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आपराधिक कानून

लिव-इन पार्टनर्स के भरण-पोषण के अधिकार

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 01-Sep-2025

के.पी. रवीन्द्रन नायर बनाम वसंता के.वी. 

"वास्तव में, घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के अधीन पीड़ित अर्थात् पृथक् रह रही पत्नी या साथ रहने वाला लिव-इन पार्टनर दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के अधीन निर्धारित अनुतोष से अधिक अनुतोष का हकदार होगा, अर्थात् साझी गृहस्थी में रहने का अधिकारी भी।" 

न्यायमूर्ति पंकज मिथल और प्रसन्ना बी. वराले 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति पंकज मिथल और प्रसन्ना बी. वराले नेएक व्यक्ति की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें उसके लिव-इन पार्टनर द्वारा दायर दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के भरण-पोषण के दावे की स्थिरता को चुनौती दी गई थी, जिसमें लिव-इन पार्टनर के भरण-पोषण के अधिकार के बारे में प्रश्न उठाए गए थे। 

  • उच्चतम न्यायालय ने के.पी. रवींद्रन नायर बनाम वसंथा के.वी. (2025)मामले में यह निर्णय दिया । 

के.पी. रवींद्रन नायर बनाम वसंता के.वी. (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • याचिकाकर्त्ता के.पी. रवींद्रन नायर और प्रत्यर्थी वसंथा के.वी. लिव-इन रिलेशनशिप में थे। 
  • प्रत्यर्थी ने 2021 के M.C. No. 107 के रूप में वडकारा में कुटुंब न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध भरण-पोषण की मांग करते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) के अधीन कार्यवाही शुरू की। 
  • प्रत्यर्थी ने अपनी भरण-पोषण याचिका में स्पष्ट रूप से कहा है कि वह याचिकाकर्त्ता के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में थी। 
  • याचिकाकर्त्ता ने केरल उच्च न्यायालय के समक्ष दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के भरण-पोषण आवेदन की स्थिरता को चुनौती दी थी।  
  • केरल उच्च न्यायालय ने OPCRL No. 572/2023 में दिनांक 11-03-2025 के आदेश द्वारा याचिकाकर्त्ता की चुनौती को खारिज कर दिया। 
  • केरल उच्च न्यायालय के निर्णय से व्यथित होकर याचिकाकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष डायरी संख्या 39456/2025 के अधीन विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) दायर की। 
  • याचिकाकर्त्ता का तर्क है कि लिव-इन पार्टनर दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण के हकदार नहीं हैं और कार्यवाही पोषणीय नहीं है। 
  • यह मामलाललिता टोप्पो बनाम झारखंड राज्य (2015) में अनुत्तरित संदर्भों के बाद दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन लिव-इन पार्टनर के लिये भरण-पोषण के अधिकारों के अनसुलझे विधिक प्रश्न से संबंधित है। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

केरल उच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ 

  • उच्च न्यायालय ने भरण-पोषण कार्यवाही को चुनौती देने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि प्रत्यर्थी का मामला यह था कि दोनों पक्षकार 2005 से पति-पत्नी के रूप में रह रहे थे। 
  • उच्च न्यायालय ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 लाभकारी विधान है, इसलिये दावा कायम रखने के लिये विवाह के कठोर सबूत की आवश्यकता नहीं है। 
  • उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जहाँपक्षकार लंबे समय तक साथ रहते हैं, वहाँ विवाह के पक्ष में उपधारणा की जाती है और भरण-पोषण से इंकार नहीं किया जा सकता। 
  • उच्च न्यायालय का निर्णय इस सिद्धांत पर आधारित था कियदि पक्षकार लंबे समय तक पति-पत्नी के रूप में एक साथ रहते हैं, तोवे दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के लाभकारी उपबंधों के अधीन भरण-पोषण पाने के हकदार हैं। 

उच्चतम न्यायालय  

  • न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता के इस तर्क पर गौर किया कि लिव-इन रिलेशनशिप मेंपार्टनरदण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन किसी भी तरह के भरण-पोषण का हकदार नहीं है। 
  • न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता का तर्क यह था कि पूरी कार्यवाही पूरी तरह से भ्रामक है और पोषणीय नहीं है।  
  • याचिकाकर्त्ता के अधिवक्ता की बात सुनने के बाद न्यायालय प्रत्यर्थी को नोटिस जारी करने के लिये इच्छुक था। 
  • न्यायालय ने निदेश दिया कि नोटिस छह सप्ताह के भीतर वापस किया जाए। 

क्या लिव-इन पार्टनर भरण-पोषण की मांग कर सकता है? 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 144 दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के स्थान पर प्रतिस्थापित हुई है, जो भरण-पोषण दावों से संबंधित थी 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144 विशेष रूप से भरण-पोषण दावों को नियंत्रित करती है और आर्थिक रूप से आश्रित व्यक्तियों के लिये एक समेकित विधिक ढाँचा प्रदान करती है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत भरण-पोषण प्रावधानों का उद्देश्य कुछ स्थितियों में आश्रित पति/पत्नी, संतानों और माता-पिता के वित्तीय हितों की रक्षा करना है। 
  • धारा 144 के अंतर्गत विशिष्ट श्रेणियों के व्यक्ति भरण-पोषण के लिये आवेदन कर सकते हैं, जिनमें आश्रित पति-पत्नी भी सम्मिलित हैं, जो आर्थिक रूप से आश्रित हैं और अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं। 
  • धारा 144 के अंतर्गत उपबंध वित्तीय असमानता को स्वीकार करता है जो पृथक् या विवाह-विच्छेद के बाद उत्पन्न हो सकती है तथा आश्रित पति-पत्नी को अपने साथी से भरण-पोषण की मांग करने की अनुमति देता है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144 में स्पष्ट रूप से लिव-इन पार्टनर को भरण-पोषण के लिये पात्र दावेदार के रूप में उल्लेख नहीं किया गया है, जबकि इसमें "आश्रित पति/पत्नी" का विशेष उल्लेख किया गया है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अधीन विधिक ढाँचे के अनुसार, धारा 144 के अधीन भरण-पोषण प्राप्त करने के लिये दावेदार को "आश्रित पति/पत्नी" के रूप में अपनी स्थिति स्थापित करनी होगी। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144 की कठोर निर्वचन के अधीन लिव-इन पार्टनर्स को "पति/पत्नी" के रूप में अपनी विधिक स्थिति स्थापित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि उपबंध विशेष रूप से आश्रितों को संदर्भित करता है। 

विधिक अनिश्चितता 

  • दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144 में परिवर्तन से लिव-इन पार्टनर्स द्वारा दावों की स्वीकार्यता पर स्पष्ट स्पष्टता नहीं मिली है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144 के अधीन "आश्रित पति/पत्नी" की व्याख्या यह निर्धारित कर सकती है कि क्या लिव-इन पार्टनर सफलतापूर्वक भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144 में "आश्रित पति/पत्नी" श्रेणी के अंतर्गत अर्हता प्राप्त करने के लिये लिव-इन पार्टनर्स को विवाह या वैवाहिक संबंध की उपधारणा स्थापित करने की आवश्यकता हो सकती है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144 के अधीन लिव-इन पार्टनर्स के लिये भरण-पोषण के अधिकारों का अंतिम निर्धारण उच्चतम न्यायालय से निर्णायक न्यायिक घोषणा की प्रतीक्षा में है। 

न्यायिक पूर्ण निर्णय की टिप्पणियाँ क्या हैं? 

  • ललिता टोप्पो बनाम झारखंड राज्य (2015) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने लिव-इन पार्टनर्स के भरण-पोषण के अधिकार के प्रश्न को एक बड़ी पीठ को सौंप दिया था, किंतु इसका उत्तर नहीं मिला। 
    • मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 2018 की उच्चतम न्यायालय की पीठ ने इस संदर्भ का उत्तर देने से इंकार कर दिया था, यह देखते हुए कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 लिव-इन पार्टनर्स को अधिक प्रभावी उपचार प्रदान करता है। 
    • न्यायालय ने 2018 के मामले में यह पाया कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अधीन, पीड़ित (पृथक् रह रही पत्नी या लिव-इन पार्टनर) को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन दिये जाने वाले अनुतोष से अधिक अनुतोष मिलेगा, जिसमें साझी गृहस्थी का अधिकार भी सम्मिलित है। 
  • कमला बनाम एम.आर. मोहन कुमार मामले में, उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 की कार्यवाही में विवाह का कठोर सबूत अनावश्यक है, विशेषकर जहाँ पक्षकारों ने समाज के सामने स्वयं को पति और पत्नी के रूप में प्रस्तुत किया है। 
    • इस प्रकार वर्तमान मामला, इस मामले पर एक निश्चित न्यायिक घोषणा के अभाव में, लिव-इन रिश्तों के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण उपबंधों के दायरे और आवेदन के संबंध में अनसुलझे विधिक प्रश्न को सामने लाता है।