होम / माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम
व्यवहार विधि
संविदाओं का विनिर्दिष्ट पालन
« »17-Oct-2023
परिचय
- विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 (Specific Relief Act- SRA) उन व्यक्तियों को उपचार प्रदान करने के लिये अधिनियमित किया गया था, जिनके नागरिक या संविदात्मक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
- इस अधिनियम के तहत प्रदान किया गया अनुतोष संविदाओं के विनिर्दिष्ट पालन से संबंधित है।
संविदाओं का विनिर्दिष्ट पालन
- विनिर्दिष्ट पालन एक साम्यपूर्ण अनुतोष है।
- इसमें उपाय चाहने वाले व्यक्ति को पहले न्यायालय को संतुष्ट करना होगा कि नुकसान का सामान्य उपाय अपर्याप्त है। ऐसी अवधारणा है, कि स्थावर संपत्ति के अंतरण के संविदा मामलों में नुकसान पर्याप्त नहीं होगा।
- वर्ष 2018 तक विनिर्दिष्ट पालन एक वैवेकिक उपाय था, वर्ष 2018 में अधिनियम में संशोधन द्वारा एक बड़ा बदलाव पेश किया गया, जिसने संविदाओं के विनिर्दिष्ट पालन को एक आज्ञापक उपाय बना दिया।
- यह अधिनियम धारा 10 से 14A और धारा 16 के तहत संविदाओं के विनिर्दिष्ट पालन का प्रावधान करता है।
धारा 10 - संविदाओं के संबंध में विनिर्दिष्ट पालन
- यह प्रावधान यह प्रदान करता है, कि न्यायालयों के लिये संविदाओं के विनिर्दिष्ट पालन को लागू करना आज्ञापक है।
- धारा 10 में कहा गया है कि किसी संविदा का विनिर्दिष्ट पालन न्यायालय द्वारा धारा 11, धारा 14 और धारा 16 की उप-धारा (2) में निहित प्रावधानों के अधीन लागू किया जाएगा।
धारा 12 - संविदा के भाग का विनिर्दिष्ट पालन
- यह धारा संविदा के भाग के विनिर्दिष्ट पालन से संबंधित है। यह प्रकट करती है कि-
(1) इस धारा में एतस्मिन पश्चात्, अन्यथा उपबंधित के सिवाय, न्यायालय किसी संविदा के किसी भाग के विनिर्दिष्ट पालन का निदेश नहीं देगा।
(2) जहाँ किकिसी संविदा का कोई पक्षकार उसमें के अपने पूरे भाग का पालन करने में असमर्थ हो, किंतु वह भाग जिसे अपालित रह जाना ही है, पूरे भाग के अनुपात में मूल्य बहुत कम हो, और उसके लिये धन के रूप में प्रतिकर हो सकता हो, वहाँ दोनों में से किसी भी पक्षकार के वाद लाने न्यायालय संविदा में से उतने भर के विनिर्दिष्ट पालन का निदेश दे सकेगा, जितने का पालन किया जा सकता हो और उतने के लिये धन के रूप में धन के रूप में प्रतिकर दिलवा सकेगा।
(3) जहाँ कि संविदा का कोई पक्षकार उसमें के अपने पूरे भाग को पूरा करने में असमर्थ हो और वह भाग जिसे अपालित रह जाना ही है, या तो-
(a) संपूर्ण का प्रचुर भाग हो यद्यपि उसका धन के रूप में प्रतिकर हो सकता हो, या
(b) उसका धन के रूप में प्रतिकर न हो सकता हो; वह विनिर्दिष्ट पालन के लिये डिक्री प्राप्त करने का हकदार नहीं होगा; किंतु न्यायालय, दूसरे पक्षकार के वाद में, दोषी पक्षकार को संविदा के अपने भाग का उतना ही विशेष रूप से पालन करने का निदेश दे सकता है, जितना वह कर सकता है, यदि दूसरा पक्षकार-
(i) खण्ड (क) के अधीन आने वाली किसी दशा में, उस भाग के लिये जो अपालित रह जाना है, प्रतिफल घटाकर, संविदा के सम्पूर्ण के लिये करारित प्रतिफल दे दे या दे चुका हो और खण्ड (ख) के अधीन आने वाली किसी दशा में, बिना किसी कमी के संविदा के सम्पूर्ण के लिये प्रतिफल दे दे या दे चुका हो; और
(ii) दोनों में से प्रत्येक दशा में, संविदा के बाकी भाग के पालन के समस्त दावों और या तो कमी के लिये या प्रतिवादी के व्यतिक्रम के कारण उसके द्वारा उठाई गई हानि या नुकसान के लिये, प्रतिकर के समस्त अधिकारों को त्याग दे ।
(4) जब किसी संविदा का कोई भाग, जो उसके स्वयं के द्वारा लिया जाए, का विनिर्दिष्टतः पालन किया जा सकता है और किया ही जाना चाहिये, उसी संविदा के अन्य भाग, जिसका विनिर्दिष्टतः पालन नहीं किया जा सकता या किया ही नहीं जाना चाहिये, से पृथक और स्वतंत्र आधार पर खड़ा हो तो न्यायालय पूर्ववर्ती भाग के विनिर्दिष्ट पालन का निदेश दे सकेगा ।
- धारा 12 का खंड (1) एक साधारण नियम का वर्णन करते हुए बताता है, कि न्यायालय संविदा के एक भाग के विनिर्दिष्ट पालन की अनुमति नहीं देगा।
- हालाँकि, धारा 12 के खंड (2) से (4) साधारण नियम के अपवाद हैं।
- बी. संतोषम्मा बनाम डी. सरला (2009) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि SRA की धारा 12 के तहत न्यायालय दोषी पक्षकार को संविदा के अपने भाग का उतना भाग विशेष रूप से पालन करने का निर्देश दे सकता है, जितना वह कर सकता है, बशर्ते कि अन्य पक्षकार पूर्ण संविदा के लिये प्रतिफल का भुगतान करता है या भुगतान कर चुका हो, उस भाग के लिये प्रतिफल को घटाकर जिसे पालन नहीं किया जाना चाहिये।
संविदाओं के विनिर्दिष्ट पालन के अपवाद
SRA की धारा 10 में उल्लेख है कि विनिर्दिष्ट पालन करने से पहले अधिनियम की धारा 11(2), 14, 16 के प्रावधानों पर विचार किया जाना चाहिये।
धारा 11 - ऐसे दशाएँ जिनमें ट्रस्टों/न्यासियों के संसक्त संविदाओं का विनिर्दिष्ट पालन प्रवर्तनीय है
- यह प्रकट करता है कि -
(1) इस अधिनियम में अन्यथा उपबंधित के सिवाय, किसी संविदा का विनिर्दिष्ट पालन, किया जाएगा, जबकि वह कार्य जिसके करने का करार हुआ है, किसी न्यास के पूर्णतः या भागतः पालन में हो।
(2) किसी ट्रस्टी/न्यासी द्वारा अपनी शक्तियों के बाहर या न्यास के भंग में की गई संविदा का विनिर्दिष्टतः प्रवर्तन नहीं कराया जा सकता है।
- इस प्रावधान के तहत अनुतोष का दावा करने के लिये परिसीमन अवधि, परिसीमन अधिनियम, 1963 के तहत अनुसूची (परिसीमन अवधि) के अनुच्छेद 54 द्वारा प्रदान की जाती है, जो बिक्री को पूरा करने के लिये निर्धारित अवधि या (जहाँ शीर्षक पूरा होने के लिये निर्धारित अवधि के बाद स्वीकार किया जाता है) प्रस्थापित तिथि से तीन वर्ष है।
धारा 14 - संविदा जो विनिर्दिष्टतः प्रवर्तनीय नहीं हैं -
- निम्नलिखित संविदाओं को विनिर्दिष्टतः प्रवर्तनीय नहीं किया जा सकता है, अर्थात्:
(a) जहाँ किसी संविदा के पक्षकार ने संविदा के प्रतिस्थापित पालन धारा 20 के उपबंधों के अनुसार अभिप्राप्त कर लिया है।
(b) कोई ऐसी संविदा, जिसके पालन में ऐसे किसी निरंतर कर्त्तव्य का पालन अंतर्बलित है, जिसका न्यायालय पर्यवेक्षण नहीं कर सकता।
(c) कोई संविदा जो पक्षकारों की व्यक्तिगत अर्हताओं पर इतनी निर्भर है कि न्यायालय उसकी तात्विक निबंधनों का विनिर्दिष्ट पालन नहीं करा सकता।
(d) कोई ऐसी संविदा जो अवधारणीय प्रकृति की है।
- प्रतिस्थापित पालन- संविदा के प्रतिस्थापित पालन का अर्थ है, जहाँ एक संविदा भंग हो जाती है, पीड़ित पक्षकार किसी तीसरे पक्षकार या अपनी अभिकरण द्वारा संविदा का पालन करवाने और उस पक्षकार से प्रतिकर और लागत वसूलने का हकदार होगा जो संविदा के अपने भाग का पालन करने में विफल रहा है। यह भंग हुई संविदा से पीड़ित पक्षकार के विकल्प पर एक वैकल्पिक उपाय होगा।
धारा 16 - अनुतोष का वैयक्तिक वर्जन
- संविदा का विनिर्दिष्ट पालन किसी ऐसे व्यक्ति के पक्ष में नहीं कराया जा सकता -
(a) जिसने धारा 20 के अधीन संविदा का प्रतिस्थापन अभिप्राप्त कर लिया है; या
(b) जो संविदा के किसी मर्मभूत निबंधन का पालन किया जाना शेष हो, पालन करने में असमर्थ हो गया हो, या उसका अतिक्रमण करे या संविदा के प्रति कपट करे अथवा जानबूझकर ऐसा काम करे, जो संविदा द्वारा स्थापित किये जाने के लिये आशयित संबंध का विसंवादी या ध्वंशक हो; या
(c) जो यह साबित करने में असफल रहे, कि उसके संविदा के उन निबंधनों से भिन्न जिनका पालन प्रतिवादी द्वारा निवारित या अधित्यक्त किया गया है, ऐसे मर्मभूत निबंधनों का, जो उसके द्वारा पालन किये जाने हैं, उसने पालन कर दिया है अथवा पालन करने के लिये वह सदा तैयार और रजामंद रहा है।
स्पष्टीकरण। -खंड (c) के प्रयोजनों के लिये, -
(i) जहाँ कि संविदा में धन का संदाय अन्तर्वलित हो, वादी के लिये आवश्यक नहीं है कि वह प्रतिवादी को किसी धन का वास्तव में निविदान करे या न्यायालय में निक्षेप करे सिवाय जबकि न्यायालय ने ऐसा करने का निदेश दिया हो;
(ii) वादी को यह साबित करना होगा कि वह संविदा का उसके शुद्ध अर्थान्वयन के अनुसार पालन कर चुका या पालन करने को तैयार और रजामंद है।
तैयार और रजामंद
- रजामंद- इसका तात्पर्य मानसिक तत्त्व से है।
- तत्परता - इसका अर्थ है इच्छा को क्रियाओं में प्रवर्तित करना, तैयारी को रजामंदी द्वारा समर्थित किया जाना चाहिये।
- आचार्य स्वामी गणेश दासजी बनाम सीता राम थापर (1996) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि संविदा को पूरा करने की तैयारी तथा संविदा को पूरा करने की रजामंदी के बीच अंतर है। तैयारी का अर्थ वादी की संविदा का पालन करने की क्षमता है जिसमें क्रय मूल्य का भुगतान करने हेतु उसकी वित्तीय स्थिति शामिल है। संविदा के अपने भाग को पूरा करने की उसकी रजामंदी निर्धारित करने के लिये, व्यक्ति के आचरण का उचित अन्वेषण आवश्यक है।