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सांविधानिक विधि
विहान कुमार बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य। (2025)
«08-Jul-2025
परिचय
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति नोंग्मीकापम कोटिश्वर सिंह द्वारा दिये गए इस ऐतिहासिक उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) के अधीन मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के गंभीर विवाद्यक को संबोधित किया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि विहान कुमार की गिरफ्तारी अवैध थी क्योंकि गिरफ्तारी के आधार, जो एक अनिवार्य सांविधानिक सुरक्षा है, को स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया था। यह निर्णय अनुच्छेद 22(1) की पवित्र प्रकृति की पुष्टि करता है, गिरफ्तारी के आधारों के सार्थक संसूचना की आवश्यकता को स्थापित करता है, और अस्पताल में अभियुक्त को हथकड़ी लगाने की अवैधता को उजागर करता है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
मामले के तथ्य
- 25 मार्च, 2023 को भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 409, 420, 467, 468 और 471 सहपठित धारा 120-ख के अधीन एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) (संख्या 121/2023) दर्ज की गई।
- विहान कुमार को 10 जून 2024 को उनके कार्यालय से गिरफ्तार किया गया।
- उन्हें DLF पुलिस थाने ले जाया गया और जून, 2024 को दोपहर 3:30 बजे गुड़गांव के प्रभारित न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
- राज्य ने संविधान के अनुच्छेद 22(2) के अनुपालन का दावा करते हुए दावा किया कि गिरफ्तारी 10 जून, 2024 को शाम 6:00 बजे हुई।
- अपीलकर्त्ता ने अभिकथित किया कि उसे गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित नहीं किया गया, जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 50 और अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन है।
- उन्होंने आगे कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 22(2) और धारा 57 का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर उन्हें मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश नहीं किया गया।
- 11 जून, 2024 की रिमांड रिपोर्ट और मजिस्ट्रेट के आदेश में गिरफ्तारी के समय का उल्लेख नहीं किया गया, जो अपीलकर्त्ता के दावे का समर्थन करता है।
- गिरफ्तारी के पश्चात्, विहान कुमार को PGIMS, रोहतक में भर्ती कराया गया, जहाँ उसे हथकड़ी और जंजीरों से अस्पताल के बिस्तर पर बाँध दिया गया, जैसा कि तस्वीरों से पता चलता है।
- PGIMS के चिकित्सा अधीक्षक ने इस तथ्य को 24 अक्टूबर, 2024 को दायर एक शपथपत्र में स्वीकार किया, जो कि दिनांक 4 अक्टूबर, 2024 को माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी नोटिस के अनुपालन में प्रस्तुत किया गया था।
- उत्तरदायी अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया तथा 23 अक्टूबर, 2024 को पुलिस उपायुक्त (Deputy Commissioner of Police) द्वारा विभागीय जांच प्रक्रिया आरंभ की गई ।
- विहान कुमार द्वारा पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की गई, जिसमें अनुच्छेद 22(1) भारतीय संविधान तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 50 का पालन न किये जाने के आधार पर गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती दी गई।
- उच्च न्यायालय ने 30 अगस्त, 2024 को अपने निर्णय में याचिका को खारिज कर दिया, गिरफ्तारी के बारे में सूचना को गिरफ्तारी के आधार के संसूचना के समान माना और अपीलकर्त्ता के दावों को निराधार आरोप बताकर खारिज कर दिया।
- व्यथित होकर, विहान कुमार ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष विशेष अनुमति याचिका (Crl) संख्या 13320/2024 दायर की।
सम्मिलित विवाद्यक
- अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन: क्या विहान कुमार को गिरफ्तारी के आधारों के बारे में सूचित न करना संविधान के अनुच्छेद 22(1) के अधीन उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
- अनुच्छेद 22(2) का अनुपालन: क्या अपीलकर्त्ता को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था, जैसा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की 57 और अनुच्छेद 22(2) द्वारा अनिवार्य है।
- गिरफ्तारी की वैधता: क्या अनुच्छेद 22(1) का अनुपालन न करने से गिरफ्तारी और उसके बाद की अभिरक्षा अवैध हो गई।
- अस्पताल में हथकड़ी लगाना: क्या अपीलकर्त्ता को अस्पताल के बिस्तर पर हथकड़ी लगाना और जंजीर से बांधना अनुच्छेद 21 के अधीन उसके गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है।
- सबूत का भार: क्या अनुच्छेद 22(1) के अनुपालन को साबित करने का भार गिरफ्तार करने वाली अभिकरण पर है, जब गैर-अनुपालन का आरोप लगाया जाता है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की टिप्पणियाँ और निर्णय:
- अनुच्छेद 22(1) की अनिवार्य प्रकृति: इस बात पर बल दिया गया कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधारों की जानकारी देना अनुच्छेद 22(1) के अधीन एक अनिवार्य सांविधानिक आवश्यकता है, जिसका अनुपालन न करना गिरफ्तारी को अमान्य करता है और अनुच्छेद 21 के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रत्याभूत का उल्लंघन करता है।
- सार्थक संसूचना: यह माना गया कि गिरफ्तारी के आधार को गिरफ्तार व्यक्ति की समझ में आने वाली भाषा में प्रभावी ढंग से संप्रेषित किया जाना चाहिये, जिससे सांविधानिक सुरक्षा का उद्देश्य पूरा हो सके (अनुच्छेद 14, 21)।
- पुलिस पर भार: निर्णय दिया गया कि जब कोई गिरफ्तार व्यक्ति अनुच्छेद 22(1) के अनुपालन न करने का अभिकथन करता है, तो अनुपालन साबित करने का भार पुलिस पर होता है, और अस्पष्ट डायरी प्रविष्टियाँ आधारों के समकालीन अभिलेख के बिना अपर्याप्त हैं (पैराग्राफ 18, 27)।
- उत्तरवर्ती कार्रवाइयों की अमान्यता: स्पष्ट किया गया कि आरोपपत्र दाखिल करना या रिमांड आदेश पारित करना असांविधानिक गिरफ्तारी को वैध नहीं बनाता है, क्योंकि अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन गिरफ्तारी और उसके बाद की अभिरक्षा को अवैध बनाता है (पैराग्राफ 16, 21)।
- हथकड़ी लगाने का उल्लंघन: अपीलकर्त्ता को अस्पताल के बिस्तर पर हथकड़ी लगाने और जंजीर से बांधने के कृत्य की निंदा की गई, इसे अनुच्छेद 21 के अधीन गरिमा के अधिकार का उल्लंघन बताया गया, तथा राज्य को ऐसे कृत्यों को रोकने के लिये दिशानिर्देश जारी करने का निदेश दिया गया (पैराग्राफ 29, 33)।
- उच्च न्यायालय की त्रुटि: गिरफ्तारी के बारे में सूचना को गिरफ्तारी के आधार के समान मानने और अनुच्छेद 22(1) के उल्लंघन को संबोधित करने में असफल रहने के लिये उच्च न्यायालय की आलोचना की गई, तथा अपीलकर्त्ता के दावों को खारिज करने को "निराधार" और अनुचित बताया गया (पैराग्राफ 30, 31)।
- सुझाया गया अभ्यास: जबकि अनुच्छेद 22(1) लिखित आधारों को अनिवार्य नहीं करता है, विवादों से बचने और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये लिखित रूप में आधार प्रदान करने की सिफारिश की गई है, यद्यपि यह स्वीकार किया जाता है कि यह सदैव व्यावहारिक नहीं हो सकता है (पैराग्राफ 15)।
- न्यायमूर्ति नोंगमेइकापम कोटिस्वर सिंह की टिप्पणियाँ:
- सहमति और अनुपूरक: न्यायमूर्ति ओका के विश्लेषण से सहमति व्यक्त की गई, जिसमें अनुच्छेद 22(1) के सांविधानिक अधिदेश और दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 और न शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) की धारा 19 में इसके समावेश पर बल दिया गया (पैराग्राफ 1, पृष्ठ 37)।
- संप्रेषण का उद्देश्य: इस बात पर प्रकाश डाला गया कि गिरफ्तार व्यक्ति और उनके नामित व्यक्तियों (दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 50क के अधीन) को गिरफ्तारी के आधार के बारे में संप्रेषित करने से रिहाई सुनिश्चित करने के लिये त्वरित विधिक कार्रवाई संभव हो जाती है, तथा अनुच्छेद 21 (पैराग्राफ 2, 3, पृष्ठ 38) के अधीन स्वतंत्रता के अधिकार को बल मिलता है।
- सांविधानिक अधिदेश: पुनः पुष्टि की गई कि लिखित रूप में आधार बताने की आवश्यकता का अनुपालन न करने पर गिरफ्तारी अवैध हो जाती है, जिससे सुरक्षा उपाय सार्थक और प्रभावी हो जाता है (पैराग्राफ 3, पृष्ठ 39)।
निष्कर्ष
यह ऐतिहासिक निर्णय संविधान के अनुच्छेद 21 और 22(1) के अधीन मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिये एक मज़बूत ढाँचा स्थापित करता है। उच्चतम न्यायालय ने गिरफ्तारी के आधार न बताए जाने के कारण विहान कुमार की गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया और एक पूर्व निर्णय स्थापित किया कि अनुच्छेद 22(1) का पालन न करना गिरफ्तारी और उत्तरवर्ती अभिरक्षा को अमान्य करता है। हरियाणा राज्य को अस्पतालों में हथकड़ी लगाने के विरुद्ध दिशानिर्देश जारी करने का न्यायालय का निदेश अनुच्छेद 21 के अधीन गरिमा की रक्षा को रेखांकित करता है। यह अनिवार्य करके कि न्यायालय रिमांड के दौरान अनुच्छेद 22(1) के अनुपालन की पुष्टि करें और अनुपालन साबित करने का भार पुलिस पर डालकर, यह निर्णय सांविधानिक सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ करता है और बिना वारण्ट के गिरफ्तारी से जुड़े भविष्य के मामलों के लिये स्पष्ट न्यायिक दिशानिर्देश प्रदान करता है।