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सांविधानिक विधि
राज्य के विधियों पर राज्यपाल की सहमति
« »01-Apr-2024
स्रोत: The Indian Express
परिचय:
हाल ही में, केरल सरकार ने केरल के राज्यपाल द्वारा संदर्भित सात विधेयकों में से चार पर सहमति रोकने की भारत के राष्ट्रपति की कार्रवाई को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में अपील किया। राज्य ने सात विधेयकों पर दो वर्ष तक की सहमति रोकने की राज्यपाल की कार्रवाई को भी चुनौती दी।
इस विवाद की पृष्ठभूमि क्या थी?
ये विधेयक राज्य विश्वविद्यालयों एवं सहकारी समितियों से संबंधित विधियों में संशोधन से संबंधित हैं।
- राज्य ने बताया कि, राज्यपाल ने इन विधेयकों को विधानसभा द्वारा पारित किये जाने की तारीख से 7 माह से लेकर 24 माह तक लंबे अंतराल के लिये लंबित रखा था।
- इससे पहले, राज्य ने राज्यपाल की निष्क्रियता को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की थी।
- 20 नवंबर, 2023 को उच्चतम न्यायालय द्वारा याचिका पर नोटिस जारी करने के बाद राज्यपाल ने सातों विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया।
- 29 नवंबर, 2023 को याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने विधेयकों को रोककर शांत बैठे रहने के लिये राज्यपाल की आलोचना की।
- 29 फरवरी, 2024 को राष्ट्रपति ने चार विधेयकों पर सहमति रोक दी तथा तीन अन्य विधेयकों को मंज़ूरी दे दी।
- निम्नलिखित विधेयकों के लिये राष्ट्रपति की सहमति रोक दी गई थी।
- विश्वविद्यालय विधि (संशोधन) (नंबर 2) विधेयक, 2021
- केरल सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक, 2022
- विश्वविद्यालय विधि (संशोधन) विधेयक, 2022
- विश्वविद्यालय विधि (संशोधन) (नंबर 3) विधेयक, 2022
विधेयकों पर राज्यपाल की शक्तियाँ क्या हैं?
- अनुच्छेद 200:
- भारत के संविधान, 1950 (COI) का अनुच्छेद 200 किसी राज्य की विधान सभा द्वारा पारित विधेयक को राज्यपाल के समक्ष सहमति के लिये प्रस्तुत करने की प्रक्रिया की रूपरेखा प्रस्तुत करता है, जो या तो सहमति दे सकता है, अनुमति को रोक सकता है या विधेयक को विचार के लिये राष्ट्रपति के पास आरक्षित कर सकता है।
- राज्यपाल सदन या सदनों द्वारा पुनर्विचार का अनुरोध करने वाले संदेश के साथ विधेयक को वापस भी कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 201:
- इसमें कहा गया है कि जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष विचार के लिये आरक्षित होता है, तो राष्ट्रपति उस विधेयक पर सहमति दे सकते हैं या उस पर असहमति भी व्यक्त कर सकते हैं।
- राष्ट्रपति राज्यपाल को विधेयक के संदर्भ में पुनर्विचार के लिये राज्य के विधानमंडल के सदन या सदनों को वापस करने का निर्देश भी दे सकता है।
- राज्यपाल के पास उपलब्ध विकल्प:
- वह सहमति दे सकता है, या वह विधेयक के कुछ प्रावधानों, या विधेयक पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करते हुए इसे विधानसभा को वापस भेज सकता है।
- वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रख सकता है। जहाँ राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक राज्य उच्च न्यायालय की स्थिति को खतरे में डालता है, वहाँ आरक्षण अनिवार्य है।
- हालाँकि, यदि विधेयक निम्नलिखित प्रकृति का हो तो राज्यपाल उसे आरक्षित भी कर सकता है:
- संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) का विरोध करने वाले।
- देश के व्यापक हित के विरुद्ध।
- गंभीर राष्ट्रीय महत्त्व वाले।
- COI के अनुच्छेद 31A के अंतर्गत संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण से संबंधित।
- एक अन्य विकल्प द्वारा सहमति को रोका जा सकता है, लेकिन यह सामान्यतः किसी भी राज्यपाल द्वारा नहीं किया जाता है, क्योंकि यह एक बेहद अलोकप्रिय कार्रवाई होगी।
क्या राज्यपाल अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते हुए किसी विधेयक पर अपनी सहमति रोक सकते हैं?
- जबकि COI के अनुच्छेद 200 को पढ़ने से पता चलता है कि राज्यपाल अपनी सहमति रोक सकते हैं, विशेषज्ञ सवाल करते हैं कि क्या वह केवल मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही ऐसा कर सकते हैं।
- संविधान में प्रावधान है कि राज्यपाल अपनी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग अनुच्छेद 154 के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कर सकता है।
- बड़ा प्रश्न यह है कि, विधानसभा द्वारा विधेयक पारित होने पर राज्यपाल को सहमति रोकने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिये।
इस प्रक्रिया में राष्ट्रपति की क्या भूमिका है?
- ऐसी स्थिति में जहाँ कोई विधेयक, राष्ट्रपति के पास विचार के लिये भेजा जाता है, राष्ट्रपति या तो सहमति दे सकता है या रोक सकता है।
- यदि सहमति रोक दी जाती है, तो राष्ट्रपति राज्यपाल से विधेयक को पुनर्विचार के लिये राज्य विधानमंडलों को वापस करने का अनुरोध करता है।
- राज्य सरकार के पास विधेयक पर पुनर्विचार करने के लिये छः महीने का समय होता है, ऐसा करने में विफल रहने पर यह विधेयक रद्द हो जाता है।
- यदि विधेयक, राज्य विधानमंडल द्वारा एक बार पुनःपारित हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास वापस भेजा जाना चाहिये, जो राज्यपाल के विपरीत, पुनर्विचारित विधेयक पर सहमति देने के लिये बाध्य नहीं है।
- यह एकमात्र ऐसी स्थिति है जिसमें राज्य सरकारों को अपनी विधि बनाने की प्रक्रिया में अंतिम अधिकार नहीं है।
निष्कर्ष:
इसलिये यह स्पष्ट है कि विधेयकों को 11-24 महीने की अवधि तक लंबित रखने के बाद राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को आरक्षण देना COI के अनुच्छेद 200 के अधीन अपने संवैधानिक कर्त्तव्य एवं कार्य को पूरा करने से बचने के लिये किया गया प्रयास है। इसलिये, राज्यपालों को अनुच्छेद 200 के दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिये, विधेयकों के बारे में अपनी चिंताओं को तुरंत बताना चाहिये तथा उन्हें पुनर्विचार के लिये राज्य विधानमंडल को वापस भेजना चाहिये। यह एक उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करता है तथा विधानमंडल के अधिकारों का सम्मान करता है।