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सिविल कानून

पुनर्विलोकन

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 13-Dec-2023

परिचय:

पुनर्विलोकन का अर्थ है एक बार फिर अवलोकन करना। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure- CPC) की धारा 114 और आदेश 47 पुनर्विलोकन की अवधारणा से संबंधित है।

CPC की धारा 114:

पुनर्विलोकन-पूर्वोक्त के अधीन रहते हुए कोई व्यक्ति, जो-

(a) किसी ऐसे डिक्री या आदेश से जिसकी इस संहिता द्वारा अपील अनुज्ञात है, किंतु जिसकी कोई अपील नहीं की गई है,

(b) किसी ऐसे डिक्री या आदेश से जिसकी इस संहिता द्वारा अपील अनुज्ञात नहीं है, अथवा

(c) ऐसे विनिश्चय से जो लघुवाद न्यायालय के निर्देश पर किया गया है,

स्वयं को व्यथित मानता है वह डिक्री पारित करने वाले या आदेश करने वाले न्यायालय से निर्णय के पुनर्विलोकन के लिये आवेदन कर सकेगा और न्यायालय उस पर ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे ।

पुनर्विलोकन का उद्देश्य:

  • निर्णय के पुनर्विलोकन का मुख्य उद्देश्य कुछ शर्तों के तहत एक ही मामले पर एक ही न्यायालय और एक ही न्यायाधीश द्वारा पुनर्विचार करना है।
  • न्याय के दुरुपयोग को रोकने या उसके द्वारा की गई गंभीर और स्पष्ट त्रुटियों को ठीक करने के लिये पुनर्विलोकन का अधिकार प्रत्येक न्यायालय को विरासत में प्राप्त हुआ है।

पुनर्विलोकन हेतु आवेदन:

  • CPC की धारा 114 के तहत पीड़ित पक्ष डिक्री या आदेश से सीधे और तुरंत प्रभावित होने वाला व्यक्ति होना चाहिये।
  • कोई व्यक्ति जो न तो कार्यवाही में पक्षकार है और न ही कोई डिक्री या आदेश उसे बाध्य करता है, पुनर्विलोकन हेतु आवेदन नहीं कर सकता है।
  • किसी निर्णय या आदेश से प्रभावित या पूर्वाग्रहग्रस्त कोई तीसरा पक्ष पुनर्विलोकन की मांग कर सकता है।

CPC का आदेश 47:

  • CPC के आदेश 47 का नियम 1 पुनर्विलोकन हेतु आवेदन से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि -

कोई भी व्यक्ति-

  • किसी ऐसी डिक्री या आदेश से जिसकी अपील की अनुज्ञात है किंतु जिसकी कोई अपील नहीं की गई है,
  • किसी ऐसी डिक्री या आदेश से जिसकी अपील की अनुज्ञात नहीं है, या
  • लघुवाद न्यायालय द्वारा किये गए निर्देश पर विनिश्चय से,

अपने को व्यथित समझता है और जो ऐसी नई एवं महत्त्वपूर्ण बात या साक्ष्य के पता चलने से जो सम्यक् तत्परता के प्रयोग के पश्चात् उस समय जब डिक्री पारित की गई थी या आदेश किया गया था, उसके ज्ञान में नहीं था या उसके द्वारा पेश नहीं किया जा सकता था, या किसी भूल या गलती के कारण जो अभिलेख के देखने से ही प्रकट होती हो या किसी अन्य पर्याप्त कारण से वह चाहता है कि उसके विरुद्ध पारित डिक्री या किये गए आदेश का पुनर्विलोकन किया जाए वह उस न्यायालय से निर्णय के पुनर्विलोकन के लिये आवेदन कर सकेगा जिसने वह डिक्री पारित की थी या वह आदेश किया था ।

वह पक्षकार जो डिक्री या आदेश की अपील नहीं कर रहा है, निर्णय के पुनर्विलोकन के लिये आवेदन इस बात के होते हुए भी किसी अन्य पक्षकार द्वारा की गई अपील लंबित है वहाँ के सिवाय कर सकेगा जहाँ ऐसी अपील का आधार आवेदक और अपीलार्थी दोनों के बीच सामान्य है या जहाँ प्रत्यर्थी होते हुए वह अपील न्यायालय में वह मामला उपस्थित कर सकता है जिसके आधार पर वह पुनर्विलोकन के लिये आवेदन करता है।

स्पष्टीकरण- यह तथ्य कि किसी विधि-प्रश्न का विनिश्चय जिस पर न्यायालय का निर्णय आधारित है, किसी अन्य मामले में वरिष्ठ न्यायालय के पश्चात्वर्ती विनिश्चय द्वारा उलट दिया गया है या उपान्तरित कर दिया गया है, उस निर्णय के पुनर्विलोकन के लिये आधार नहीं होगा

पुनर्विलोकन के आवेदन की अस्वीकृति:

CPC के आदेश 47 के नियम 4 के उप नियम 1 के अनुसार, जहाँ न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि पुनर्विलोकन के लिये पर्याप्त आधार नहीं है, वह आवेदन को अस्वीकार कर देगी।

पुनर्विलोकन के आवेदन की स्वीकृति:

  • CPC के आदेश 47 के नियम 4 के उप नियम 2 के अनुसार,

आवेदन कब मंज़ूर किया जाएगा- जहाँ न्यायालय की राय है कि पुनर्विलोकन के लिये आवेदन मंज़ूर किया जाना चाहिये वहाँ वह उसे मंज़ूर करेगा :

परंतु-

(क) ऐसा कोई भी आवेदन विरोधी पक्षकार को ऐसी पूववर्ती सूचना दिये बिना मंज़ूर नहीं किया जाएगा जिससे वह उपसंजात होने और उस डिक्री या आदेश के जिसके पुनर्विलोकन के लिये आवेदन किया गया है, समर्थन में सुने जाने के लिये समर्थ हो जाएँ; तथा

(ख) ऐसा कोई भी आवेदन ऐसी नई बात या साक्ष्य के पता चलने के आधार पर जिसके बारे में आवेदक अभिकथन करता है, कि वह उस समय जब डिक्री पारित की गई थी या आदेश किया गया था, उसके ज्ञान में नहीं थी या उसके द्वारा पेश नहीं किया जा सकता था, ऐसे अभिकथन के पूर्ण सबूत के बिना मंज़ूर नहीं किया जाएगा।

कुछ अनुप्रयोगों पर रोक/वर्जन (Bar)

  • CPC के आदेश 47 के नियम 9 के अनुसार, पुनर्विलोकन के आवेदन पर किये गए आदेश के या पुनर्विलोकन में पारित डिक्री या किये गए आदेश के पुनर्विलोकन के लिये कोई भी आवेदन ग्रहण नहीं किया जाएगा।

निर्णयज विधि:

  • सो चंद्रा कांटे बनाम शेख हबीब (1975) में उच्चतम न्यायालय ने माना कि CPC की धारा 114 का अंतर्निहित उद्देश्य न तो न्यायालय को दूसरा निर्णय लिखने में सक्षम बनाना है और न ही केस हारने वाले पक्ष को दूसरा अवसर प्रदान करना है।
  • नॉर्दर्न इंडिया कैटरर्स लिमिटेड बनाम दिल्ली के गवर्नर (1980) मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि पुनर्विलोकन कार्यवाही को मामले की मूल सुनवाई के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है और न्यायालय द्वारा दिये गए फैसले की अंतिमता पर पुनर्विचार नहीं किया जाएगा, सिवाय इसके कि न्यायिक त्रुटि के कारण पहले भी स्पष्ट चूक या मूल गलती सामने आ चुकी है।