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सांविधानिक विधि
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22
« »01-Sep-2025
परिचय
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 व्यक्तिगत स्वतंत्रता की आधारशिला है, जो मनमानी गिरफ्तारी और निरोध के विरुद्ध आवश्यक सुरक्षा प्रदान करता है। यह मौलिक अधिकार प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के माध्यम से व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करता है और साथ ही विधि-व्यवस्था बनाए रखने की राज्य की आवश्यकता को संतुलित करता है। यह अनुच्छेद एक व्यापक ढाँचा स्थापित करता है जो सामान्य आपराधिक गिरफ़्तारियों और विशेष परिस्थितियों में निवारक निरोध, दोनों को नियंत्रित करता है।
गिरफ्तार व्यक्तियों के अधिकार
- अनुच्छेद 22(1) प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को मौलिक सुरक्षा को प्रत्याभूत करता है। यह उपबंध यह अनिवार्य करता है कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों की यथाशीघ्र अवगत कराए बिना अभिरक्षा में नहीं लिया जाएगा। यह गिरफ्तारी प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और अज्ञात कारणों से मनमाने ढंग से निरोध में लिये जाने को रोकता है। इसके अतिरिक्त, गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा का अलंघनीय अधिकार है, जो निष्पक्ष विधिक प्रतिनिधित्व का आधार स्थापित करता है।
- अनुच्छेद 22(2) "24 घंटे के नियम" की महत्त्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान करता है, जिसके अनुसार प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के चौबीस घंटे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना आवश्यक है। इस समय सीमा में गिरफ्तारी स्थल से न्यायालय तक की यात्रा का समय सम्मिलित नहीं है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि भौगोलिक बाधाएँ इस सुरक्षा से समझौता न करें। किसी भी व्यक्ति को स्पष्ट मजिस्ट्रेट प्राधिकार के बिना इस अवधि से अधिक समय तक निरोध में नहीं रखा जा सकता, जिससे न्यायिक निगरानी के बिना लंबी अभिरक्षा की संभावना समाप्त हो जाती है।
अपवाद और निवारक निरोध
- संविधान कुछ असाधारण परिस्थितियों को मान्यता देता है जहाँ मानक सुरक्षा लागू नहीं हो सकती। अनुच्छेद 22(3) दो विशिष्ट अपवादों को रेखांकित करता है: युद्ध के दौरान शत्रु अन्यदेशीय और निवारक निरोध विधियों के अधीन निरोध में लिये गए व्यक्ति। ये अपवाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सामान्य सिद्धांत को बनाए रखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने की राज्य के उत्तरदायित्त्व को स्वीकार करते हैं।
- निवारक निरोध के मामलों में, अनुच्छेद 22(4) सलाहकार बोर्ड तंत्र के माध्यम से अतिरिक्त सुरक्षा उपाय स्थापित करता है। निवारक निरोध विधियों के अधीन किसी भी व्यक्ति को तीन मास से अधिक समय तक निरुद्ध नहीं रखा जा सकता, जब तक कि उच्च न्यायालय के वर्तमान या पूर्व न्यायाधीशों वाला एक सलाहकार बोर्ड यह रिपोर्ट न दे कि निरंतर निरोध के लिये पर्याप्त हेतुक विद्यमान हैं। यह उपबंध विस्तारित निवारक निरोध की न्यायिक समीक्षा सुनिश्चित करता है।
प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय और संसदीय शक्तियां
- अनुच्छेद 22(5) के अनुसार, अधिकारियों को निरोध में लिये गए व्यक्ति को निरोध आदेश के आधारों के बारे में शिघ्रातिशीघ्र सूचित करना चाहिये और आदेश के विरुद्ध अपना पक्ष रखने का शीघ्र अवसर प्रदान करना चाहिये। यद्यपि, अनुच्छेद 22(6) राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से इसे संतुलित करता है, जिससे अधिकारियों को जनहित के विरुद्ध समझी जाने वाली जानकारी को रोकने की अनुमति मिलती है।
- संसद की भूमिका अनुच्छेद 22(7) के अंतर्गत परिभाषित है, जो उसे तीन मास से अधिक के निरोध के लिये परिस्थितियाँ, विभिन्न प्रकार के मामलों के लिये अधिकतम निरुद्ध अवधि और सलाहकार बोर्ड की प्रक्रियाएँ निर्धारित करने का अधिकार देता है। यह विधायी प्राधिकार यह सुनिश्चित करता है कि निवारक निरोध विधि सांविधानिक सीमाओं के भीतर रहें और साथ ही उभरती सुरक्षा चुनौतियों का समाधान भी हो।
- संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 ने इन सुरक्षाओं को मज़बूत करने के लिये महत्त्वपूर्ण सुधार पेश किये, तथापि कई प्रावधानों की अधिसूचना अभी बाकी है। ये संशोधन प्रारंभिक निरोध अवधि को तीन मास से घटाकर दो मास कर देंगे और सलाहकार बोर्डों की संरचना और स्वतंत्रता को बढ़ाएँगे।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 22 व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राज्य सुरक्षा के बीच एक सावधानीपूर्वक संतुलन स्थापित करता है, जो मनमाने ढंग से निरोध में लिये जाने को रोकने वाले प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को स्थापित करता है और साथ ही वैध सुरक्षा चिंताओं को भी ध्यान में रखता है। न्यायिक निगरानी, विधिक प्रतिनिधित्व और समयबद्ध निरोध पर इस उपबंध का बल व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिये संविधान की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अधिकारों, अपवादों और प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं के अपने व्यापक ढाँचे के माध्यम से, अनुच्छेद 22 यह सुनिश्चित करता है कि गिरफ्तारी और निरोध की शक्ति सांविधानिक सीमाओं और न्यायिक जांच के अधीन रहे।