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पारिवारिक कानून
वैवाहिक इतिहास का दुर्व्यपदेशन
« »25-Aug-2025
एक्स. बनाम वाई. “दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘कभी विवाह न किया हो’ (Never Married) और ‘अविवाहित’ (Unmarried) स्थिति के मध्य भेद स्पष्ट करते हुए यह प्रतिपादित किया कि वैवाहिक इतिहास से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्यों का प्रकटीकरण किया जाना आवश्यक है, जिससे वैवाहिक सहमति विधिसम्मत रूप से और पूर्ण जानकारी के आधार पर प्रदान की जा सके।” न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और हरीश वैद्यनाथन शंकर |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने एक्स. बनाम वाई. मामले में विवाह को अकृत करने को चुनौती देने वाली अपील को खारिज कर दिया और इस बात पर बल दिया कि पूर्व विवाह और आय संबंधी दुर्व्यपदेशन जैसे महत्त्वपूर्ण तथ्यों को छिपाना हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) के अधीन कपट माना जाता है। यह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12 के अधीन बाद में होने वाले विवाह को शून्यकरणीय घोषित करता है।
एक्स. बनाम वाई. (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- पक्षकारों के मध्य विवाह एक वैवाहिक पोर्टल के माध्यम से निश्चित हुआ, जहाँ अपीलकर्त्ता (पति) ने अपना प्रोफ़ाइल निर्मित किया था।
- उस वैवाहिक प्रोफ़ाइल में अपीलकर्ता ने स्वयं को “Never Married” (कभी विवाह न किया हो) के रूप में प्रस्तुत किया तथा अपनी वार्षिक आय “USD 200K और उससे अधिक” दर्शाई।
- प्रत्यर्थी (पत्नी) ने अपनी प्रोफाइल में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि वह ऐसे जीवनसाथी की तलाश कर रही थी जो "कभी विवाहित न हुआ हो"।
- इस प्रोफ़ाइल के आधार पर, प्रत्यर्थी ने अपीलकर्त्ता के विज्ञापन का जवाब दिया और तत्पश्चात् दोनों पक्षकारों का विवाह संपन्न हुआ।
- प्रत्यर्थी को बाद में पता चला कि अपीलकर्त्ता पहले भी विवाहित था और उस विवाह से उसका एक बच्चा भी था।
- यह भी पाया गया कि अपीलकर्त्ता की वास्तविक आय प्रोफ़ाइल में दर्शाई गई आय से बहुत कम थी - 2014 में उसका वास्तविक सकल वेतन 120k-130k USD के बीच था।
- प्रत्यर्थी ने 27 जनवरी 2016 को सी.ए.डब्ल्यू. सेल, प्रशांत विहार, दिल्ली में परिवाद दर्ज कराया, जिसके परिणामस्वरूप 12 मई 2016 को प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 0401/2016 दर्ज की गई ।
- प्रत्यर्थी ने बाद में 21 अगस्त 2017 को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12(1)(ग) के अधीन विवाह को अकृत करने के लिये याचिका दायर की।
- कुटुंब न्यायालय, रोहिणी (उत्तर) जिला न्यायालय ने याचिका को स्वीकार कर लिया और 19 जनवरी 2024 के निर्णय द्वारा विवाह को अकृत कर दिया ।
- पति ने इस निर्णय के विरुद्ध अपील की, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया ।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
" Never Married" और " Unmarried" के बीच अंतर:
- न्यायालय ने इन शब्दों के बीच महत्त्वपूर्ण अंतर करते हुए कहा कि "कभी विवाहित नहीं (Never Married)" से तात्पर्य आजीवन स्थिति से है, जो किसी भी पूर्व वैवाहिक बंधन से मुक्त है, जबकि "अविवाहित (Unmarried)" शब्द में तलाकशुदा या विधवा/विधुर व्यक्तियों को भी सम्मिलित कर सकता है।
- "कभी विवाहित नहीं" शब्द का अर्थ यह है कि व्यक्ति ने कभी विवाह नहीं किया है और यह "अविवाहित" शब्द से काफी भिन्न है।
- न्यायालय ने अपीलकर्त्ता द्वारा "कभी विवाह नहीं किया" की व्याख्या केवल "उस समय विवाहित नहीं था" के रूप में करने के प्रयास को अस्वीकार कर दिया, जब उसने प्रत्यर्थी से विवाह किया था।
महत्त्वपूर्ण तथ्य और परिस्थितियाँ:
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि किसी पक्षकार की विवाह-पूर्व स्थिति एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है, जिसे विवाह के लिये सहमति देने से पहले दूसरे पक्षकार को अवश्य जानना चाहिये।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12(1)(ग) में "कपट" शब्द किसी भी सामान्य तरीके से कपट की बात नहीं करता है और हर दुर्व्यपदेशन या छिपाव कपटपूर्ण नहीं होगा।
- कपट केवल उसी स्थिति में माना जाएगा जब वह विवाह की प्रकृति अथवा प्रत्यर्थी से संबंधित किसी महत्त्वपूर्ण तथ्य या परिस्थिति से संबद्ध हो।
- न्यायालय ने यह ठहराया कि मासिक आय एवं संपत्ति की स्थिति के संबंध में मिथ्या जानकारी प्रदान करना धारा 12, हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत कपट की परिभाषा में आता है।
- न्यायालय ने अपीलकर्त्ता के इस बचाव को खारिज कर दिया कि प्रोफ़ाइल उसके माता-पिता द्वारा बनाई गई थी, तथा कहा कि अपीलकर्त्ता यह तर्क नहीं दे सकता कि उसे प्रोफ़ाइल की विषय-वस्तु की जानकारी नहीं थी।
- न्यायालय ने पाया कि ऑनलाइन वैवाहिक पोर्टलों पर वैवाहिक स्थिति के लिये "तलाकशुदा" विकल्प दिया गया है, तथा विवाह से पहले किसी भी समय प्रोफाइल में कोई सुधार नहीं किया गया था।
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 क्या है ?
बारे में:
- हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 में शून्यकरणीय विवाह के लिये उपबंध इस प्रकार है:
- शून्यकरणीय विवाह तब तक वैध रहता है जब तक कि उसे किसी पक्षकार द्वारा अकृत न किया जाए और ऐसा तभी किया जा सकता है जब विवाह के पक्षकारों में से कोई एक इसके लिये याचिका दायर करे।
- यद्यपि, यदि कोई भी पक्षकार विवाह को अकृत करने के लिये याचिका दायर नहीं करता है, तो यह वैध रहेगा।
आधार:
- यदि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 के खण्ड (ii) का अनुपालन नहीं किया जाता है तो विवाह शून्यकरणीय हो जाता है।
- धारा 5 के अनुसार - (ii) विवाह के समय, कोई भी पक्षकार –
(क) मानसिक विकृति के कारण विधिमान्य सम्मति देने में असमर्थ है;
(ख) यद्यपि वह विधिमान्य सम्मति देने में सक्षम है, तथापि वह ऐसे प्रकार या सीमा तक मानसिक विकार से ग्रस्त है कि वह विवाह और संतानोत्पत्ति के लिये अयोग्य है; या
(ग) उसे उन्मत्तता का दौरे बार-बार पड़ते रहे हों ।
- धारा 5 के अनुसार - (ii) विवाह के समय, कोई भी पक्षकार –
- धारा 12 में निम्नलिखित आधारों का उल्लेख किया गया है जिनके आधार पर विवाह को शून्यकरणीय घोषित किया जा सकता है:
- यदि प्रत्यर्थी की नपुंसकता के कारण विवाहोत्तर संभोग नहीं हुआ है।
- यदि विवाह में सम्मिलित कोई भी पक्षकार सम्मति देने में असमर्थ है या उसे बार-बार उन्मत्तता का दौरा पड़ता है।
- यदि याचिकाकर्त्ता की सम्मति या याचिकाकर्त्ता के संरक्षक की सम्मति बलपूर्वक या कपट द्वारा प्राप्त की गई हो।
- यदि प्रत्यर्थी विवाह से पहले याचिकाकर्त्ता के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से गर्भवती थी ।
प्रभाव:
- दोनों पक्षकारों को पति-पत्नी का दर्जा प्राप्त है और उनकी संतान हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 के अनुसार धर्मज माने जाते हैं । पति-पत्नी के अन्य सभी अधिकार और दायित्त्व बरकरार रहते हैं।