्ति के संबंध में बहस शुरू हो गई है।