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सांविधानिक विधि
संघ से अनुदान
«25-Aug-2025
परिचय
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 275, वित्तीय सहायता की आवश्यकता वाले राज्यों को केंद्र द्वारा सहायता अनुदान प्रदान करने की व्यवस्था स्थापित करता है, जो भारत के संघीय वित्तीय ढाँचे का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। यह उपबंध सहकारी संघवाद का प्रतीक है, जो वित्तीय चुनौतियों या विकासात्मक आवश्यकताओं का सामना कर रहे राज्यों को सहायता प्रदान करने की संघ के उत्तरदायित्त्व को मान्यता देता है। संविधान निर्माताओं ने यह समझा कि विविध क्षेत्रीय आवश्यकताओं, विशेष रूप से आदिवासी आबादी वाले क्षेत्रों या पिछड़े क्षेत्रों की पूर्ति के लिये लक्षित वित्तीय सहायता आवश्यक होगी, जिससे पूरे देश में संतुलित विकास सुनिश्चित हो सके।
अनुच्छेद 275: कुछ राज्यों को संघ से अनुदान
- प्राथमिक अनुदान तंत्र:
- अनुच्छेद 275 में यह उपबंध है कि संसद, विधि के माध्यम से, सहायता की आवश्यकता वाले राज्यों को सहायता अनुदान के रूप में भारत की संचित निधि पर विशिष्ट राशियाँ भारित करने का प्रावधान कर सकती है।
- यह विवेकाधीन शक्ति संघ को राज्य की विभिन्न आवश्यकताओं के प्रति लचीले ढंग से प्रतिक्रिया करने की अनुमति देती है, इस उपबंध के साथ कि विभिन्न राज्यों को उनकी विशिष्ट परिस्थितियों और आवश्यकताओं के आधार पर भिन्न-भिन्न राशि आवंटित की जा सकती है।
- यह अनुच्छेद सूत्र-आधारित वितरण के बजाय आवश्यकता-आधारित आवंटन के सिद्धांत पर कार्य करता है, जो इसे संविधान के अन्य वित्तीय प्रावधानों से अलग करता है।
- यह दृष्टिकोण उन स्थानों पर लक्षित हस्तक्षेप को संभव बनाता है जहाँ राज्यों को अपने खर्चों आवश्यकताओं या विकासात्मक दायित्त्वों को पूरा करने के लिये पर्याप्त राजस्व उत्पन्न करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- अनुसूचित जनजातियों और क्षेत्रों के लिये विशेष उपबंध:
- अनुच्छेद 275 का प्रथम उपबंध अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासन में सुधार के लिये विशिष्ट अनुदानों का अधिदेश देता है।
- इस उपबंध के अधीन, केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित विकास योजनाओं को लागू करने में राज्यों को सक्षम बनाने के लिये संघ को पूँजीगत और आवर्ती अनुदान दोनों प्रदान करने होंगे।
- ये योजनाएँ जनजातीय कल्याण को बढ़ावा देने तथा अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासनिक मानकों को राज्य के अन्य भागों के अनुरूप बनाने पर केंद्रित हैं।
- यह उपबंध भारत के जनजातीय समुदायों के हितों की रक्षा और उन्नति के लिये संविधान की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि महत्त्वपूर्ण जनजातीय आबादी वाले राज्यों को इन समुदायों के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करने तथा जनजातीय और गैर-जनजातीय क्षेत्रों के बीच विकासात्मक अंतर को पाटने के लिये पर्याप्त वित्तीय सहायता मिले।
- असम-विनिर्दिष्ट उपबंध:
- द्वितीय उपबंध में असम के लिये विनिर्दिष्ट उपबंध हैं, जो राज्य की विशिष्ट ऐतिहासिक और प्रशासनिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हैं। यह संविधान के लागू होने से पूर्व के दो वर्षों के दौरान आदिवासी क्षेत्रों में राजस्व पर खर्च की औसत अधिकता के समान अनुदान देने और इन क्षेत्रों में स्वीकृत विकास योजनाओं के लिये धन मुहैया कराने का उपबंध करता है।
- बाद में जोड़ा गया खण्ड (1क), अनुच्छेद 244क के अधीन स्वायत्त राज्य गठन के परिदृश्य को संबोधित करता है। यह असम और किसी भी नवगठित स्वायत्त राज्य के बीच अनुदानों के बंटवारे का उपबंध करता है, जिससे प्रशासनिक परिवर्तनों के दौरान वित्तीय सहायता की निरंतरता सुनिश्चित होती है।
- राष्ट्रपति की शक्तियां और संसदीय अधिरोहण
- खण्ड (2) एक अंतरिम व्यवस्था स्थापित करता है जिसके अधीन राष्ट्रपति अनुच्छेद 275 के अधीन शक्तियों का प्रयोग तब तक कर सकते हैं जब तक संसद विधि के माध्यम से विशिष्ट उपबंध नहीं कर देती। यद्यपि, राष्ट्रपति का यह अधिकार संसदीय अवहेलना के अधीन है, जिससे वित्तीय मामलों में विधायी शक्ति की सर्वोच्चता बनी रहती है।
- इस खण्ड में यह भी अनिवार्य किया गया है कि राष्ट्रपति द्वारा इस उपबंध के अंतर्गत कोई भी आदेश जारी करने से पहले वित्त आयोग के साथ परामर्श किया जाए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि अनुदान संबंधी निर्णय राजकोषीय स्थितियों और आवश्यकताओं के विशेषज्ञ विश्लेषण के आधार पर लिये जाएं।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 275 भारत की संघीय व्यवस्था के भीतर राजकोषीय असंतुलन और विकासात्मक असमानताओं को दूर करने के लिये एक परिष्कृत दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। अनुदान आवंटन में लचीलापन प्रदान करते हुए, जनजातीय समुदायों और पिछड़े क्षेत्रों के प्रति विशिष्ट दायित्त्व स्थापित करके, यह समावेशी विकास के लिये सांविधानिक आदेशों के साथ विवेकाधीन शक्ति का संतुलन स्थापित करता है। अनुच्छेद में संसदीय निगरानी और वित्त आयोग के परामर्श पर बल दिया गया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि अनुदान वास्तविक विकासात्मक उद्देश्यों की पूर्ति करें, जिससे यह भारत के राजकोषीय संघवाद का एक महत्त्वपूर्ण साधन बन जाता है जो संतुलित क्षेत्रीय विकास और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है।