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सिविल कानून

सलीम भाई बनाम महाराष्ट्र राज्य, AIR 2003 SC 759

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 19-Jan-2024

परिचय:

  • यह वादपत्र की अस्वीकृति से संबंधित एक ऐतिहासिक मामला है।

तथ्य:

  • वादी के रूप में प्रतिवादियों ने वर्ष 2002 में विशिष्ट निर्णयों और आदेशों को चुनौती देते हुए मुकदमे शुरू किये।
  • आठ अपीलकर्त्ताओं ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश VII नियम 11 के तहत मुकदमों को खारिज़ करने की मांग की, जिसमें कहा गया कि वादों में गुणवत्ता का अभाव है।
  • जवाब में, प्रतिवादियों ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश VII नियम 11 के तहत एक आवेदन एवं सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 151 के तहत एक और आवेदन दायर किया ताकि न्यायालय अन्य कार्यवाही से पहले आदेश VII नियम 11 के तहत आवेदन पर निर्णय कर सके।
  • ट्रायल जज ने आदेश VIII नियम 10 और धारा 151 CPC के तहत आवेदन को खारिज़ कर दिया, अपीलकर्त्ता को एक लिखित बयान दर्ज करने का निर्देश दिया।
  • अपीलकर्त्ता ने इस निर्णय को उच्च न्यायालय के समक्ष पुनरीक्षण याचिकाओं में चुनौती दी, जिसने ट्रायल कोर्ट के आदेश की पुष्टि की।
  • वर्तमान अपीलें उच्च न्यायालय के निर्णय की सटीकता पर सवाल उठाती हैं।

शामिल मुद्दा:

  • क्या आदेश VII नियम 11 CPC के तहत एक आवेदन का निर्णय वादपत्र में लगाए गए आरोपों पर किया जाना चाहिये और प्रतिस्पर्धी प्रतिवादी द्वारा लिखित बयान दाखिल करना अप्रासंगिक एवं अनावश्यक है?

टिप्पणी:

  • प्रासंगिक कानूनी प्रावधानों की समीक्षा करने पर, न्यायालय ने पाया कि आदेश VII नियम 11 CPC के तहत एक आवेदन पर निर्णय लेने के प्रयोजनों के लिये, प्रासंगिक तथ्य वादपत्र में दिये गए कथन थे।
  • ट्रायल कोर्ट मुकदमे के किसी भी चरण में इस शक्ति का प्रयोग कर सकता था, और उस चरण में, प्रतिवादी का लिखित बयान अप्रासंगिक माना जाता था।
  • न्यायालय ने निष्कर्ष दिया कि ट्रायल कोर्ट का आदेश, जिसे उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था, क्षेत्राधिकार का प्रयोग न करने और प्रक्रियात्मक अनियमितता से ग्रस्त था।

निष्कर्ष:

  • परिणामस्वरूप, न्यायालय ने सामान्य आदेश को रद्द करते हुए अपील की अनुमति दी और वादी के कथनों के आधार पर आदेश VII नियम 11 CPC के तहत आवेदन पर निर्णय के लिये मामलों को ट्रायल कोर्ट में भेज दिया। इन सिविल अपीलों के लिये कोई लागत निर्धारित नहीं की गई।