स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक बनाम पाकिस्तान नेशनल शिपिंग कॉरपोरेशन (2003) 1 All ER 173 (HL) 1
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स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक बनाम पाकिस्तान नेशनल शिपिंग कॉरपोरेशन (2003) 1 All ER 173 (HL) 1

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 23-May-2024

परिचय:

यह मामला, इस तथ्य से संबंधित है कि निदेशक कपटपूर्ण अभ्यावेदन के लिये व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी हो सकता है, जो उसने कंपनी की ओर से किया था तथा अंशदायी उपेक्षा कभी भी क्षति के पंचाट को कम करने के लिये बचाव का कारण नहीं हो सकती है।

तथ्य:

  • ऑकप्राइम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री मेहरा के पास विएट्रांससिमेक्स को बिक्री के लिये इनकमबैंक से क्रेडिट पत्र था, जिसकी पुष्टि SCB ने की थी।
    • क्रेडिट के लिये 25 अक्टूबर 1993 तक शिपमेंट की आवश्यकता थी, लेकिन ऑकप्राइम चूक गया।
  • श्री मेहरा और शिपिंग संस्थाएँ (पाकिस्तान नेशनल शिपिंग कॉरपोरेशन (PNSC)) 25 अक्टूबर 1993 तक के बैकडेट बिलों पर सहमत हुए, हालाँकि माल 8 नवंबर 1993 तक भेजा नहीं गया था।
  • श्री मेहरा के पत्र के अंतर्गत, ऑकप्राइम ने 9 नवंबर 1993 को एक छूटे हुए दस्तावेज़ एवं विसंगतियों के साथ इन दस्तावेज़ों को SCB को प्रस्तुत किया।
  • छूटे हुए दस्तावेज़ों को कुछ दिनों बाद प्रस्तुत किया गया था तथा कुछ अन्य दस्तावेज़, जिनमें क्रेडिट की शर्तों में विसंगतियाँ दिखाई गई थीं, क्रेडिट के परक्रामण की अंतिम तिथि बीत जाने के बाद पुनः जमा किये गए थे।
  • SCB ने मिथ्या निर्दिष्ट तिथि को जानते हुए, इनकमबैंक से प्रतिपूर्ति की मांग की, जिसने अन्य विसंगतियों के लिये दस्तावेज़ों को खारिज कर दिया।
  • SCB ने प्रवंचना के लिये PNSC, शिपिंग एजेंटों, ऑकप्राइम और श्री मेहरा पर वाद दायर किया।
    • न्यायमूर्ति क्रेसवेल ने क्षति के लिये सभी को उत्तरदायी ठहराया।
  • श्री मेहरा ने यह तर्क देते हुए अपील की कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से नहीं, बल्कि ऑकप्राइम के स्थान पर काम किया है।

शामिल मुद्दे:

  • क्या SCB का आचरण आम विधि में प्रवंचना के दावे का बचाव होगा?
  • क्या श्री मेहरा अपने प्रवंचना के लिये उत्तरदायी थे?

टिप्पणी:

  • हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने कहा कि यदि कोई दोषपूर्ण प्रतिनिधित्व किया जाता है तथा उस पर विश्वास किया जाता है, तो यह अप्रासंगिक है अगर दावेदार ने परिश्रम से सत्यता की खोज की हो।
  • हाउस ऑफ लॉर्ड ने स्पष्ट किया कि कोई भी प्रवंचना के लिये अपने उत्तरदायित्त्व से बच नहीं सकता है।
    • श्री मेहरा पर कंपनी के दोषपूर्ण कृत्य के लिये वाद दायर नहीं किया गया था, बल्कि उनके अपने कृत्यों के लिये वाद दायर किया गया था, जो प्रवंचना का मामला था।
  • एक निर्देशक होने के नाते श्री मेहरा प्रथमदृष्टया उत्तरदायी नहीं बन गए, यह उनका कपटपूर्ण आचरण था, जिसके कारण उन्हें उत्तरदायी होना पड़ा।
  • श्री मेहरा ने उन्हें प्रवंचना के आशय से व्यक्तिगत रूप से स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक को मिथ्या दस्तावेज़ प्रस्तुत किये। उनके कृत्यों का श्रेय ऑकप्राइम को दिया गया, क्योंकि उन्होंने उसकी ओर से कृत्य किया था।
  • हालाँकि एक निदेशक प्रवंचना की योजनाएँ बना सकता है तथा बैंक को मिथ्या दस्तावेज़ जमा कर सकता है, लेकिन अगर इन कृत्यों को कंपनी की ओर से माना जाता है तो वे व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं हैं।
  • निदेशकों को कंपनी के अपकृत्य के लिये केवल तभी उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, यदि उन्होंने ऐसे कार्यों का आदेश दिया या उनमें सहायता की, जिससे कंपनी उत्तरदायी हो।

निष्कर्ष:

  • हाउस ऑफ लॉर्ड्स के निर्णय में इस बात पर बल दिया गया है कि श्री मेहरा का उत्तरदायित्व केवल एक निदेशक के रूप में उनके पद के बजाय उनके कपटपूर्ण कृत्यों से उत्पन्न होता है।
  • यह अंतर इस सिद्धांत को रेखांकित करता है कि प्रवंचना के आचरण के लिये व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, चाहे उनकी कॉर्पोरेट भूमिका कुछ भी हो।
    • इस मामले में, बैकडेट के बिल की व्यवस्था करने में श्री मेहरा के कपटपूर्ण व्यवहार के कारण उनका उत्तरदायित्त्व बढ़ गया, जिससे प्रवंचना के मामलों में व्यक्तिगत उत्तरदायित्त्व के महत्त्व पर प्रकाश डालना पड़ा।