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वाणिज्यिक विधि

फर्म अशोक ट्रेडर्स एवं अन्य आदि बनाम गुरुमुख दास सलूजा एवं अन्य

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 26-Mar-2024

तथ्य:

  • यह मामला 12 व्यक्तियों के बीच विवाद से जुड़ा है, जो फर्म मेसर्स अशोक ट्रेडर्स में भागीदार होने का दावा करते हैं।
  • इसमें भागीदारों के तीन समूह शामिल हैं: समूह "ए", समूह "बी", और समूह "सी"।
  • छह भागीदारों के सेवानिवृत्ति होने और एक नई साझेदारी के गठन के साथ इस साझेदारी में परिवर्तन आया।
  • समूह "बी" द्वारा प्रबंधन, खातों तक पहुँच और कथित कुप्रबंधन से संबंधित विवाद उत्पन्न हुए।
  • समूह "ए" ने एक रिसीवर की नियुक्ति की मांग के साथ एक मध्यस्थता खंड को लागू करते हुए, विधिक कार्रवाई शुरू की।
  • भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 69 (3) का हवाला देते हुए समूह "बी" द्वारा आवेदन का विरोध किया गया था।
  • उच्च न्यायालय ने अपील की अनुमति देते हुए निर्णय सुनाया कि धारा 69 (3) मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A & C अधिनियम) की धारा 9 के तहत आवेदन पर रोक नहीं लगाती है।
  • उच्च न्यायालय ने समूह “ए” की शिकायतों को भी उचित पाया और व्यवसाय के प्रबंधन के लिये रिसीवर की नियुक्ति का आदेश दिया।
  • उच्च न्यायालय का निर्णय इसमें शामिल सभी पक्षों के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता पर आधारित था।
  • अतः समूह “ए” ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की।

शामिल मुद्दे:

  • क्या मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 9 के तहत, समूह "ए" द्वारा दायर आवेदन, भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 69 (3) के प्रावधानों के बावजूद सुनवाई योग्य है, जिसमें अनुबंध से उत्पन्न होने वाले अधिकारों के प्रवर्तन के लिये भागीदारी फर्मों को पंजीकृत करने की आवश्यकता होती है?
  • क्या भागीदारों के बीच विवादों को संबोधित करने के लिये रिसीवर की नियुक्ति सही है?

टिप्पणी:

  • उच्चतम न्यायालय ने माना कि साझेदारी अधिनियम की धारा 69 (3) A & C अधिनियम की धारा 9 के तहत आवेदन की विचारणीयता को प्रभावित नहीं करती है।
  • न्यायालय ने ज़ोर दिया कि धारा 9 मध्यस्थ कार्यवाही से पहले, दौरान या बाद में सुरक्षा के अंतरिम उपायों का प्रावधान करती है।
  • न्यायालय ने रिसीवर की नियुक्ति की आवश्यकता को स्वीकार किया, लेकिन उच्च न्यायालय के आदेश में संसोधन किया।
  • न्यायालय ने कहा कि कुछ शर्तों के अधीन व्यवसाय का प्रबंधन समूह 'बी' द्वारा रिसीवर के रूप में किया जाना जारी रहेगा।
    • आबकारी आयुक्त द्वारा नियुक्त एक अधिकारी व्यवसाय के उचित संचालन को सुनिश्चित करने हेतु एक पर्यवेक्षक के रूप में कार्य करेगा।
    • सभी बिक्री आय पारदर्शिता के लिये संयुक्त हस्ताक्षर के तहत एक नामित बैंक खाते में जमा की जाएगी।
    • समूह 'ए' के पास दुकानों पर जाने और व्यावसायिक गतिविधियों का निरीक्षण करने के सीमित अधिकार होंगे।
    • यह व्यवस्था व्यावसायिक अवधि के अंत तक जारी रहेगी, और अंतिम खातों का ऑडिट किया जाएगा और मध्यस्थता या विधिक निर्णयों के अनुसार वितरित किया जाएगा।
    • रिसीवर और पर्यवेक्षक ट्रायल कोर्ट के नियंत्रण में होंगे, और पक्ष कठिनाइयों के मामले में न्यायालय से निर्देश मांग सकते हैं।

निष्कर्ष:

  • न्यायालय ने भागीदारी पंजीकरण सहित विधिक औपचारिकताओं के पालन की आवश्यकता पर ध्यान दिया, जबकि व्यापार के प्रबंधन में अल्पसंख्यक हितों के समान उपचार और संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, तथा निष्पक्ष विवाद समाधान के महत्त्व को रेखांकित किया।