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हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24

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 09-Oct-2024

परिचय: 

हिंदू विवाह अधिनियम, 1995 (HMA) की धारा 24 वाद लंबित रहने के दौरान भरण-पोषण और कार्यवाहियों के व्यय के प्रावधान से संबंधित है।

  • भरण-पोषण एक विधिक अधिकार के साथ-साथ एक मानवीय अधिकार भी है। 
  • HMA की धारा 24 मूल रूप से मुकदमे के लंबित रहने के दौरान पति या पत्नी को अस्थायी भरण-पोषण प्रदान करती है।

भरण-पोषण का अर्थ:

  • यह पिता या पति द्वारा अपने बच्चों या पत्नी के लिये क्रमशः दी जाने वाली वित्तीय सहायता है।
  • भरण-पोषण को निर्वाहिका के रूप में भी जाना जाता है, जो आश्रितों के व्यय और सभी आवश्यकताओं के लिये संदाय को संदर्भित करता है।
  • हिंदू विधि के अनुसार, भरण-पोषण इस बात पर ध्यान दिये बिना दिया जाएगा कि पक्ष एक साथ रह रहे हैं या नहीं और तलाक दिया गया है या नहीं।

लंबित का अर्थ:

  • शब्द "पेंडेंट लाइट" का अर्थ है "मुकदमे का लंबित रहना" या "मामले के लंबित रहने के दौरान"।
  • उक्त धारा अपर्याप्त या कोई स्वतंत्र आय नहीं होने की स्थिति में हिंदू विवाह अधिनियम, 1995 (HMA) के तहत आजीविका और किसी भी कार्यवाही के आवश्यक व्यय का समर्थन करने के लिये अंतरिम भरण-पोषण को नियंत्रित करती है।

लंबित भरण-पोषण का अर्थ: 

  • लंबित भरण- पोषण का अर्थ है कि जब तक पक्षकारों के बीच मुकदमा लंबित है, तब तक पत्नी और बच्चों को जीवन-यापन का व्यय तथा वित्तीय सहायता प्रदान करना।
  • यह प्रावधान पति और पत्नी दोनों को इस उपाय को लागू करने का लिंग-तटस्थ अधिकार प्रदान करता है, जैसा भी मामला हो।

HMA  की धारा 24 के मूल सिद्धांत:

  • कार्यवाही का व्यय:
    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1995 (HMA) की धारा 24 के तहत कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान होने वाले व्यय को नियंत्रित करती है।
    • इन व्यय में वकीलों की फीस, कोर्ट फीस, स्टांप ड्यूटी, यात्रा व्यय और अन्य संबंधित व्यय शामिल हैं।
    • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आर्थिक रूप से कमज़ोर पति-पत्नी संबद्ध लागतों के बोझ के बिना कानूनी प्रक्रिया में प्रभावी ढंग से भाग ले सकें।
  • न्यायालय का विवेक:
    • भरण-पोषण कार्यवाही के लंबित रहने और कार्यवाही के व्यय देने की शक्ति केवल न्यायालय में निहित एक विवेकाधीन शक्ति है।
    • यह विवेकाधिकार न्यायालय को मामले की व्यक्तिगत परिस्थितियों पर विचार करने और दिये जाने वाले भरण-पोषण की राशि तथा व्यय के संबंध में निष्पक्ष एवं न्यायोचित निर्धारण करने की अनुमति देता है।
    • न्यायालय इस धारा के तहत भरण-पोषण देते समय दोनों पक्षों की आय, परिसंपत्तियों और आवश्यकताओं की पर्याप्तता का निर्णय करता है। 
  • अस्थायी प्रकृति:
    • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि धारा 24 के तहत दिया गया भरण-पोषण अस्थायी प्रकृति का है। 
    • इसका उद्देश्य केवल विधिक कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान वित्तीय सहायता प्रदान करना है। 
    • मामले पर सुनवाई करते समय अंतिम भरण-पोषण निर्धारित करने का अधिकार  न्यायालय के पास है।

HMA की धारा 24 के प्रावधान:

  • इसमें कहा गया है:
    • जब किसी कार्यवाही के तहत पति या पत्नी में से किसी के पास मुकदमे की कार्यवाही को आगे बढ़ाने के लिये पर्याप्त आय नहीं होती है, तो न्यायालय प्रतिवादी को याचिकाकर्त्ता को कार्यवाही के व्यय का संदाय करने और याचिकाकर्त्ता के भरण-पोषण के लिये प्रतिवादी की आय पर विचार करते हुए एक राशि का संदाय करने का आदेश दे सकती है।
    • यह प्रावधान किया गया है कि इस धारा के अंतर्गत याचिकाकर्त्ता के आवेदन का निपटारा प्रतिवादी को नोटिस की तामील की तारीख से 60 दिनों के अंदर किया जाएगा।

HMA की धारा 24 और दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के बीच अंतर:

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24

धारा 125 CrPC 

केवल हिंदुओं पर लागू।

धर्म, जाति और मान्यताओं से परे सभी नागरिकों पर लागू।

तलाक याचिका के लंबित रहने के दौरान भरण-पोषण प्रदान किया जाता है, उसके बाद नहीं।

तलाक याचिका के दौरान और उसके बाद भरण-पोषण प्रदान किया जाता है।

इस धारा के तहत केवल पति-पत्नी ही भरण-पोषण के पात्र हैं।

पति-पत्नी, बच्चे (वैध या नाजायज़), माता-पिता सभी इस धारा के तहत भरण-पोषण का दावा करने के पात्र हैं।

भरण-पोषण पक्षों के जीवन स्तर, आय और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए दिया जाता है।

भरण-पोषण दावेदारों की आवश्यकताओं और प्रतिवादी की संदाय क्षमता के आधार पर दिया जाता है।

महत्त्वपूर्ण निर्णय:

  • ममता जयसवाल बनाम राजेश जयसवाल (2000):
    • उच्च शिक्षा प्राप्त पत्नी को गुज़ारा भत्ता देने से इनकार करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि धारा 24 उस पति या पत्नी को वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई है जो गंभीर प्रयासों के बावजूद खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है।
      • हालाँकि कानून यह उम्मीद नहीं करता है कि कानूनी लड़ाई में शामिल लोग केवल विपरीत पक्ष से धन वसूल करने के उद्देश्य से निष्क्रिय बने रहेंगे।
    • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने कहा कि HMA की धारा 24 का अर्थ निष्क्रिय लोगों की सेना बनाना नहीं है, जो दूसरे पति या पत्नी द्वारा दी जाने वाले सहायता राशि की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
  • रूपाली गुप्ता बनाम रजत गुप्ता (2016): 
    • दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कमाने की क्षमता रखने वाले एक योग्य पति/पत्नी द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1995 (HMA) की धारा 24 के तहत भरण-पोषण के दावे को खारिज कर दिया।
  • ABC बनाम XYZ (2024):  
    • इस मामले में यह माना गया कि यदि पति वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना के आदेश पर रोक के अभाव में पत्नी को वापस अपने ससुराल ले जाने में असफल रहता है, तो पत्नी के लिये अपने लिये अंतरिम भरण-पोषण की मांग करना स्वतंत्र होगा।
  • X बनाम Y (2024):  
    • इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि पत्नी के पास स्नातक की डिग्री होने से यह स्वतः नहीं माना जाना चाहिये कि वह केवल अंतरिम भरण-पोषण प्राप्त करने के लिये जानबूझकर नौकरी से परहेज कर रही है।

निष्कर्ष:

HMA की धारा 24 उस पति या पत्नी को अंतरिम राहत प्रदान करती है जिसके पास स्वयं का भरण-पोषण करने या मुकदमे का व्यय वहन करने का कोई स्रोत नहीं है। पति या पत्नी को ऐसी राहत के लिये न्यायालय में आवेदन करना होगा और न्यायालय को दिये गए समय के भीतर आवेदन का निपटारा करना होगा। यह धारा संविधान के अनुच्छेद 39 की आवश्यकता को भी पूरा करती है जो पुरुष और महिला दोनों के लिये समान आजीविका सुनिश्चित करती है।