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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

न्यायमूर्ति पी.वी. संजय कुमार

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 31-Jul-2024

परिचय:

न्यायमूर्ति पी.वी. संजय कुमार का जन्म 14 अगस्त 1963 को हुआ था। उन्होंने निज़ाम कॉलेज हैदराबाद से स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा बाद में वर्ष 1988 में दिल्ली विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

कॅरियर:

  • न्यायमूर्ति पी.वी. संजय कुमार ने अपना कॅरियर आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय से प्रारंभ किया तथा वे अपने पिता पी. रामचंद्र रेड्डी के कार्यालय से संबद्ध थे।
  • बाद में, उन्होंने स्वतंत्र रूप से विधिक व्यवसाय करना प्रारंभ किया तथा आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय एवं अधीनस्थ न्यायपालिका और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड आदि कई प्रतिष्ठित संगठनों में प्रतिनिधित्व किया।
  • उन्होंने वर्ष 2000 से 2003 तक सरकारी अधिवक्ता के रूप में कार्य किया।
  • उन्हें आंध्र प्रदेश में अतिरिक्त न्यायाधीश के पद पर पदोन्नत किया गया, जहाँ उन्होंने 19 जनवरी 2010 तक सेवा की।
  • बाद में, उन्होंने 20 जनवरी 2010 से 13 सितंबर 2019 तक स्थायी न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।
  • उन्हें पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ उन्होंने 14 जनवरी 2019 को पदभार ग्रहण किया।
  • बाद में, उन्होंने मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया, जहाँ उन्होंने 14 फरवरी 2021 को पदभार ग्रहण किया।
  • न्यायमूर्ति पी.वी. संजय कुमार को 04 फरवरी 2023 को भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया तथा उन्होंने 06 फरवरी 2023 को पदभार ग्रहण किया।

उल्लेखनीय निर्णय:

  • राहुल गांधी बनाम पूर्णेश ईश्वरभाई मोदी (2023):
    • उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति पी.वी. संजय कुमार भी शामिल थे, ने भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 499 के अधीन दायर मानहानि के मामले में राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगा दी।
    • न्यायालय ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 की उपधारा (3) के प्रभाव व्यापक हैं, क्योंकि वे न केवल अपीलकर्त्ता के सार्वजनिक जीवन में बने रहने के अधिकार को प्रभावित करते हैं, बल्कि उन मतदाताओं के अधिकार को भी प्रभावित करते हैं, जिन्होंने उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिये चुना है।
  • भारतीय खाद्य निगम कार्यकारी कर्मचारी संघ बनाम भारतीय खाद्य निगम (2023):
    • न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या 21 अस्थायी कर्मचारियों की छँटनी न्यायोचित एवं विधिक थी।
    • यह अपील खाद्य निगम, पटना के प्रबंधन की कार्यवाही के विरुद्ध दायर की गई थी।
    • न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी एवं न्यायमूर्ति पी.वी. संजय कुमार की खंडपीठ ने अपील स्वीकार कर ली तथा विवादित निर्णय को अपास्त कर दिया।
  • सिबी थॉमस बनाम सोमानी सेरामिक्स लिमिटेड (2023):
    • यह मामला परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NIA) की धारा 138 के अधीन चेक के अनादर से संबंधित है।
    • न्यायालय ने NIA की धारा 141 पर चर्चा की तथा माना कि केवल वह व्यक्ति जो कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिये प्रभारी एवं उत्तरदायी था तथा साथ ही कंपनी अकेले ही कार्यवाही एवं दण्ड के लिये उत्तरदायी होगी।
    • निर्णय में अशोक शेवक्रमणी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2023) के निर्णय का हवाला दिया गया, जहाँ न्यायालय ने कहा था कि केवल इसलिये कि कोई व्यक्ति कंपनी के मामलों का प्रबंधन कर रहा है, वह कंपनी के व्यवसाय के संचालन का प्रभारी या कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिये कंपनी के प्रति उत्तरदायी व्यक्ति नहीं बन जाता।
  • सचिन गर्ग बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2024):
    • न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस एवं न्यायमूर्ति पी.वी. संजय कुमार की पीठ ने समन जारी करते समय मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के विषय पर विचार किया।
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट को समन जारी करते समय लापरवाही नहीं बरतनी चाहिये। मजिस्ट्रेट को इस तथ्य से संतुष्ट होना चाहिये कि आरोपी के विरुद्ध कार्यवाही के लिये पर्याप्त आधार हैं।
    • साथ ही, न्यायालय ने माना कि समन जारी करते समय विस्तृत तर्क देने की आवश्यकता नहीं है, परंतु मजिस्ट्रेट को यह संतुष्टि होनी चाहिये कि कार्यवाही के लिये पर्याप्त आधार उपस्थित हैं।
    • साथ ही, संतुष्टि के लिये रिकॉर्डिंग गुप्त तरीके से नहीं होनी चाहिये।
  • शेख फ़रीद बनाम आंध्र प्रदेश सरकार (2012):
    • यह विचार करने के लिये मामला संस्थित किया गया था कि क्या वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 14(1)(b)(i) एवं (ii) के अनुसार वक्फ बोर्ड के सदस्यों का कार्यकाल संसद एवं राज्य विधानसभा के सदस्यों के समान उनके कार्यकाल के साथ समाप्त होता है।
    • आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि संसद या राज्य विधानमंडल के सदस्य का कार्यकाल समाप्त होने मात्र से 1995 के अधिनियम की धारा14(1)(b)(i) एवं (ii) के अनुसार वक्फ बोर्ड की उनकी निर्वाचित सदस्यता प्रभावित नहीं होगी तथा वह पूर्ण कार्यकाल के लिये वक्फ बोर्ड के सदस्य के रूप में बने रहने के अधिकारी होंगे।
  • अंजू बाला बनाम पंजाब राज्य (2021):
    • इस मामले में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता को दूसरे प्रतिवादी संस्थान में अपनी गर्भपात की चिकित्सीय समाप्ति की अनुमति दी तथा संस्थान को निर्देश दिया कि वह उसकी गर्भावस्था के उन्नत चरण को देखते हुए, जल्द-से-जल्द गर्भावस्था की समाप्ति के लिये प्रभावी उपाय सुनिश्चित करे।
    • यह आदेश इस आधार पर दिया गया कि महिला के भ्रूण के मस्तिष्क एवं रीढ़ की हड्डी में गंभीर जन्मजात विकृति थी।