गुरबक्श सिंह बनाम भूरालाल (AIR 1964 SC 1810)
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सिविल कानून

गुरबक्श सिंह बनाम भूरालाल (AIR 1964 SC 1810)

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 27-May-2024

परिचय:

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश 2 नियम 2 के अंतर्गत पूर्व अभिवचन (दलील) के अस्तित्त्व के आधार पर एक याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है, जब वह अभिवचन (दलील) जिस पर वह टिकी हुई है, प्रस्तुत नहीं की गई है।

  • यही कारण है कि CPC के आदेश 2 नियम 2 के अंतर्गत रोक का अभिवचन (दलील) केवल तभी स्थापित किया जा सकता है, जब प्रतिवादी पिछले वाद में अभिवचन (दलील) को साक्ष्य के रूप में दाखिल करता है तथा इस तरह यह न्यायालय में दोनों वाद के कार्यवाही के कारण की पहचान सिद्ध करता है।

तथ्य: 

  • भूरालाल (प्रतिवादी) ने गुरबक्श (अपीलकर्त्ता) के विरुद्ध अधीनस्थ न्यायाधीश, प्रथम श्रेणी के समक्ष एक सिविल वाद दायर किया।
  • वाद में प्रतिवादी ने अंतःकालीन लाभ के लिये कुछ संपत्ति पर कब्ज़ा करने का दावा किया।
  • आरोप यह था कि वह संपत्ति का पूर्ण स्वामी था और प्रतिवादी (अपीलकर्त्ता) ने दोषपूर्ण तरीके से कब्ज़ा कर रखा था तथा कई बार माँगने के बाद भी प्रतिवादी संपत्ति खाली करने में विफल रहा। अतः वह अंतःकालीन लाभ अर्जित करने के लिये उत्तरदायी है।
  • वादपत्र में यह भी उल्लेख किया गया था कि भूरालाल एवं उसकी माँ ने एक और वाद (पिछला वाद) दायर किया था, जहाँ उन्होंने उसी संपत्ति के संबंध में की गई वसूली का दावा किया था तथा पिछले वाद में अंतःकालीन लाभ का आदेश दिया गया था।
  • गुरबक्स ने एक लिखित बयान दायर किया तथा अभिवचन (दलील) दिया कि CPC का आदेश 2 नियम 2 वाद में बाधा है। चूँकि वादी ने कब्ज़े से राहत के लिये अपना उपचार खो दिया है, इसलिये वह अंतःकालीन लाभ की वसूली की भी मांग नहीं कर सकता है।
  • ट्रायल कोर्ट ने वाद को खारिज कर दिया, क्योंकि एक वाद वर्जित था।
  • प्रतिवादी ने इस डिक्री के विरुद्ध अपर ज़िला न्यायाधीश के समक्ष अपील दायर की।
  • अपीलीय न्यायालय ने माना कि CPC के आदेश 2 नियम 2 के अंतर्गत बार की याचिका पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया जाना चाहिये था। कारण यह था कि पिछले वाद का अभिवचन (दलील) वर्तमान मामले में दायर नहीं की गई थी।
  • इसके बाद अपीलकर्त्ता ने राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की तथा उच्च न्यायालय ने अपील खारिज कर दी।
  • इसके बाद अपीलकर्त्ता ने इस आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में विशेष याचिका दायर की।

शामिल मुद्दे:

  • क्या पश्चात्वर्ती वाद CPC के आदेश 2 नियम 2 के अंतर्गत वर्जित है?
  • क्या अचल संपत्ति पर कब्ज़ा करने का वाद तथा एक ही संपत्ति से अंतःकालीन लाभ की वसूली के लिये वाद दोनों एक ही कारण पर आधारित हैं?

टिप्पणी:

  • उच्चतम न्यायालय (SC) ने माना कि CPC के आदेश 2 नियम 2 के अंतर्गत कोई याचिका पिछले वाद में वादी के साक्ष्य के अतिरिक्त नहीं दाखिल की जा सकती है, जिसके दाखिल होने से बाधा उत्पन्न होती है।
  • न्यायालय ने कहा कि न्यायालय के समक्ष वह वादपत्र रखे बिना, जिसमें वे हैं, तथ्यों पर आरोप लगाया गया था, प्रतिवादी कटौती की प्रक्रिया द्वारा न्यायालय को अनुमान लगाने या अनुमान लगाने के लिये आमंत्रित नहीं कर सकता है कि वे तथ्य उन राहतों के संदर्भ में क्या हो सकते हैं, जो उस समय दावा की गई थीं।
  • यही कारण है कि CPC के आदेश 2 नियम 2 के अंतर्गत रोक का अभिवचन (दलील) केवल तभी स्थापित किया जा सकता है, जब प्रतिवादी पिछले वाद में अभिवचन (दलील) को साक्ष्य के रूप में दाखिल करता है तथा इस तरह यह न्यायालय में दोनों वाद के कार्यवाही के कारण की पहचान सिद्ध करता है।
  • CPC के आदेश 2 नियम 2 के अंतर्गत रोक की याचिका को सफल बनाने के लिये दलील देने वाले प्रतिवादी को निम्नलिखित बातें बतानी होंगी:
    • कि दूसरा वाद उसी कारण के संबंध में था, जिस पर पिछला वाद आधारित था।
    • कार्यवाही के उस कारण के संबंध में वादी एक से अधिक राहत का अधिकारी था।
    • इस प्रकार एक से अधिक राहत का अधिकारी होने के कारण वादी ने न्यायालय से अनुमति प्राप्त किये बिना उस राहत के लिये वाद दायर करना छोड़ दिया, जिसके लिये दूसरा वाद दायर किया गया था।

निष्कर्ष:

  • इस प्रकार, उच्चतम न्यायालय ने माना कि संबंधितअतिरिक्त ज़िला न्यायाधीश द्वारा पारित प्रतिप्रेषण (रिमांड) का आदेश, जिसकी पुष्टि उच्च न्यायालय में विद्वान न्यायाधीश द्वारा की गई थी, युक्तियुक्त था।
  • उच्चतम न्यायालय ने अपील खारिज कर दी।

नोट्स:

  • CPC के आदेश 2 नियम 2: वाद का प्रारूप:

संपूर्ण दावे को शामिल करने के लिये वाद- (1) प्रत्येक वाद में संपूर्ण दावा शामिल होगा तथा वादी, कार्यवाही के कारण के संबंध में वाद दायर करने का अधिकारी है, लेकिन वादी किसी भी न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में वाद दायर करने के लिये अपने दावे का कुछ भाग त्याग सकता है।

(2) दावे के भाग का त्याग- जहाँ कोई वादी, अपने दावे के किसी भाग के संबंध में वाद करना छोड़ देता है, या जानबूझकर त्याग देता है, तो वह बाद में इस प्रकार छोड़े गए या छोड़े गए भाग के संबंध में वाद दायर नहीं करेगा। 

(3) कई राहतों में से एक के लिये वाद दायर करने की चूक- कार्यवाही के एक ही कारण के संबंध में एक से अधिक राहत प्राप्त करने का अधिकारी व्यक्ति ऐसी सभी या किसी भी राहत के लिये वाद दायर कर सकता है, लेकिन यदि वह न्यायालय की अनुमति के बिना, ऐसी सभी राहतों के लिये वाद दायर करना छोड़ देता है, तो वह बाद में इस प्रकार छोड़ी गई किसी भी राहत के लिये वाद दायर नहीं करेगा।

स्पष्टीकरण- इस नियम के प्रयोजनों के लिये इसके प्रदर्शन हेतु एक दायित्व एवं संपार्श्विक सुरक्षा और उसी दायित्व के अंतर्गत उत्पन्न होने वाले क्रमिक दावों को क्रमशः कार्यवाही का एक कारण माना जाएगा।