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पारिवारिक कानून

हिंदू विधि के तहत दहेज पर रोक लगाने वाले कानून

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 01-Dec-2023

परिचय:

  • वैदिक काल में प्राचीन विवाह संस्कार 'कन्यादान' से जुड़े हैं। धर्मशास्त्र में कहा गया है कि कन्यादान का पुण्य कार्य तब तक पूरा नहीं होता है जब तक कि दूल्हे को दक्षिणा न दी जाए।
  • दुल्हन को दूल्हे को सौंप दिया जाता है, दूल्हे को नकद या वस्तु के रूप में दुल्हन पक्ष को कुछ देना होता है जो वरदक्षिणा होती है।
  • कन्यादान का संबंध वरदक्षिणा से हो गया, यानी दुल्हन के माता-पिता या अभिभावक द्वारा दूल्हे को दी जाने वाली नकदी या उपहार।
  • वरदक्षिणा स्नेह से दी जाती थी और इसमें विवाह के लिये किसी प्रकार की बाध्यता या विचार शामिल नहीं था। यह बिना किसी दबाव के एक स्वैच्छिक प्रथा थी।
  • दहेज में स्वैच्छिक तत्त्व गायब हो गया है और दबाव का तत्त्व आ गया है। इसने न केवल विवाह समारोहों में बल्कि विवाहोपरांत संबंधों में भी गहरी जड़ें जमा ली हैं। दूल्हे को दी जाने वाली दक्षिणा अब क्षमताओं से बाहर हो गई है और इसे ‘दहेज’ का नाम दे दिया गया है।

इतिहास:

  • उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ के समाज सुधारकों ने इस व्यवस्था को समाप्त करने के लिये बहुत कठिन संघर्ष किया है। यह बुराई समाज में बुराई फैलाकर दुल्हनों के लिये खतरा उत्पन्न कर रही थी।
  • समाज से इस बुराई को मिटाने के लिये, बिहार और आंध्र प्रदेश की राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्यों के लिये 'बिहार दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1950' और 'आंध्र प्रदेश दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1958' की शुरुआत की, परन्तु ये दोनों अधिनियम बुरी तरह विफल रहे।
  • 24 अप्रैल, 1959 को 'दहेज निरोधक विधेयक, 1959' लोकसभा में पेश किया गया। विधेयक को संसद के दोनों सदनों की ‘संयुक्त समिति’ के पास भेजा गया।
  • संयुक्त समिति द्वारा बताए गए संशोधनों से संसद का कोई भी सदन सहमत नहीं था और अंततः 6 व् 9 मई, 1961 को आयोजित संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में विधेयक पर विचार किया गया।

दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961:

  • 1 मई, 1961 को अधिनियमित भारतीय कानून का उद्देश्य दहेज लेने या देने पर रोक लगाना रोकना था।
  • इस अधिनियम में दहेज का अर्थ- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी गई या देने के लिये सहमत कोई भी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति है।
  • 'दहेज प्रतिषेध अधिनियम' के मूल पाठ को व्यापक रूप से दहेज की प्रथा को रोकने में अप्रभावी माना गया था।
  • महिलाओं के विरुद्ध कुछ प्रकार की हिंसा दहेज की मांगों को पूरा करने में विफलता से जुड़ी हुई हैं। वर्ष 1984 में इसे यह निर्दिष्ट करने के लिये बदल दिया गया कि विवाह के समय दुल्हन या दूल्हे को दिये जाने वाले उपहारों की अनुमति है।
  • इस कानून की मांग थी कि प्रत्येक उपहार, उसके मूल्य, इसे देने वाले व्यक्ति की पहचान और विवाह के किसी भी पक्ष के साथ व्यक्ति के संबंध का वर्णन करते हुए एक सूची बनाई जाए।
  • दहेज संबंधी हिंसा की शिकार हुईं महिला पीड़ितों की सुरक्षा के लिये अधिनियम तथा भारतीय दंड संहिता, 1860 की प्रासंगिक धाराओं में और संशोधन किया गया।
    • दहेज संबंधी क्रूरता, दहेज मृत्यु और आत्महत्या के लिये उकसाने जैसे विशिष्ट अपराधों को स्थापित करने के लिये वर्ष 1983 में IPC को भी संशोधित किया गया था।
    • इन अधिनियमों में दहेज की मांग, या दहेज उत्पीड़न का सबूत दिखाए जाने पर महिलाओं के विरुद्ध उनके पतियों या उनके रिश्तेदारों द्वारा हिंसा को दंडित किया जाता था।
  • घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम के तहत वर्ष 2005 में कानूनी सुरक्षा की एक और परत प्रदान की गई थी।

दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के तहत ज़ुर्माना:

  • दहेज देना और लेना:
    • दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद दहेज देता या लेता है, देने या लेने के लिये उकसाता है, तो उसे कम से कम पाँच वर्ष की कारावास और ज़ुर्माना, जो पंद्रह हज़ार रुपए या दहेज के मूल्य की राशि, जो भी अधिक हो, से कम नहीं होगी, से दंडित किया जाएगा।
  • दहेज की मांग करना:
    • अधिनियम की धारा 4 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दुल्हन या दूल्हे के माता-पिता, रिश्तेदारों या अभिभावकों से दहेज की मांग करता है तो उसे कम-से-कम छह महीने के कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और ज़ुर्माना जो दस हज़ार रुपए तक बढ़ाया जा सकता है।
  • विज्ञापन पर प्रतिबंध:
    • धारा 4-A के अनुसार, किसी समाचार पत्र, पत्रिका या किसी अन्य माध्यम से दहेज़ संबंधी विज्ञापन देने या संपत्ति, व्यवसाय, धन आदि में किसी भी व्यक्ति द्वारा विवाह के लिये विचार करने पर कारावास से दंडित किया जाएगा जो छह महीने से कम नहीं होगा और जिसे पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या ज़ुर्माना जो पंद्रह हज़ार रुपए तक बढ़ाया जा सकता है।

IPC और IEA के तहत दहेज मृत्यु के प्रावधान:

भारतीय दंड संहिता, 1860:

  • धारा 304 B:
    • जहाँ किसी महिला की मृत्यु उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर जलने या किसी शारीरिक चोट के कारण हुई हो या सामान्य परिस्थितियों के अलावा किसी और तरह से हुई हो तथा यह दिखाया गया हो कि उसकी मृत्यु से ठीक पहले दहेज की मांग के लिये उसके पति या उसके पति के किसी रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता या उत्पीड़न किया गया था, तो ऐसी मृत्यु को 'दहेज मृत्यु' कहा जाएगा और ऐसे पति या रिश्तेदारों को उसकी मृत्यु का कारण माना जाएगा।
    • जो कोई भी दहेज मृत्यु करेगा उसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
  • पति या पति के रिश्तेदार द्वारा महिलाओं पर क्रूरता करना (धारा 498-A):
    • जो कोई, किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार होते हुए, ऐसी महिला के साथ क्रूरता करेगा, उसे तीन वर्ष तक के कारावास की सज़ा दी जाएगी और ज़ुर्माना भी लगाया जाएगा।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872:

  • दहेज हत्या के बारे में उपधारणा (धारा 113 B): जब प्रश्न यह हो कि क्या किसी व्यक्ति ने किसी महिला की दहेज हत्या की है तथा यह दिखाया गया है कि उसकी मृत्यु से ठीक पहले उस महिला के साथ ऐसे व्यक्ति द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न किया गया था, या दहेज की किसी भी मांग के संबंध में, तो न्यायालय यह मान लेगी कि ऐसे व्यक्ति ने दहेज हत्या की है।

संबंधित निर्णयज विधि:

  • भूरा सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1991):
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि ससुराल वालों द्वारा जलाए जाने से पहले मृतिका ने अपने पिता को एक पत्र लिखा था कि दहेज की मांग पूरी न करने पर उसके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है, उसे परेशान किया जा रहा है व गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी जा रही है। इस प्रकार इस मामले में दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 के तहत दहेज मांगने का अपराध किया गया था।
  • आंध्र प्रदेश राज्य बनाम राम गोपाल असावा और अन्य (2004):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि दहेज की मांग पर आधारित क्रूरता के प्रभाव और संबंधित मृत्यु के बीच निकटतम व जीवंत संबंध होना चाहिये।