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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव
« »07-Feb-2025
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव कौन हैं?
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव का जन्म 8 जून 1957 को चिराला, आंध्र प्रदेश में हुआ था। उन्होंने नागार्जुन विश्वविद्यालय, गुंटूर, आंध्र प्रदेश से बी.कॉम, बी.एल. की डिग्री प्राप्त की।
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव का करियर कैसा रहा?
- न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव ने अपने विधिक जीवन की शुरुआत आंध्र प्रदेश के गुंटूर स्थित जिला न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में की ।
- वर्ष 1985 में, उन्होंने भारत के उच्चतम न्यायालय में प्रैक्टिस आरंभ की और 2016 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किये जाने तक निरंतर वहाँ अभ्यासरत रहे।
- वे भारत सरकार के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (Additional Solicitor General of India) के पद पर दो बार नियुक्त हुए — प्रथम बार अगस्त 2003 से मई 2004 तक एवं पुनः 26 अगस्त 2013 से 18 दिसम्बर 2014 तक इस पद पर सेवा प्रदान की।
- न्यायमूर्ति नागेश्वर राव ने भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली और 7 जून, 2022 को सेवानिवृत्त हुए।
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?
- जयश्री लक्ष्मणराव पाटिल बनाम मुख्यमंत्री (2021)
- न्यायमूर्ति अशोक भूषण, एस.ए. नजीर, एल. नागेश्वर राव, हेमंत गुप्ता और एस. रवींद्र भट की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने मराठा आरक्षण मामले पर पुनर्विचार किया।
- पीठ ने 2019 में संशोधित महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (Socially and Educationally Backward Classes) अधिनियम, 2018 के लिये आरक्षण को रद्द कर दिया।
- अधिनियम ने शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में मराठा समुदाय के लिये 12% और 13% आरक्षण दिया था, जो 50% आरक्षण सीमा से अधिक था।
- न्यायालय ने निर्णय किया कि मराठा आरक्षण असाधारण परिस्थितियों में नहीं आता है, जैसा कि इंद्रा साहनी के निर्णय में आवश्यक ठहराया गया है।
- रूपाली देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2019)
- मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस.के. कौल ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498क पर महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया।
- न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि पत्नी उस अधिकारिता में परिवाद दर्ज करा सकती है, जहाँ वह क्रूरता के कारण वैवाहिक घर छोड़ने या वहाँ से भगाए जाने के बाद शरण लेती है।
- इसने इस बात पर बल दिया कि धारा 498क मानसिक और शारीरिक क्रूरता दोनों की बात करती है, यहाँ तक कि मौन पीड़ा को भी भावनात्मक संकट के रूप में मान्यता देती है।
- न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक घर में क्रूरता के परिणाम पैतृक घर तक फैलते हैं, जिससे वे वहाँ किये गए भिन्न-भिन्न अपराध बन जाते हैं।
- हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य (2020)
- न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, हेमंत गुप्ता और अजय रस्तोगी की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने संपत्ति विवाद के दौरान कथित जाति-आधारित दुर्व्यवहार से जुड़े एक मामले पर निर्णय सुनाया।
- न्यायालय ने कहा कि इस मामले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(द) के अधीन कोई अपराध नहीं बनता।
- इसने तर्क दिया कि कथित दुर्व्यवहार संपत्ति के अधिकार का दावा करने वाले व्यक्ति पर निदेशित थे, न कि विशेष रूप से इसलिये कि वे अनुसूचित जाति से थे।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि समाज के कमजोर वर्ग से जुड़े संपत्ति विवाद स्वतः ही अधिनियम के अधीन अपराध नहीं बनते, जब तक कि दुर्व्यवहार स्पष्ट रूप से पीड़ित की जाति के कारण न हो।
- नरेंद्र बनाम के मीना (2016)
- न्यायमूर्ति ए.आर. दवे और एल. नागेश्वर राव की पीठ ने एक ऐसे मामले की सुनवाई की, जिसमें एक पति ने तलाक मांगा, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसकी पत्नी ने उसे उसके माता-पिता को छोड़ने के लिये विवश किया।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि हिंदू समाज में, एक बेटे का अपने माता-पिता का समर्थन और भरण-पोषण करना एक पवित्र दायित्त्व है।
- इसमें कहा गया कि कोई भी पुत्र स्वेच्छा से अपने बुजुर्ग माता-पिता और आश्रित परिवार के सदस्यों से पृथक् नहीं होगा, खासकर तब जब वह उन्हें आर्थिक रूप से सहायता कर रहा हो।
- न्यायालय ने कहा कि एक पत्नी द्वारा अपने पति को उसके परिवार से पृथक् होने के लिये विवश करने के लगातार प्रयासों को क्रूरता का कार्य माना जा सकता है, जो विवाह-विच्छेद को उचित ठहराता है।