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अंतर्राष्ट्रीय नियम

परमाणु दायित्व कानून में अस्पष्टताएँ

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 04-Sep-2023

परिचय

महाराष्ट्र के जैतपुर में छह परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों का निर्माण, जो विश्व स्तर पर सबसे बड़ा संभावित परमाणु ऊर्जा उत्पादन स्थल होगा, भारत के परमाणु दायित्व कानून से जुड़ी मौजूदा चुनौतियों के कारण रुका हुआ है। यह समस्या एक दशक से अधिक समय से बनी हुई है और परियोजना की प्रगति में बाधा बनी हुई है।

पृष्ठभूमि

  • जैतापुर परमाणु परियोजना एक दशक से अधिक समय से बाधित है इसमें मूल समझौता ज्ञापन पर वर्ष 2009 में वर्तमान कंपनी इलेक्ट्रीसाइट डी फ्रांस (EDF) की पूर्ववर्ती संस्था अरेवा के साथ हस्ताक्षर किये गए थे।
    • इस परियोजना का लक्ष्य महाराष्ट्र के जैतापुर में 9900 मेगावाट क्षमता के 6 परमाणु ऊर्जा रिएक्टर विकसित करना है।
  • वर्ष 2016 में EDF और NPCIL (न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) ने एक संशोधित समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
  • इसके बाद वर्ष 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्राँसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन की उपस्थिति में औद्योगिक प्रगति से संबंधित एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
  • EDF द्वारा छह परमाणु ऊर्जा रिएक्टर के निर्माण के लिये वर्ष 2020 में एक तकनीकी वाणिज्यिक प्रस्ताव प्रस्तुत करने के बावजूद, भारत के परमाणु दायित्व कानून के कारण यह सौदा लंबित है।
  • इसमें विचारणीय प्रश्न, आपूर्तिकर्त्ता दायित्व पर CLNDA (परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010) का दृष्टिकोण है।

भारत में परमाणु दायित्व को नियंत्रित करने वाले कानून

  • मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय परमाणु दायित्व व्यवस्था को वर्ष 1986 के चेरनोबिल आपदा के बाद मज़बूत किया गया था।
  • न्यूनतम राष्ट्रीय मुआवज़ा राशि तय करने के लिये वर्ष 1997 में पूरक मुआवज़ा पर व्यापक अभिसमय (CSC) भी अपनाया गया।
    • भारत अंतरराष्ट्रीय संधि, CSC का एक पक्ष है और यह वर्ष 2016 से राष्ट्रीय परमाणु दायित्व कानूनों की पूरक है।
    • CSC, परमाणु क्षति के सीमा पार दावों के निपटान के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है, जिससे कई देशों से जुड़ी परमाणु घटना की स्थिति में पीड़ितों के लिये मुआवज़ा प्राप्त करना आसान हो जाता है।
  • भारत ने परमाणु दुर्घटनाओं के पीड़ितों के लिये त्वरित मुआवज़ा तंत्र विकसित करने के लिये वर्ष 2010 में परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम (CLNDA) लागू किया। इसमें निम्नलिखित प्रावधान हैं:
    • यह कानून भारत में परमाणु क्षति के लिये दायित्व व्यवस्था स्थापित करता है।
    • यह परमाणु घटना की स्थिति में ऑपरेटर दायित्व और आपूर्तिकर्त्ता दायित्व दोनों का प्रावधान करता है।
    • इस अधिनियम में ऑपरेटर दायित्व संबंधी सीमाएँ निर्दिष्ट हैं और यह निर्धारित सीमा तक परमाणु क्षति के लिये मुआवज़े का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी है।
    • ऑपरेटर के दायित्व के साथ CLNDA के तहत आपूर्तिकर्त्ता के दायित्व का प्रावधान है यानी आपूर्तिकर्त्ता के कारण परमाणु संयंत्र में होने वाली दुर्घटना की स्थिति में आपूर्तिकर्त्ताओं से सहायता ली जा सकती है।

वाद संबंधी बिंदु

  • विवाद की जड़ CLNDA द्वारा प्रदत्त आपूर्तिकर्त्ता के दायित्व से संबंधित कानूनी प्रावधान से है।
  • नागरिक परमाणु दायित्व से संबंधित कानूनी ढाँचा परमाणु प्रतिष्ठान के संचालक के विशेष दायित्व के केंद्रीय सिद्धांत पर आधारित है।
  • CSC के अनुलग्नक की धारा 10 में "केवल" दो शर्तें निर्धारित की गई हैं जिसके अनुसार किसी देश के राष्ट्रीय कानून के तहत ऑपरेटर, आपूर्तिकर्त्ता पर दायित्व आरोपित कर सकते हैं:
    • यदि अनुबंध में इस पर स्पष्ट रूप से सहमति व्यक्त की गई है या;
    • यदि परमाणु घटना क्षति पहुँचाने के इरादे से किये गए किसी कार्य या चूक के परिणामस्वरूप होती है।
  • भारत ने इन दो शर्तों से परे जाकर, पहली बार अपने नागरिक परमाणु दायित्व कानून में ऑपरेटर के दायित्व के साथ आपूर्तिकर्त्ता दायित्व की अवधारणा पेश की, जिसमें इस बात की पहचान की गई कि कानून में दोष होने के कारण वर्ष 1984 की भोपाल गैस त्रासदी हुई थी।
  • कानून के लागू होने के बाद से परमाणु उपकरणों के विदेशी आपूर्तिकर्त्ता और साथ ही घरेलू आपूर्तिकर्त्ता भारत के साथ परमाणु समझौते को संचालित करने से सावधान हो गए हैं क्योंकि यह एकमात्र कानून है जहाँ आपूर्तिकर्त्ताओं को नुकसान का भुगतान करने के लिये कहा जा सकता है।
  • क्षति के मामले में बीमा की राशि पर असीमित देनदारी और अस्पष्टता के संभावित जोखिम की चिंता, आपूर्तिकर्त्ताओं को भारत के साथ परमाणु समझौता करने में बाधक बन रही है।
  • आपूर्तिकर्त्ताओं को मुख्य रूप से CLNDA की धारा 17(b) और S 46 के संबंध में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था।
    • धारा 17: ऑपरेटर को सहायता प्राप्त करने का अधिकार: परमाणु रिएक्टर के संचालक को, धारा 6 के अनुसार परमाणु क्षति के लिये मुआवज़े का भुगतान करने के बाद, निम्नलिखित स्थितियों में सहायता प्राप्त करने का अधिकार होगा–
      (a) ऐसा अधिकार स्पष्ट रूप से लिखित अनुबंध में उल्लिखित हो;
      (b) परमाणु घटना आपूर्तिकर्त्ता या उसके कर्मचारी के किसी कार्य के परिणामस्वरूप हुई हो, जिसमें सामग्री या सेवाओं की आपूर्ति निम्न गुणवत्ता की हो;
      (c) परमाणु घटना, परमाणु क्षति पहुँचाने के इरादे से किसी व्यक्ति के कृत्य या चूक के परिणामस्वरूप हुई हो।
    • धारा 46 - यह अधिनियम किसी भी अन्य कानून के अतिरिक्त होगा: इस अधिनियम के प्रावधान किसी भी समय लागू होने वाले किसी भी अन्य कानून के अतिरिक्त होंगे और इसके दायरे में शामिल किसी भी ऑपरेटर को इसके प्रावधानों से छूट नहीं दी जाएगी।

आगे की राह:

  • विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं से मुआवज़े की मांग करते समय विदेशी न्यायालयों तक पहुँच स्थापित करने के लिये बाह्यक्षेत्रीय क्षेत्राधिकार से संबंधित प्रावधानों को शामिल किया जाना चाहिये। साथ ही आपूर्तिकर्त्ताओं की देयता सीमा के कार्यान्वयन के संबंध में उनके साथ एक मज़बूत और भरोसेमंद सहयोग होना चाहिये।
  • परमाणु घटना के मामले में आपूर्तिकर्त्ताओं के दायित्व के दायरे को स्पष्ट करने के लिये अस्पष्ट कानूनी प्रावधानों में संशोधन किया जाना चाहिये।