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आपराधिक कानून

आर. एस. ना यक बनाम ए. आर. अंतुले, 1984 AIR 991

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 24-Jun-2024

परिचय:

यह मामला लोक सेवक के कार्यक्षेत्र तथा लोक सेवक के विरुद्ध अभियोजन हेतु स्वीकृति देने हेतु सक्षम प्राधिकारी से संबंधित है।

तथ्य:

  • इस मामले में प्रतिवादी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, जिनके विरुद्ध भारतीय जनता पार्टी के एक सदस्य ने शिकायत दर्ज कराई थी।
    • सदस्य ने प्रतिवादी के विरुद्ध वाद दायर करने की स्वीकृति के लिये राज्य के राज्यपाल से संपर्क किया।
    • दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 167 एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, (PCA) 1947 की धारा 6 के अधीन।
  • याचिकाकर्त्ता द्वारा प्रतिवादी के विरुद्ध अतिरिक्त मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, बॉम्बे के समक्ष एक अन्य शिकायत दर्ज कराई गई।
    • भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 161, धारा 165, धारा 384, धारा 420 एवं PCA, 1947 की धारा 5 के आधार पर।
    • हालाँकि, मजिस्ट्रेट ने आवेदन को खारिज कर दिया क्योंकि इसमें अभियोजन के लिये अनुमोदन का अभाव था।
    • आवेदक ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में एक पुनरीक्षण याचिका दायर की जिसके कारण अपील खारिज हो गई।
    • प्रतिवादी ने वर्ष 1882 में अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया।
  • राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी, जिसे भी खारिज कर दिया गया।
  • प्रतिवादी के विरुद्ध और अधिक आरोपों के साथ एक नई शिकायत दायर की गई, जिसके लिये उच्च न्यायालय ने विशेष न्यायाधीश की एक पीठ गठित की।
    • विशेष न्यायाधीश द्वारा एक प्रक्रिया निर्गत की गई थी। प्रतिवादी ने अधिकार क्षेत्र के आधार पर आवेदन पर आपत्ति जताई जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया तथा मामले के विचारण के लिये 3 विशेष न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई। राज्य के विरुद्ध आदेश पारित होने के दिन राज्यपाल द्वारा स्वीकृति दी गई थी।
    • विशेष न्यायाधीश ने प्रतिवादी को इस आधार पर आरोप मुक्त कर दिया कि भले ही वह मंत्री पद से हट जाए, लेकिन वह अभी भी विधायक है तथा स्वीकृति देने का अधिकार महाराष्ट्र विधानसभा को है।
    • विधायक एक लोक सेवक है तथा बिना स्वीकृति के उसके विरुद्ध कोई विधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती।
  • विशेष न्यायाधीश के आदेश के विरुद्ध संविधान के अनुच्छेद 136 के अंतर्गत अपील दायर की गई।                   

शामिल मुद्दे:

  • विधायक लोक सेवक है या नहीं?
  • यदि विधायक लोक सेवक है या नहीं, तो क्या राज्यपाल उसके विरुद्ध अभियोजन की अनुमति देने के लिये सक्षम प्राधिकारी है या नहीं?
  • क्या उच्चतम न्यायालय विशेष न्यायाधीश के मामले को स्थानांतरित कर सकता है या नहीं?

टिप्पणी:

  • पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि विधायक लोक सेवक नहीं है।
    • विधायक को सरकार से पारिश्रमिक नहीं मिलता है तथा वह IPC की धारा 21 की परिधि में नहीं आता है।
    • मामले को प्रतिवादी के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद संज्ञान में लिया गया था तथा इसलिये वह लोक सेवक नहीं है।
  • इस मामले में अभियोजन के लिये स्वीकृति देने के लिये सक्षम प्राधिकारी को स्पष्ट रूप से रेखांकित नहीं किया गया है।
  • उच्चतम न्यायालय ने स्वप्रेरणा से मामले को विशेष न्यायाधीश से वापस ले लिया तथा प्रतिवादी को आरोपमुक्त किये जाने की घटना से निपटने के लिये इसे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया।

निष्कर्ष:

  • न्यायालय ने कहा कि किसी विधायक पर वाद लाने के लिये किसी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि विधायक लोक सेवक नहीं है तथा विशेष न्यायाधीश के आदेश को खारिज करते हुए मामले को विशेष न्यायाधीश से उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया।