होम / महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
न्यायमूर्ति लीला सेठ
« »27-May-2024
न्यायमूर्ति लीला सेठ कौन थीं?
न्यायमूर्ति लीला सेठ दिल्ली उच्च न्यायालय की प्रथम महिला न्यायाधीश एवं राज्य उच्च न्यायालय, हिमाचल प्रदेश की प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश थीं।
- वह प्रथम महिला थीं जिन्होंने 1958 में लंदन बार परीक्षा में शीर्ष स्थान हासिल किया था।
- वह न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति की सदस्य भी थीं, जिसे दिल्ली में सामूहिक बलात्संग की घटना (2012) के बाद बलात्कार कानूनों की जाँच के लिये गठित किया गया था।
न्यायमूर्ति लीला सेठ की कॅरियर यात्रा कैसी रही?
- उनका जन्म अक्तूबर 1930 में लखनऊ, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत में हुआ था।
- उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दार्जिलिंग के लोरेटो कॉन्वेंट से पूरी की।
- स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने कोलकाता में स्टेनोग्राफर के रूप में काम शुरू किया।
- उन्होंने 20 साल की उम्र में प्रेम सेठ से शादी की और लंदन चली गईं जहाँ उनके पति एक फुटवियर कंपनी में काम करते थे।
- लंदन में उन्होंने विधि का अध्ययन करने का निर्णय किया। वर्ष 1958 में वह लंदन बार परीक्षा में सम्मिलित हुईं तथा परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया। वह ऐसा करने वाली प्रथम महिला थीं।
- वह भारत लौटीं और पटना उच्च न्यायालय से अपना विधिक व्यवसाय का कॅरियर प्रारंभ किया। उन्होंने यहाँ 10 वर्ष तक काम किया।
- इसके बाद वह वर्ष 1972 में दिल्ली उच्च न्यायालय चली गईं।
- बाद में उन्हें वर्ष 1977 में भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था।
- वर्ष 1978 में उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। वह दिल्ली उच्च न्यायालय की प्रथम महिला न्यायाधीश थीं।
- वर्ष 1991 में उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। वह राज्य उच्च न्यायालय की प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश थीं।
- वह वर्ष 1997 से 2000 तक भारत के 15वें विधि आयोग की सदस्य रहीं। उनके प्रयासों से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत संयुक्त परिवार संपत्ति में पुत्रियों को समान अधिकार देने जैसे संशोधन हुए।
- वह कई वर्षों तक राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (CHRI) की अध्यक्ष भी रहीं।
- वर्ष 1995 में उन्हें राजन पिल्लई (बिस्किट बैरन) की पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु की जाँच के लिये नियुक्त किया गया था।
- उन्होंने नाज़ फाउंडेशन के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय की आलोचना की, जिसने दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को रद्द कर दिया था तथा समलैंगिकता को फिर से अपराध घोषित कर दिया था।
- वर्ष 2017 में 86 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
न्यायमूर्ति लीला सेठ के उल्लेखनीय निर्णय क्या थे?
- शकुंतला कुमारी बनाम ओम प्रकाश घई (1980)
- दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ (न्यायामूर्ति लीला सेठ) ने कहा कि पत्नी द्वारा आत्महत्या करने की धमकी पति पर क्रूरता के समान है। उन्होंने कहा कि मेरी नज़र में ज़हर खाकर आत्महत्या करने का प्रयास भी क्रूरता के समान होगा।
- न्यायमूर्ति लीला सेठ ने यह भी कहा कि यदि पत्नी सामान्य यौन संबंधों के लिये इच्छुक नहीं है, तो यह पति पर क्रूरता है।
- नॉर्दर्न इंडिया पेंट कलर एंड वार्निश बनाम भारत संघ (1982)
- न्यायमूर्ति लीला सेठ ने कहा कि प्राकृतिक न्याय के नियम के लिये यह निश्चित रूप से आवश्यक है कि व्यक्ति को निर्धारण की प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर दिया जाए, भले ही यह अर्द्ध-न्यायिक आदेश हो।
- व्यक्ति उन साक्ष्यों को जानने का भी अधिकारी है जिन साक्ष्यों पर अधिकारी राहत देता है ताकि वह व्यक्ति ऐसे साक्ष्यों का खंडन कर सके।
LGBT सामुदायिक अधिकारों पर लीला सेठ का उल्लेखनीय दृष्टिकोण क्या था?
- न्यायमूर्ति लीला सेठ मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्ध थीं और वह LGBT समुदाय की प्रबल समर्थक थीं।
- उनका मानना था कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 377 को निरस्त किया जाना चाहिये।
- उन्होंने सार्वजनिक तौर पर उच्चतम न्यायालय के निर्णय की आलोचना की जिसमें न्यायालय ने नाज़ फाउंडेशन मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को खारिज कर दिया था।
- वह उच्चतम न्यायालय के निर्णय से निराश थीं तथा उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, ''उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह सिर्फ कुछ लोगों का मामला है। वे यह नहीं समझते कि इससे संभवतः 5% जनसंख्या प्रभावित हुई है।''
- उन्होंने कहा कि इस निर्णय ने अलग-अलग यौन रुझान वाले लोगों के साथ ऐसा व्यवहार किया है जैसे कि व्यक्तियों के तौर पर वे निम्न स्तर के व्यक्ति हों।
- यह LGBT समुदाय के अधिकारों के लिये उनका प्रतिवाद था।
- उनके विचार में IPC की धारा 377 भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करती है।