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सिविल कानून

लालमन शुक्ला बनाम गौरी दत्त,1913 40 ALJ 489

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 14-Sep-2023

परिचय :

  • मामला अनुबंध की वैधता (validity of a contract) की अवधारणा से संबंधित है। मामला प्रस्तावों के संचार (communication of proposals) से भी संबंधित है। यह इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया एक ऐतिहासिक निर्णय है।

तथ्य:

  • इस मामले में, प्रतिवादी का भतीजा फरार हो गया और कहीं नहीं मिला। प्रतिवादी ने अपने भतीजे को ढूंढने के लिये सभी नौकरों को भेजा था।
    • वादी, जो प्रतिवादी का नौकर था, को अकस्मात उसका भतीजा मिल गया और वह उसे वापस ले आया।
  • जैसे ही वादी घर से बाहर निकला, प्रतिवादी ने अपने भतीजे को ढूंढने वाले को 501 रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की, लेकिन वादी को इसकी जानकारी नहीं हुई और वादी ने लापता भतीजे को ढूंढ लिया और उसे उसके घर कानपुर वापस ले आया।
  • उक्त घटना घटित होने के छह माह बाद, गौरी दत्त ने वादी को बर्खास्त कर दिया।
  • नौकरी से हटाने के बाद, वादी ने 501 रुपए के इनाम का दावा किया। परिणामस्वरूप, वादी लालमन शुक्ला ने अपने मालिक गौरी दत्त के विरुद्ध उसे उचित इनाम नहीं देने के लिये मुकदमा दायर किया।

शामिल मुद्दे:

  • क्या वादी, प्रतिवादी से इनाम पाने का हकदार है?
  • क्या वादी द्वारा प्रतिवादी को कोई वैध स्वीकृति दी गई है?

अवलोकन:

  • न्यायालय ने इस मामले में अनुबंध के संबंध में दो आवश्यक बातों पर विचार किया है-
    • प्रस्ताव या प्रतिज्ञप्ति (proposal) के बारे में पूर्ण जानकारी होना।
    • प्रस्ताव की स्वीकृति देना
  • एक वैध अनुबंध के लिये प्रस्ताव के बारे में कुछ जानकारी होनी चाहिये कि यह प्रस्ताव किसे दिया गया है और प्रस्तावी को प्रस्ताव पर अपनी सहमति या स्वीकृति देनी होगी।
  • जहाँ तक वर्तमान मामले का सवाल है, वादी को प्रस्ताव के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और उसने प्रस्ताव को कोई स्वीकृति नहीं दी।
  • इसलिये इस मामले में वैध अनुबंध की अनिवार्यताएँ अनुपस्थित हैं।
  • इस प्रकार, पक्षों के मध्य कोई अनुबंध नहीं है और वादी इनाम पाने का हकदार नहीं है।

निष्कर्ष:

  • निष्कर्षतः, यदि प्रस्तावकर्ता को प्रस्तावी के बारे में कोई जानकारी नहीं है और वह प्रस्तावकर्ता को प्रस्ताव के बारे में कोई स्वीकृति प्रदान नहीं करता है तो कोई अनुबंध नहीं है।

नोट (Note)

वैध अनुबंध की अनिवार्यताएँ-

  • अधिनियम की धारा 10 निम्नलिखित अनिवार्यताएँ निर्धारित करती है जो एक समझौते को वैध अनुबंध बनाने हेतु आवश्यक हैं-
    • वे स्वतंत्र सहमति से बनाए गए हैं।
    • दो या दो से अधिक सक्षम पक्षों के बीच बनाया गया।
    • वैध प्रतिफल (lawful consideration) हेतु बनाया गया।
    • वैध प्रयोजन (lawful object) से बनाया गया।
    • स्पष्ट रूप से शून्य घोषित नहीं किया गया है।

एक वैध अनुबंध की कुछ अन्य अनिवार्यताएँ  हैं:

  • प्रस्ताव और स्वीकृति।
  • विधिक दायित्व (legal obligation) का उद्देश्य।
  • किसी समझौते में शामिल शर्तें अस्पष्ट या अनिश्चित नहीं होनी चाहिये।
  • समझौता निष्पादन योग्य होना चाहिये।
  • अन्य विधिक औपचारिकताएँ।