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सांविधानिक विधि

श्री वेंकटरमण देवरू एवं अन्य बनाम मैसूर राज्य एवं अन्य (1957)

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 05-Nov-2024

परिचय

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 25 एवं 26 के अंतर्गत अधिकारों के विषय पर निर्वचन करता है।

  • यह निर्णय न्यायमूर्ति टी.एल. वेंकटराम अय्यर, न्यायमूर्ति विवियन बोस, मुख्य न्यायाधीश सुधी रंजन दास, न्यायमूर्ति सैयद जाफर इमाम एवं न्यायमूर्ति ए.के. सरकार द्वारा दिया गया।

तथ्य

  • मन्नमपडी गांव में श्री वेंकटरमण को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है जो अपनी पवित्रता के लिये प्रसिद्ध है।
  • इस संस्था के ट्रस्टी (न्यासी) न्यायालय के समक्ष अपीलकर्त्ता हैं। ये सभी गौड़ा सारस्वत ब्राह्मण नामक संप्रदाय के अनुयायी हैं।
  • ऐसा कहा जाता है कि अतीत में इस समुदाय का निवास कश्मीर था तथा अनुयायी मिथिला एवं बिहार चले गए और अंत में दक्षिण की ओर चले गए एवं गोवा के आसपास के क्षेत्र में बस गए।
  • बाद में, एक सरदार ने भटकल से इनमें से पाँच परिवारों को लाया, उन्हें मन्नामपडी में बसाया, उनके आस्था के अनुसार एक मंदिर बनवाया तथा उसमें उनकी मूर्ति स्थापित की, जिसे तिरुमलाईवारु या वेंकटरमण के नाम से जाना जाने लगा, और अपनी भूमि दान में दी।
  • मंदिर का प्रबंधन गाँव में रहने वाले समुदाय के सदस्यों द्वारा किया जाने लगा।
  • मंदिर के लिये एक योजना तैयार करने के लिये सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 92 के अंतर्गत एक वाद संस्थित किया गया था।
  • मद्रास मंदिर प्रवेश प्राधिकरण अधिनियम (मद्रास वी, 1947) (अधिनियम) पारित किया गया था, जिसका एक उद्देश्य हिंदू सार्वजनिक मंदिरों में प्रवेश करने से हरिजनों के प्रवेश का निषेध को हटाना था।
  • वादी का तर्क था कि चूंकि मंदिर एक सांप्रदायिक था तथा वे अनुच्छेद 26 के संरक्षण के अधिकारी थे, इसलिये अधिनियम की धारा 3 में इस तथ्य का प्रावधान था कि गौड़ा सारस्वत ब्राह्मणों के अतिरिक्त अन्य समुदायों के लिये भी संस्थान को खोला जा सकता है, जो COI के अनुच्छेद 26 (b) के प्रतिकूल है तथा परिणामस्वरूप शून्यकरणीय है।
  • अधीनस्थ न्यायालयों में वाद की यात्रा:
    • अधीनस्थ न्यायाधीश ने वाद खारिज कर दिया। इस निर्णय के विरुद्ध मद्रास उच्च न्यायालय में अपील की गई।
    • अपीलकर्त्ताओं के पक्ष में निर्णय दिया गया।

शामिल मुद्दे

  • क्या मूल्की स्थित श्री वेंकटरमण मंदिर, मद्रास अधिनियम V, 1947 की धारा 2 (2) में परिभाषित मंदिर है?
  • यदि ऐसा है, तो क्या यह एक सांप्रदायिक मंदिर है?
  • यदि यह एक सांप्रदायिक मंदिर है, तो क्या वादी इस आधार पर गौड़ा सारस्वत ब्राह्मणों के अतिरिक्त अन्य सभी हिंदुओं को पूजा के लिये इसमें प्रवेश करने से बाहर करने के अधिकारी हैं कि यह संविधान के अनुच्छेद 26(b) के संरक्षण के अंतर्गत धर्म का मामला है?
  • यदि ऐसा है, तो क्या अधिनियम की धारा 3 इस आधार पर वैध है कि यह अनुच्छेद 25 (2) (b) द्वारा संरक्षित विधि है, तथा ऐसी विधि अनुच्छेद 26 (b) द्वारा प्रदत्त अधिकार के विरुद्ध है?
  • यदि अधिनियम की धारा 3 वैध है, तो क्या उच्च न्यायालय द्वारा अपीलकर्त्ताओं के पक्ष में किये गए संशोधन विधिक एवं उचित हैं?

टिप्पणी

  • पहले मुद्दे के संबंध में:
    • न्यायालय ने माना कि मुल्की स्थित श्री वेंकटरमण मंदिर एक सार्वजनिक मंदिर है तथा इसलिये यह अधिनियम की परिधि में आता है।
  • दूसरे मुद्दे के संबंध में:
    • न्यायालय ने कहा कि विवादित मंदिर एक सांप्रदायिक मंदिर है तथा इसकी स्थापना गौड़ा सारस्वत ब्राह्मणों के लाभ के लिये की गई है।
  • तीसरे मुद्दे के संबंध में:
    • न्यायालय ने कहा कि यदि अपीलकर्त्ताओं के अधिकारों का निर्धारण केवल अनुच्छेद 26 (b) के संदर्भ में किया जाना है, तो अधिनियम की धारा 3 को इसका उल्लंघन करने के कारण दोषपूर्ण माना जाना चाहिये।
  • चौथे मुद्दे के संबंध में:
    • न्यायालय ने माना कि इस मामले में समान अधिकार वाले दो उपबंध हैं तथा उनमें से कोई भी एक दूसरे प्रति अधीन नहीं है।
    • निर्माण का नियम अच्छी तरह से स्थापित है कि जब किसी अधिनियम में दो उपबंध होते हैं जिन्हें एक दूसरे के साथ सामंजस्य नहीं किया जा सकता है, तो उनका निर्वचन इस तरह से की जानी चाहिये कि, यदि संभव हो, तो दोनों को प्रभाव दिया जा सके। इसे सामंजस्यपूर्ण निर्माण के नियम के रूप में जाना जाता है।
    • इस प्रकार, ऐसा निर्वचन स्वीकार किया जाएगा जो COI के अनुच्छेद 26 एवं अनुच्छेद 25 (2) (b) दोनों उपबंधों को प्रभावी बनाती है।
    • तदनुसार, न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 26 (b) को COI के अनुच्छेद 25 (2) (b) के अनुसार निर्वचित किया जाना चाहिये।
  • पाँचवे मुद्दे के संबंध में:
    • यहाँ संदर्भित संशोधनों में प्रत्येक दिन निर्दिष्ट समय एवं निर्दिष्ट अवसरों पर देवता की पूजा से संबंधित विभिन्न समारोह शामिल हैं।
    • न्यायालय ने कहा कि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है कि उच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृत अधिकार पूरी तरह से सांप्रदायिक हैं तथा यह रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य से भी स्पष्ट होता है।
    • इसलिये, तथ्यों के आधार पर, अनुच्छेद 25(2)(b) द्वारा घोषित अधिकार के सार को प्रभावित किये बिना, उन विशेष अवसरों पर अपीलकर्त्ताओं के अधिकारों की रक्षा करना संभव है; तथा , हमारे निर्णय में, उच्च न्यायालय द्वारा पारित डिक्री अनुच्छेद 25(2)(b) के अंतर्गत हिंदू जनता के अधिकारों और अनुच्छेद 26(b) के अंतर्गत अपीलकर्त्ताओं के संप्रदाय के अधिकारों के बीच एक उचित संतुलन बनाती है तथा इस पर आपत्ति नहीं की जा सकती है।
    • इस प्रकार, न्यायालय को उच्च न्यायालय द्वारा डिक्री में किये गए संशोधनों पर संदेह नहीं था।

निष्कर्ष

यह निर्णय COI के अनुच्छेद 25 एवं अनुच्छेद 26 के अंतर्गत दिये गए महत्त्वपूर्ण संवैधानिक अधिकारों के बीच परस्पर संबंध पर चर्चा करता है।