ज्यूडिशियरी फाउंडेशन कोर्स (नई दिल्ली)   |   ज्यूडिशियरी फाउंडेशन कोर्स (प्रयागराज)










होम / सिविल प्रक्रिया संहिता

सिविल कानून

CPC के अंतर्गत गिरफ्तारी एवं निरुद्धि

    «    »
 14-Aug-2024

परिचय:

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) में गिरफ्तारी और निरुद्धि के संबंध में कई प्रावधान हैं।

गिरफ्तारी एवं निरुद्धि से संबंधित CPC के प्रावधान:

  • CPC की धारा 51:
    • धारा 51 में प्रावधान है कि न्यायालय डिक्री धारक के आवेदन पर निम्नलिखित तरीकों से डिक्री के निष्पादन का आदेश दे सकता है:
      • किसी संपत्ति को विशेष रूप से डिक्री द्वारा परिदान दे कर ।
      • किसी संपत्ति की कुर्की और विक्रय द्वारा या बिना कुर्की के विक्रय करके।
      • गिरफ्तारी और कारागार में निरुद्धि द्वारा।
      • रिसीवर नियुक्त करके।
      • ऐसे अन्य तरीके से जैसा कि दी गई राहत की प्रकृति की आवश्यकता हो।
    • धारा 51 के प्रावधान में यह प्रावधान है कि जहाँ डिक्री धन के भुगतान के लिये है, वहाँ कारागार में निरुद्ध करके निष्पादन का आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा, जब तक कि निर्णीत-ऋणी को यह कारण बताने का अवसर देने के पश्चात् कि उसे कारागार क्यों न भेजा जाए, न्यायालय लिखित रूप में दर्ज कारणों से संतुष्ट न हो जाए।
    • यह कि निर्णीत-ऋणी, डिक्री के निष्पादन में बाधा डालने या विलंब करने के उद्देश्य या प्रभाव के साथ- 
      • न्यायालय के अधिकार क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं से फरार होने या बाहर जाने की संभावना है, या
      • उस वाद के संस्थित होने के पश्चात जिसमें डिक्री पारित की गई थी, अपनी संपत्ति का कोई भाग बेईमानी से अंतरित किया, छिपाया या हटाया है, या अपनी संपत्ति के संबंध में कोई अन्य दुर्भावनापूर्ण कार्य किया है, या
    • यह कि निर्णीत-ऋणी के पास डिक्री की राशि या उसके किसी पर्याप्त भाग का भुगतान करने का साधन है या डिक्री की तिथि से उसके पास था और वह उसे भुगतान करने से इंकार करता है या उपेक्षा करता है या कर चुका है या नहीं, या
    • यह कि डिक्री उस राशि के लिये है जिसके लिये निर्णीत-ऋणी, न्यासीय हैसियत में, हिसाब देने के लिये आबद्ध था।
  • CPC की धारा 55:
    • CPC की धारा 55 में गिरफ्तारी या निरुद्धि द्वारा डिक्री के निष्पादन का प्रावधान है।
    • धारा 55 (1) में यह प्रावधान है कि निर्णीत-ऋणी को किसी भी समय और किसी भी दिन डिक्री के निष्पादन में गिरफ्तार किया जा सकता है और उसे यथाशीघ्र न्यायालय के समक्ष लाया जाएगा और उसकी निरुद्धि उस जिले के सिविल कारागार में की जा सकती है जिसमें निरुद्धि का आदेश देने वाला न्यायालय स्थित है या जहाँ ऐसी सिविल कारागार में उपयुक्त स्थान नहीं है वहाँ किसी अन्य स्थान में जिसे राज्य सरकार ऐसे जिले के न्यायालयों द्वारा निरुद्ध किये जाने के आदेश दिये गए व्यक्तियों के निरुद्ध किये जाने के लिये नियुक्त करे।
    • धारा 55(1) से चार प्रावधान जुड़े हुए हैं:
      • प्रथमतः, इस धारा के तहत गिरफ्तारी करने के प्रयोजन हेतु सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले किसी आवास में प्रवेश नहीं किया जाएगा;
      • द्वितीयतः, किसी आवास-गृह का कोई बाहरी दरवाज़ा तब तक नहीं तोड़ा जाएगा जब तक कि ऐसा आवास-गृह निर्णीत-ऋणी के कब्ज़े में न हो और वह उसमें प्रवेश करने से इंकार कर दे या किसी भी तरह से रोके, परंतु जब गिरफ्तारी करने के लिये अधिकृत अधिकारी किसी आवास-गृह में सम्यक रूप से प्रवेश कर लेता है, तो वह किसी भी कमरे का दरवाजा तोड़ सकता है जिसके विषय में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि निर्णीत-ऋणी उसमें पाया जा सकता है;
      • तृतीयतः, यदि कमरा वास्तव में किसी महिला के कब्ज़े में है, जो निर्णीत-ऋणी नहीं है और जो देश की प्रथाओं के अनुसार सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं होती है, तो गिरफ्तारी करने के लिये अधिकृत अधिकारी उसे सूचना देगा कि वह उस स्थान से हटने के लिये स्वतंत्र है तथा उसे हटने के लिये उचित समय देने एवं उसे हटने के लिये उचित सुविधा देने के बाद, गिरफ्तारी करने के उद्देश्य से कमरे में प्रवेश कर सकता है;
      • चतुर्थतः, जहाँ वह डिक्री, जिसके निष्पादन में निर्णीत-ऋणी को गिरफ्तार किया गया है, धन के भुगतान के लिये डिक्री है और निर्णीत-ऋणी डिक्री की रकम तथा गिरफ्तारी का व्यय, उसे गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को दे देता है, वहाँ ऐसा अधिकारी उसे तत्काल छोड़ देगा।
    • धारा 55 (2) में यह प्रावधान है कि राज्य सरकार, आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा यह घोषित कर सकती है कि कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का वर्ग जिसकी गिरफ्तारी से जनता को खतरा या असुविधा हो सकती है, उसे राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही गिरफ्तार किया जा सकता है, अन्यथा नहीं।
    • धारा 55 (3) में यह प्रावधान है कि जहाँ किसी निर्णीत-ऋणी को धन के भुगतान के लिये किसी डिक्री के निष्पादन में गिरफ्तार किया जाता है और न्यायालय के समक्ष लाया जाता है, तो न्यायालय उसे सूचित करेगा कि वह दिवालिया घोषित किये जाने के लिये आवेदन कर सकता है और यदि उसने आवेदन के विषय के संबंध में कोई दुर्भावनापूर्ण कार्य नहीं किया है तथा यदि वह वर्तमान में लागू दिवालियापन विधान के प्रावधानों का अनुपालन करता है, तो उसे उन्मोचित किया जा सकता है।
    • धारा 55 (4) में यह प्रावधान है कि जहाँ कोई निर्णीत-ऋणी दिवालिया घोषित किये जाने के लिये आवेदन करने का अपना इरादा व्यक्त करता है और न्यायालय की संतुष्टि के लिये सुरक्षा प्रदान करता है, कि वह एक महीने के भीतर ऐसा आवेदन करेगा तथा जब भी आवेदन पर या उस डिक्री पर किसी कार्यवाही में, जिसके निष्पादन में उसे गिरफ्तार किया गया था, बुलाया जाएगा, वह उपस्थित होगा, न्यायालय उसे गिरफ्तारी से रिहा कर सकता है और यदि वह ऐसा आवेदन करने एवं उपस्थित होने में विफल रहता है, तो न्यायालय या तो प्रतिभूति को वसूलने का निर्देश दे सकता है या डिक्री के निष्पादन में उसे सिविल कारागार में सौंप सकता है।
  • CPC की धारा 56:
    • CPC की धारा 56 में प्रावधान है कि न्यायालय धन के भुगतान के आदेश के निष्पादन में किसी महिला की गिरफ्तारी और सिविल कारागार में निरुद्धि का आदेश नहीं देगा।
  • CPC की धारा 58:
    • CPC की धारा 58 में निरुद्धि और रिहाई से संबंधित प्रावधान हैं।
    • धारा 58 (1) में प्रावधान है कि किसी व्यक्ति को निम्नलिखित अवधि के लिये सिविल कारागार में निरुद्धि में रखा जाएगा:

डिक्री की राशि 

निरुद्धि की समयावधि  

डिक्री राशि 5000 रुपए से अधिक।

3 माह से अधिक नहीं।

डिक्री राशि 2000 रुपए से 5000 रुपए के बीच।

6 सप्ताह से अधिक नहीं।

  • धारा 58 (1A) में प्रावधान है कि जहाँ डिक्री की राशि 2,000 से अधिक नहीं है, वहाँ निरुद्धि का आदेश नहीं दिया जाएगा।
  • धारा 58 (2) में प्रावधान है कि इस धारा के तहत निरुद्धि से रिहा किया गया निर्णीत-ऋणी- 
    • केवल रिहाई के आधार पर उसे ऋण से मुक्त नहीं किया जाएगा।
    • वह उस आदेश के अंतर्गत पुनः गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है जिसके निष्पादन के लिये उसे सिविल कारागार में निरुद्ध किया गया था।
  • CPC की धारा 59:
    • CPC की धारा 59 में बीमारी के आधार पर रिहाई का प्रावधान है।
    • धारा 59 (1) में प्रावधान है कि किसी भी समय किसी निर्णीत-ऋणी की गिरफ्तारी का वारंट जारी होने के बाद न्यायालय उसकी गंभीर बीमारी के आधार पर उसे रद्द कर सकता है।
    • धारा 59 (2) में यह प्रावधान है कि जहाँ किसी निर्णीत-ऋणी को गिरफ्तार किया गया है, वहाँ न्यायालय उसे रिहा कर सकता है, यदि न्यायालय की राय में वह सिविल कारागार में बंद रहने के लिये स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयुक्त स्थिति में नहीं है।
    • धारा 59 (3) में यह प्रावधान है कि जहाँ किसी निर्णीत-ऋणी को सिविल कारागार में भेज दिया गया है, उसे वहाँ से रिहा किया जा सकता है—
      • राज्य सरकार द्वारा, किसी संक्रामक या संचारी रोग के अस्तित्व के आधार पर,
      • किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होने के आधार पर, प्रतिबद्ध न्यायालय द्वारा, या किसी ऐसे न्यायालय द्वारा, जिसके अधीनस्थ वह न्यायालय हो।
    • धारा 59 (4) में प्रावधान है कि इस धारा के तहत रिहा किये गए निर्णीत-ऋणी को पुनः गिरफ्तार किया जा सकता है, लेकिन सिविल कारागार में उसकी निरुद्धि की अवधि कुल मिलाकर धारा 58 द्वारा निर्धारित अवधि से अधिक नहीं होगी। 

गिरफ्तारी और निरुद्धि से छूट से संबंधित CPC में प्रावधान:

  • CPC की धारा 135:
    • CPC की धारा 135 सिविल प्रक्रिया के तहत गिरफ्तारी से छूट प्रदान करती है।
    • धारा 135 (1) में प्रावधान है कि कोई भी न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट या न्यायिक अधिकारी की गिरफ्तारी नहीं होगी :
      • न्यायालय जाते समय
      • या अध्यक्षता करते समय
      • न्यायालय से लौटते समय
    • धारा 135 (2) में यह प्रावधान है कि जहाँ कोई मामला ऐसे अधिकरण के समक्ष लंबित है, जिसके पास अधिकारिता है या जिसे विश्वास है कि उसके पास अधिकारिता है, तो उसके पक्षकार, उनके वकील, मुख्तार, राजस्व-अभिकर्त्ता और मान्यता प्राप्त अभिकर्त्ता तथा समन के अनुपालन में कार्य करने वाले उनके साक्षियों को, ऐसे मामले के प्रयोजनार्थ ऐसे न्यायाधिकरण में जाते या उपस्थित होते समय तथा ऐसे न्यायाधिकरण से लौटते समय, न्यायालय की अवमानना ​​के लिये ऐसे न्यायाधिकरण द्वारा जारी आदेश के अतिरिक्त अन्य सिविल आदेश के तहत गिरफ्तारी से छूट होगी।
    • धारा 135 (3) में यह प्रावधान है कि उपधारा (2) की कोई बात निर्णीत-ऋणी को तत्काल निष्पादन के आदेश के तहत गिरफ्तारी से छूट का दावा करने या जहाँ ऐसा निर्णीत-ऋणी उपस्थित होता है, वहाँ यह कारण बताने के लिये सक्षम नहीं करेगी कि उसे डिक्री के निष्पादन में कारागार क्यों न भेजा जाए।
  • CPC की धारा 135 A:
    • CPC की धारा 135 A विधान निकायों के सदस्यों को सिविल प्रक्रिया के तहत गिरफ्तारी या निरुद्धि से छूट प्रदान करती है।
    • धारा 135 A (1) के अनुसार निम्नलिखित व्यक्तियों को गिरफ्तारी से छूट दी जाएगी:
      • यदि वह इनका सदस्य है तो-
        • संसद का कोई भी सदन
        • राज्य की विधानसभा या विधान परिषद
        • संघ राज्य क्षेत्र की विधानसभा
        • संसद के ऐसे सदन या, जैसा भी मामला हो, विधानसभा या विधान परिषद की किसी भी अधिवेशन के जारी रहने के दौरान।
      • यदि वह किसी समिति का सदस्य है तो
        • संसद का कोई भी सदन
        • राज्य या केंद्रशासित प्रदेश की विधानसभा
        • राज्य की विधान परिषद
        • ऐसी समिति की किसी भी अधिवेशन के जारी रहने के दौरान
      • यदि वह इनका सदस्य है तो
        • या तो संसद का सदन, या
        • किसी राज्य की विधानसभा या विधान परिषद जिसमें दोनों सदन हों
        • संसद या राज्य विधानमंडल के सदनों की संयुक्त बैठक, सभा, सम्मेलन या संयुक्त समिति के जारी रहने के दौरान, जैसा भी मामला हो, और ऐसी अधिवेशन, सभा या सम्मेलन से पहले और बाद के चालीस दिनों के दौरान

आदेश XXXVIII और आदेश XXXIX के तहत गिरफ्तारी:

  • आदेश XXXVIII: निर्णय से पहले गिरफ्तारी:
    • CPC के आदेश XXXVIII नियम 4 में यह प्रावधान है कि जहाँ प्रतिवादी नियम 2 या नियम 3 के तहत किसी आदेश का पालन करने में विफल रहता है, तो न्यायालय उसे वाद के निर्णीत तक सिविल कारागार में भेज सकता है या जहाँ प्रतिवादी के विरुद्ध कोई डिक्री पारित की जाती है, तब तक कि जब तक डिक्री की संतुष्टि नहीं हो जाती।
    • परंतुक 1 में यह प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को इस नियम के अंतर्गत किसी भी मामले में छह महीने से अधिक अवधि के लिये या छह सप्ताह से अधिक अवधि के लिये कारागार में निरुद्ध नहीं किया जाएगा, जब वाद की विषय-वस्तु की राशि या मूल्य पचास रुपए से अधिक न हो।
    • परंतुक 2 में यह प्रावधान है कि आदेश का अनुपालन करने के पश्चात् किसी भी व्यक्ति को कारागार में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा। 
  • आदेश XXXIX: अस्थायी निषेधाज्ञा:
    • CPC के आदेश XXXIX नियम 2A में निषेधाज्ञा के उल्लंघन या अवज्ञा के मामले में परिणाम का प्रावधान है।
    • निषेधाज्ञा के उल्लंघन या अवज्ञा का परिणाम यह है कि दोषी व्यक्ति को अधिकतम 3 महीने की अवधि के लिये सिविल कारागार में निरुद्ध किया जा सकता है।
  • CPC का आदेश XXI:
    • CPC के आदेश XXI नियम 37 में यह प्रावधान है कि जहाँ गिरफ्तारी वारंट जारी करने के बजाय गिरफ्तारी द्वारा डिक्री के भुगतान के निष्पादन के लिये आवेदन किया जाता है, वहाँ न्यायालय उसे न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने और कारण बताने के लिये नोटिस जारी कर सकता है कि उसे गिरफ्तार क्यों न किया जाए। जहाँ नोटिस के पालन में कोई उपस्थिति नहीं हुई है, वहाँ न्यायालय निर्णीत-ऋणी की गिरफ्तारी के लिये वारंट जारी कर सकता है।
    • CPC के आदेश XXI नियम 38 में यह प्रावधान है कि गिरफ्तारी के प्रत्येक वारंट में सौंपे गए अधिकारी को निर्देश दिया जाएगा कि वह उत्तरदायी व्यक्ति को शीघ्रता से न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे।
    • CPC के आदेश XXI नियम 40 में नोटिस के अनुपालन में या गिरफ्तारी के बाद निर्णीत-ऋणी की उपस्थिति पर कार्यवाही का प्रावधान है।
    • खंड (1) में यह प्रावधान है कि जब किसी व्यक्ति को नोटिस या गिरफ्तारी पर न्यायालय के समक्ष लाया जाता है या वह उपस्थित होता है, तो न्यायालय उसकी सुनवाई करेगा और निष्पादन के लिये आवेदन के समर्थन में सभी साक्ष्य लेगा तथा निर्णीत-ऋणी को यह कारण बताने का अवसर देगा कि उसे सिविल कारागार में क्यों न भेजा जाए।
    • खंड (2) में यह प्रावधान है कि उपनियम (1) के अंतर्गत जाँच पूरी होने तक न्यायालय अपने विवेकानुसार निर्णीत-ऋणी को न्यायालय के किसी अधिकारी की अभिरक्षा में निरुद्ध रखने का आदेश दे सकता है अथवा आवश्यकता पड़ने पर उसकी उपस्थिति के लिये न्यायालय की संतुष्टि के अनुरूप प्रतिभूति प्रस्तुत करने पर उसे रिहा कर सकता है।
    • खंड (3) में यह प्रावधान है कि उपनियम (1) के अधीन जाँच के समापन पर न्यायालय धारा 51 के उपबंधों तथा संहिता के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, निर्णीत-ऋणी को सिविल कारागार में निरुद्ध करने का आदेश दे सकता है तथा उस स्थिति में उसे गिरफ्तार करवा सकता है, यदि वह पहले से ही गिरफ्तार न हो।
    • परंतु निर्णीत-ऋणी को डिक्री की तुष्टि करने का अवसर देने के लिये न्यायालय, निरुद्धि का आदेश देने से पूर्व निर्णीत-ऋणी को न्यायालय के किसी अधिकारी की अभिरक्षा में पंद्रह दिन से अनधिक की विनिर्दिष्ट अवधि के लिये छोड़ सकता है या यदि डिक्री की तुष्टि पहले नहीं की जाती है तो विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति पर उसके उपस्थित होने के लिये न्यायालय की संतुष्टि के लिये प्रतिभूति देने पर उसे छोड़ सकता है।
    • खंड (4) में प्रावधान है कि इस नियम के तहत रिहा किये गए निर्णीत-ऋणी को पुनः गिरफ्तार किया जा सकता है।
    • खंड (5) में यह प्रावधान है कि जब न्यायालय उपनियम (3) के अंतर्गत निरुद्धि का आदेश नहीं देता है तो वह आवेदन को अस्वीकार कर देगा और यदि निर्णीत-ऋणी
    • गिरफ्तार है तो उसकी रिहाई का निर्देश देगा।

निष्कर्ष:

CPC में किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी और निरुद्धि के संबंध में कई प्रावधान हैं। वास्तव में इसमें कई सीमाएँ जुड़ी हुई हैं। CPC के प्रावधानों में ही ऐसी सीमाएँ बताई गई हैं।