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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

प्रीतिंकर दिवाकर

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 05-Jan-2024

न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर कौन हैं?

न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया है। उनका जन्म 22 नवंबर, 1961 को हुआ था। वह 21 नवंबर, 2023 को सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने एक अधिवक्ता के रूप में भी अभ्यास किया और अपने कानूनी कॅरियर के दौरान उन्होंने संविधानिक, नागरिक एवं आपराधिक मामलों का समाधान किया।

कैसी रही न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर की कॅरियर यात्रा:

  • न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर ने दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर से लॉ में स्नातक किया और वर्ष 1984 में एक अधिवक्ता के रूप में नामांकित हुए।
  • वह कई सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों के लिये स्थायी परामर्शदाता रहे।
  • उन्हें जनवरी 2005 में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था।
  • वह सात वर्षों तक मध्य प्रदेश राज्य बार काउंसिल और पाँच वर्षों तक छत्तीसगढ़ राज्य बार काउंसिल के सदस्य रहे।
  • उन्हें 31 मार्च, 2009 को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और 3 अक्तूबर, 2018 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
    • उन्हें 13 फरवरी, 2023 को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • उन्होंने 26 मार्च, 2023 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।

न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?

  • ममता शर्मा बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2017):
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि "नीतिगत निर्णय में हस्तक्षेप और एक विशेष तरीके से नीति तैयार करने के लिये परमादेश रिट जारी करना बिल्कुल अलग है"।
    • न्यायालय ने आगे कहा कि राज्य में शराब का कारोबार किस तरीके से किया जाना है, इसके बारे में अधिसूचना जारी करना उसके अधिकार क्षेत्र में है।
      • नीति निर्माण प्रक्रिया में शामिल होकर कानून बनाना या किसी विशेष नीति को विशिष्ट तरीके से तैयार करने के लिये निर्देश जारी करना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
  • मुन्नी देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2020):
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि “एक बार मृत्युकालिक कथन संदेह से परे, प्रामाणिक, प्रेरक, पूर्ण विश्वास के साथ, स्वैच्छिक, सुसंगत और विश्वसनीय माना जाता है; ऐसी स्थिति में यह विशिष्ट भी हो सकता है और बिना किसी पुष्टि के इसे दोषसिद्धि का एकमात्र आधार बनाया जा सकता है।”
  • शशांक सिंह एवं 4 अन्य बनाम माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद एवं अन्य (2021):
    • मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर ने कहा कि, भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 233 के तहत, एक न्यायिक अधिकारी अपने पिछले अनुभव के बावजूद, 7 वर्ष के अभ्यास के साथ एक अधिवक्ता के रूप में, ज़िला न्यायाधीश के पद पर किसी भी रिक्ति पर नियुक्ति के लिये आवेदन या प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता।
    • उन्होंने आगे कहा कि इस पद पर रहने का अवसर उसे भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 233 और अनुच्छेद 309 के प्रावधानों के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार पदोन्नति के माध्यम से प्राप्त होगा।
  • उत्तर प्रदेश राज्य (2023) के संबंध में:
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अधिवक्ताओं की हड़ताल के कारण वादकारियों की दुर्दशा पर विचार किया।
    • वादियों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा कि “उनकी शिकायतों और समस्याओं के सभ्य मानवीय समाधान एवं समान अवसर के लिये उनकी मूक अपेक्षा, न्याय की अपेक्षा को दर्शाती है, जिसे न केवल न्यायाधीशों द्वारा बल्कि अधिवक्ताओं द्वारा भी महसूस किया और सुना जाना चाहिये।” दुर्भाग्यवश, अधिवक्ता भी इस अपेक्षा को नहीं समझ पाते हैं, कारण चाहे जो भी हो, जिसका मूल्य निश्चित रूप से वादियों के आँसुओं और समस्याओं के मूल्य से अधिक नहीं हो सकता, जिन्होंने हमारी न्यायिक प्रणाली एवं न्यायिक संस्था में पूर्ण विश्वास जताया है।
  • एम/एस बाबा कंस्ट्रक्शन प्रा. लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023):
    • न्यायालय ने अपीलकर्त्ता की अपील पर सुनवाई की जहाँ अपीलकर्त्ता को आगरा विकास प्राधिकरण, आगरा के एक सिविल इंजीनियर द्वारा निविदाओं के लिये ब्लैकलिस्ट किया गया था।
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि "ब्लैकलिस्टिंग के लिये एक नोटिस में यह निर्दिष्ट करना आवश्यक है कि यदि नोटिस प्राप्तकर्त्ता उन आधारों को संतोषजनक ढंग से पूरा नहीं करता है जिन पर कार्रवाई प्रस्तावित है तो परिणाम क्या होगा"।
      • नोटिस में कार्रवाई की आवश्यकता के आधार व स्पष्ट रूप से प्रस्तावित दंड का उल्लेख करना भी आवश्यक है।
      • नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने के लिये कारण बताओ नोटिस भी आवश्यक है।
    • न्यायालय ने अंततः कहा कि ब्लैकलिस्ट करने का आदेश अनिश्चित काल के लिये पारित किया गया है जो विधि के तहत स्वीकार्य नहीं है।