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सांविधानिक विधि

संविधान के अनुच्छेद 370 के संबंध में (2023)

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 02-Sep-2025

परिचय 

यह मामला अगस्त 2019 में भारत संघ द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने की सांविधानिक वैधता से संबंधित है। याचिकाकर्त्ताओं ने संघवाद और प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं के उल्लंघन के आधार पर सांविधानिक आदेशों और पुनर्गठन अधिनियम को चुनौती दी थी। मुख्य विवाद्यक यह था कि क्या राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश के बिना अनुच्छेद 370 को एकतरफा रूप से समाप्त कर सकते हैं। 

तथ्य 

  • महाराजा हरि सिंह ने 1947 में पाकिस्तानी सैन्य खतरे के कारण जम्मू-कश्मीर को भारत में सम्मिलित करने के लिये विलय-पत्र पर हस्ताक्षर किये। 
  • 1949 में युवराज कर्ण सिंह ने घोषणा की कि भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के संबंधों को भारत का संविधान नियंत्रित करेगा। 
  • अनुच्छेद 370 संबंधों को नियंत्रित करता था, जो संसद को राज्य सरकार के परामर्श/सहमति के अधीन जम्मू-कश्मीर के लिये विधि बनाने की अनुमति देता था। 
  • जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने 1957 में जम्मू-कश्मीर संविधान को अपनाया और बाद में अनुच्छेद 370 को हटाने की सिफारिश किये बिना इसे भंग कर दिया गया। 
  • 2018 में, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ने त्यागपत्र दे दिया, विधानसभा भंग कर दी गई और अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।  
  • अगस्त 2019 में, राष्ट्रपति ने C.O. 272 (संपूर्ण संविधान को जम्मू-कश्मीर पर लागू करना) और C.O. 273 (अनुच्छेद 370 को समाप्त करना) जारी किया। 
  • संसद ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 पारित कर दिया, जिससे जम्मू-कश्मीर दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित हो गया। 

सम्मिलित विवाद्यक  

  • क्या अनुच्छेद 370 अस्थायी था या स्थायी दर्जा प्राप्त कर चुका था। 
  • क्या अनुच्छेद 370(1)(घ) के अधीन संपूर्ण संविधान जम्मू-कश्मीर पर लागू किया जा सकता है? 
  • क्या जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश के बिना अनुच्छेद 370 को हटाना वैध था। 
  • क्या राष्ट्रपति शासन की घोषणा और विस्तार सांविधानिक रूप से वैध थे। 
  • क्या जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 अनुच्छेद 3 के अधीन वैध था। 
  • क्या राष्ट्रपति शासन के दौरान किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित करना वैध था। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ 

  • अस्थायी प्रकृति पर:न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 370 भाग 21 "अस्थायी और संक्रमणकालीन उपबंध" के अधीन एक अस्थायी उपबंध था, जिसे सांविधानिक एकीकरण तक विशेष परिस्थितियों को संबोधित करने के लिये रूपांकित किया गया था। 
  • राष्ट्रपति की शक्ति पर:यद्यपि C.O. 272 का अनुच्छेद 4 "संविधान सभा" के स्थान पर "राज्य विधानमंडल" शब्द का प्रयोग करने के लिये असांविधानिक था, फिर भी राष्ट्रपति के पास विशेष परिस्थितियों के समाप्त होने के बाद अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की अंतर्निहित शक्ति बनी रही। संविधान सभा की "सिफारिश" राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं होती। 
  • संप्रभुता पर:विलय के बाद जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया। अनुच्छेद 370 संप्रभुता का नहीं, अपितु असममित संघवाद का प्रतिनिधित्व करता था। 
  • राष्ट्रपति शासन पर:राष्ट्रपति शासन के दौरान की गई कार्रवाइयों को केवल इसलिये खारिज नहीं किया जा सकता कि उनका कोई अपरिवर्तनीय प्रभाव नहीं है। संसद ऐसे शासन के दौरान राज्य के लिये सांविधानिक कार्य कर सकती है। 
  • पुनर्गठन पर:अनुच्छेद 3 के अधीन विभाजन वैध था क्योंकि राज्य के विचार बाध्यकारी नहीं हैं, राष्ट्रपति शासन के दौरान आवश्यकताएँ निलंबित कर दी गई थीं, और संसद ने पुनर्गठन को मंजूरी दे दी थी। 

निष्कर्ष 

उच्चतम न्यायालय ने सर्वसम्मति से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने के निर्णय को बरकरार रखा। न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अनुच्छेद 370 एक संक्रमणकालीन उपबंध था जो सांविधानिक एकीकरण को सक्षम बनाता था, न कि स्थायी। राष्ट्रपति के पास विशेष परिस्थितियों के समाप्त होने पर अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का अधिकार था। पुनर्गठन प्रक्रिया अनुच्छेद 3 के अधीन सांविधानिक रूप से मान्य थी। न्यायालय ने राज्य का दर्जा बहाल करने के सरकार के आश्वासन को ध्यान में रखते हुए, 30 सितंबर, 2024 तक केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिये चुनाव कराने का निदेश दिया।