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सांविधानिक विधि

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 47

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 01-Sep-2025

साधना शिवहरे बनाम राजस्थान राज्य 

"आबकारी आयुक्त और प्रमुख सचिव को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए उपस्थित होकर संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 को ध्यान में रखते हुए राज्य की शराबबंदी नीति प्रस्तुत करने का निदेश दिया गया है। उन्हें मंदिरों, स्कूलों, धार्मिक स्थलों और घनी आबादी वाले बाज़ारों के पास शराब की दुकानों के आवंटन को भी उचित ठहराना होगा, जो प्रथम दृष्टया इन सांविधानिक उपबंधों का उल्लंघन करते प्रतीत होते हैं।" 

न्यायमूर्ति समीर जैन 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति समीर जैन नेराज्य को घनी आबादी वाले क्षेत्रों और लोक संस्थानों के पास शराब की दुकानों के आवंटन पर स्पष्टीकरण देने का निदेश दिया, जिसमें कहा गया कि यह प्रथम दृष्टया संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 का उल्लंघन करता है, और राज्य की संयम नीति की मांग की। 

  • राजस्थानउच्च न्यायालय नेसाधना शिवहरे बनाम राजस्थान राज्य (2025)मामले में यह निर्णय दिया । 

साधना शिवहरे बनाम राजस्थान राज्य, 2025 मामलेकी पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • याचिकाकर्त्ता साधना शिवहरे, पत्नी श्री परशुराम शिवहरे को आबकारी नीति के अनुसार वित्तीय वर्ष 2021-22 से जयपुर में वार्ड संख्या 71 (H) के किशनपोल बाजार में स्थित कम्पोजिट शराब की दुकान संख्या 98 आवंटित की गई थी। 
  • वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिये उक्त दुकान की नीलामी नहीं हुई, और परिणामस्वरूप, बातचीत के बाद, समग्र दुकान को मंजूरी दी गई और वर्तमान याचिकाकर्त्ता को आवंटित किया गया। 
  • 02 जून 2024 को, उचित विचार-विमर्श के बाद, माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित नियामक संविधि, विधि और पूर्व निर्णयों के प्रावधानों के अनुसार उक्त दुकान के स्थान और मानचित्र को मंजूरी दी गई। 
  • स्वीकृति आदेश वैध रहा और लाइसेंस शुल्क में 5 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 2025-26 तक जारी रहा। 
  • याचिकाकर्त्ता ने दलील दी कि राज्य/प्रत्यर्थियों द्वारा अधिरोपित किये गए नियमों और शर्तों का उसके द्वारा कभी उल्लंघन नहीं किया गया। 
  • 13 अगस्त 2025 कोयाचिकाकर्त्ता को एक नोटिस प्राप्त हुआ जिसमें कथित लोक  आक्रोश के कारण उसे दुकान का स्थान किसी आपत्तिजनक क्षेत्र में स्थानांतरित करने/परिवर्तित करने का निदेश दिया गया था। 
  • उक्त नोटिस की प्रति याचिकाकर्त्ता को उपलब्ध नहीं कराई गई। 
  • उक्त नोटिस से व्यथित होकर याचिकाकर्त्ता ने अपने लाइसेंस प्राप्त परिसर को स्थानांतरित करने के निदेश को चुनौती देते हुए वर्तमान रिट याचिका दायर की है। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • माननीय न्यायालय ने कहा किभारत के संविधान के अनुच्छेद 47के अनुसार, राज्य औषधीय प्रयोजनों को छोड़कर, स्वास्थ्य के लिये हानिकारक मादक पेय और दवाओं के सेवन पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करेगा। 
  • न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 47 के अंतर्गत आने वाली शराब और वस्तुएँ "वाणिज्य से बाहर (res extra commercium)” के सिद्धांत द्वारा शासित होती हैं। 
  • न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता को शराब बेचने का कोई अधिकार नहीं है। 
  • न्यायालय ने टिप्पणी की कि संयम नीति के होते हुए भी, राज्य ने वर्षों से सार्वजनिक बाजार में एक स्थान को मंजूरी दी है। 
  • न्यायालय ने कहा कि घनी आबादी वाले बाजारों में शराब की दुकानों का आवंटन प्रथम दृष्टया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 के उपबंधों के विरुद्ध प्रतीत होता है। 
  • न्यायालय ने निदेश दिया कि आबकारी विभाग के आयुक्त और प्रधान सचिव अगली सुनवाई पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उपस्थित होंगे। 
  • न्यायालय ने राज्य प्राधिकारियों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 के अनुसार संयम नीति प्रस्तुत करने का निदेश दिया। 
  • न्यायालय ने राज्य को निदेश दिया कि वह लोक क्षेत्रों में शराब की दुकानों के आवंटन के लिये उचित औचित्य प्रस्तुत करे, जहाँ मंदिर, स्कूल और धार्मिक प्रतिष्ठान स्थित हैं। 
  • न्यायालय ने राज्य को घनी आबादी वाले बाजारों में दुकानों के आवंटन के संबंध में स्पष्टीकरण देने का निदेश दिया, जो प्रथम दृष्टया भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 के प्रावधानों के विरुद्ध प्रतीत होता है। 
  • प्रत्यर्थियों को नोटिस जारी किया गया और मामले को 28.08.2025 को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किया गया (इसके बाद 09.09.2025 को सुनवाई की जाएगी)। 

संविधान का अनुच्छेद 21 और 47 क्या है? 

अनुच्छेद 21 – प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण 

  • अनुच्छेद 21 में कहा गया है: "किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं।" 
  • यह मौलिक अधिकार प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के बुनियादी मानवाधिकारों की रक्षा करता है, तथा यह सुनिश्चित करता है कि राज्य उचित विधिक प्रक्रिया का पालन किये बिना मनमाने ढंग से व्यक्तियों को इन अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता। 

अनुच्छेद 47 – पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्त्तव्य 

  • अनुच्छेद 47 में कहा गया है: "राज्य, अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्त्तव्यों में मानेगा और राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक औषधियों के औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।" 
  • यह निदेशक तत्त्व राज्य पर लोक स्वास्थ्य में सुधार करने का सांविधानिक कर्त्तव्य  डालता है और विशेष रूप से चिकित्सा उपयोग को छोड़कर हानिकारक मादक पदार्थों के निषेध की दिशा में प्रयास करने का आदेश देता है। 

क्या घनी आबादी वाले क्षेत्रों में शराब की दुकानों का आवंटन संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 के विपरीत है? 

  • अनुच्छेद 47 राज्य को मादक पेय पदार्थों पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में काम करने का सांविधानिक अधिदेश देता है।  
  • अनुच्छेद 47 के कारण शराब "res extra commercium" (वाणिज्य से बाहर की वस्तुएँ) के अंतर्गत आती है।  
  • व्यक्तियों को शराब बेचने का कोई निहित अधिकार नहीं है 
  • मंदिरों, स्कूलों और पवित्र स्थानों वाले घनी आबादी वाले बाजारों में शराब की दुकानों का आवंटन "प्रथम दृष्टया" अनुच्छेद 21 और 47 दोनों के साथ असंगत प्रतीत होता है।