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सिविल कानून
सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 41 नियम 27
« »25-Aug-2025
इकबाल अहमद (मृत) एल.आर.एस. एवं अन्य बनाम अब्दुल शुकूर “सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 41 नियम 27 के अधीन अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति केवल तभी दी जा सकती है जब वह आवश्यक अभिवचनों द्वारा समर्थित हो; ऐसे अभिवचनों के बिना, साक्ष्य विसंगत और अग्राह्य है।” न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और ए.एस. चंदुरकर |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और एएस चंदुरकर की पीठ ने निर्णय दिया कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) आदेश 41 नियम 27 के अधीन अधीन अपीलीय चरण में अतिरिक्त साक्ष्य पेश नहीं किये जा सकते हैं यदि वे अभिवचनों के साथ असंगत हैं, और इस निर्णय ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दिया, जिसमें अभिवचनों की परीक्षा किये बिना ऐसे साक्ष्य को स्वीकार किया गया था।
उच्चतम न्यायालय ने इकबाल अहमद (मृत) एल.आर.एस. एवं अन्य बनाम अब्दुल शुकूर ( 2025) के मामले में यह निर्णय दिया ।
इकबाल अहमद (मृत) एल.आर.एस. एवं अन्य बनाम अब्दुल शुकूर ( 2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- फरवरी 1995 में, प्रत्यर्थी-प्रतिवादी ने बैंगलोर स्थित अपनी आवासीय संपत्ति अपीलकर्त्ता-वादी को ₹10,67,000 में बेचने का करार किया। वादी ने अग्रिम राशि के रूप में दो किश्तों में ₹5,00,000 का संदाय किया, और करार में डेढ़ वर्ष के भीतर काम पूरा करने की शर्त रखी गई।
- वादी के मामले का एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह था कि उन्होंने बेन्सन टाउन में अपनी मूल्यवान अचल संपत्ति बेचकर, वाद वाली संपत्ति खरीदने के लिये धन की व्यवस्था की थी, जिसकी उन्हें अपने वास्तविक कब्जे के लिये आवश्यकता थी।
- जब प्रतिवादी अप्रैल और जुलाई 1996 में विधिक नोटिस के बावजूद विक्रय विलेख निष्पादित करने में असफल रहा, तो वादी ने विनिर्दिष्ट पालन के लिये एक वाद दायर किया। प्रतिवादी ने करार के अस्तित्व से इंकार करते हुए तर्क दिया कि उसने वादी से केवल कारबार विस्तार के लिये ₹1,00,000 उधार लिये थे और उसके हस्ताक्षर कोरे स्टाम्प पेपर पर लिये गए थे। गौरतलब है कि अपने लिखित कथन के पैराग्राफ 11 में, प्रतिवादी ने कहा कि यह "उसकी जानकारी में नहीं" था कि वादी ने अपनी बेन्सन टाउन संपत्तियाँ बेची थीं या नहीं।
- विचारण न्यायालय ने दोनों पक्षकारों के साक्ष्य की परीक्षा करने के बाद फरवरी 2000 में वादी के पक्ष में निर्णय सुनाया, जिसमें पाया गया कि करार साबित हो गया था और वादी ने अपने दायित्त्वों को पूरा करने के लिये तत्परता और इच्छा प्रदर्शित की थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय को अपास्त कर दिया और मामले को नए सिरे से विचार के लिये वापस भेज दिया, तथा निदेश दिया कि अपील और अतिरिक्त साक्ष्य के लिये आवेदन, दोनों पर स्थापित विधिक सिद्धांतों के अनुसार पुनर्विचार किया जाए।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अपील न्यायालयों को प्रक्रियागत निष्पक्षता और विधिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति देने से पहले अनिवार्य रूप से याचिकाओं की परीक्षा करनी चाहिये।
- उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रियात्मक विवाद्यक की पहचान की: क्या अपीलीय न्यायालयों को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 41 नियम 27(1) के अधीन अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति देने से पहले अभिवचनों की परीक्षा करनी चाहिये।
- अपील के दौरान, प्रतिवादी ने संपत्ति अभिलेख सहित अतिरिक्त दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत करने की मांग की, तथा दावा किया कि उसने पाया कि वादी ने वास्तव में अपनी बेन्सन टाउन संपत्तियाँ कभी नहीं बेची थीं।
- उच्च न्यायालय ने इस साक्ष्य को स्वीकार कर लिया तथा इन नए दस्तावेज़ों के आधार पर विचारण न्यायालय के निर्णय को पलट दिया।
- उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण में एक बुनियादी खामी देखी। प्रतिवादी ने शुरू में संपत्ति की बिक्री के बारे में केवल "कोई जानकारी नहीं" का तर्क दिया था, किंतु अब वह सकारात्मक रूप से यह साबित करने की कोशिश कर रहा था कि कोई बिक्री हुई ही नहीं थी। इससे अपीलीय स्तर पर एक नया बचाव खड़ा हो गया, जिसका उसके मूल अभिवचनों द्वारा कोई समर्थन नहीं किया गया था।
- न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण विधिक सिद्धांत स्थापित किया: "इस बात पर विचार करने से पहले कि क्या कोई पक्षकार संहिता के आदेश 41 नियम 27(1) के अधीन अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने का हकदार है, सबसे पहले ऐसे पक्षकार के अभिवचनों की परीक्षा करना आवश्यक होगा जिससे यह पता लगाया जा सके कि क्या स्थापित किये जाने वाले मामले में अतिरिक्त साक्ष्य का समर्थन करने के लिये अभिवचन दिया गया है।"
- उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि उचित अभिवचन समर्थन के बिना अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति देना इस प्रक्रिया को निरर्थक बना देगा, क्योंकि ऐसे साक्ष्य पर विधिक रूप से विचार नहीं किया जा सकता है, यदि वह पक्षकार के अभिवचन वाले मामले के विपरीत हो या उससे परे हो।
सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 41 नियम 27 क्या है?
- सामान्य निषेध:
- अपील के पक्षकारों को अधिकार के रूप में अपीलीय न्यायालय में अतिरिक्त साक्ष्य, चाहे मौखिक हो या दस्तावेज़ी, प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं है।
- स्वीकृति के लिये असाधारण परिस्थितियाँ:
- अपीलीय न्यायालय द्वारा निम्नलिखित विनिर्दिष्ट परिस्थितियों में अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति दी जा सकती है:
- खण्ड (क): जहाँ वह न्यायालय जिसके निर्णय के विरूद्ध अपील की गई है, ने ऐसे साक्ष्य को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है जिसे विचारण कार्यवाही के दौरान स्वीकार किया जाना चाहिये था।
- खण्ड (कक): जहाँ अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने की मांग करने वाला पक्षकार यह स्थापित करता है कि सम्यक् तत्परता का प्रयोग करने के बावजूद, ऐसा साक्ष्य उसके ज्ञान में नहीं था या सम्यक् तत्परता बरतने के बाद, उसके द्वारा उस समय प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था जब अपील की गई डिक्री पारित की गई थी।
- खण्ड (ख) : जहाँ अपीलीय न्यायालय को निर्णय सुनाने के लिये, या किसी अन्य महत्त्वपूर्ण कारण से, किसी दस्तावेज़ को प्रस्तुत करने या किसी साक्षी से पूछताछ करने की आवश्यकता होती है।
- अपीलीय न्यायालय द्वारा निम्नलिखित विनिर्दिष्ट परिस्थितियों में अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति दी जा सकती है:
- विवेकाधीन शक्ति:
- यह प्रावधान अपीलीय न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है कि वह ऐसे साक्ष्य या दस्तावेज़ प्रस्तुत करने या साक्षी की परीक्षा करने की अनुमति दे, बशर्ते कि वह संतुष्ट हो जाए कि खण्ड (क), (कक) या (ख) के अधीन विहित शर्तों में से कोई भी शर्त पूरी हो गई है।
- अनिवार्य अभिलेखबद्ध की आवश्यकता:
- उप-नियम (2) में यह अधिदेश दिया गया है कि जहाँ कहीं भी अपील न्यायालय द्वारा अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाती है, तो न्यायालय उसकी स्वीकृति का कारण लेखबद्ध करेगा, जिससे इस विवेकाधीन शक्ति के प्रयोग में न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित होगी।
- विधायी आशय:
- यह उपबंध अधीनस्थ न्यायालय की कार्यवाही की अंतिमता और न्याय सुनिश्चित करने के अपील न्यायालय के कर्त्तव्य के बीच संतुलन स्थापित करता है, साथ ही पक्षकारों को विचारण के दौरान साक्ष्य को रोककर रखने से रोकता है, जिससे वे अपील के दौरान उसे रणनीतिक रूप से प्रस्तुत कर सकें।
- यह नियम यह सुनिश्चित करता है कि अपील की कार्यवाही उचित विचारण के संचालन का विकल्प न बने तथा पक्षकार उचित स्तर पर अपना मामला प्रस्तुत करने में समुचित सावधानी बरतें।
- प्रक्रियात्मक सुरक्षा:
- खण्ड (कक) के अधीन सम्यक् तत्परता स्थापित करने की आवश्यकता प्रावधान के दुरुपयोग को रोकती है और यह सुनिश्चित करती है कि अपील के चरण में केवल वास्तव में अनुपलब्ध साक्ष्य की ही अनुमति दी जाए।
- खण्ड (ख) के अंतर्गत "पर्याप्त कारण" मानदंड अपील न्यायालयों को विवादों के उचित निर्णय के लिये आवश्यक साक्ष्य को स्वीकार करने के लिये लचीलापन प्रदान करता है, जबकि परिभाषित मापदंडों के भीतर न्यायिक विवेक को बनाए रखा जाता है।