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आपराधिक कानून

गिरफ्तारी

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 25-Oct-2023

परिचय

गिरफ्तारी से तात्पर्य किसी व्यक्ति को विधिक प्राधिकार या किसी स्पष्ट कानूनी प्राधिकार द्वारा उसकी स्वतंत्रता से वंचित करना है। आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के तहत गिरफ्तारी होती है, जिसमें निम्न लोग गिरफ्तार कर सकते हैं -

  • पुलिस अधिकारी (धारा 41)
  • प्राइवेट व्यक्ति (धारा 43)
  • मजिस्ट्रेट (धारा 44)

CrPC के प्रावधान जो गिरफ्तारी से संबंधित हैं, अध्याय - V (व्यक्तियों की गिरफ्तारी) के तहत धारा 41 - 60 A तक हैं।

गिरफ्तारी के लिये अधिकृत व्यक्ति

पुलिस अधिकारी

  • बिना वॉरंट के गिरफ्तारी - कोई भी पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और बिना वॉरंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है (CrPC की धारा 41 के तहत), यदि
    • उसकी उपस्थिति में संज्ञेय अपराध करता है,
    • ऐसा संज्ञेय अपराध करता है, जिसके लिये 7 वर्ष से कम या उसके बराबर कारावास, अर्थदंड के साथ या बिना अर्थदंड के दंडनीय है:
      • जिनके विरुद्ध उचित शिकायत की गई है,
      • विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हुयी है,
      • उचित संदेह मौजूद है, यदि:
      • पुलिस अधिकारी के पास ऐसी शिकायत, सूचना या संदेह के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि अमुक व्यक्ति ने उक्त अपराध किया है,
      • पुलिस अधिकारी इस बात से संतुष्ट है कि ऐसी गिरफ्तारी आवश्यक है:
      • ऐसे व्यक्ति को आगे कोई अपराध करने से रोकना।
      • अपराध की उचित जाँच हेतु।
      • ऐसे व्यक्ति को अपराध के साक्ष्यों को गायब करने या ऐसे साक्ष्यों के साथ किसी भी तरह से छेड़छाड़ करने से रोकना।
      • ऐसे व्यक्ति को मामले के तथ्यों से परिचित किसी भी व्यक्ति को कोई प्रलोभन, धमकी या वादा करने से रोकना ताकि उसे न्यायालय या पुलिस अधिकारी के सामने ऐसे तथ्यों का खुलासा करने से रोका जा सके।
      • जब तक ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाता, आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित नहीं की जा सकती।
  • बशर्ते कि एक पुलिस अधिकारी, उन सभी मामलों में जहाँ इस उपधारा के प्रावधानों के तहत किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है, गिरफ्तारी न करने के कारणों को लिखित रूप में दर्ज़ करेगा।
  • पुलिस अधिकारी ऐसी गिरफ्तारी करते समय अपने कारणों को लिखित रूप में दर्ज़ करेगा:
    • जिसके विरुद्ध कोई शिकायत प्राप्त हुयी है या विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हुयी है, और यह उचित संदेह है कि ऐसे व्यक्ति ने एक संज्ञेय अपराध किया है, जिसके लिये 7 वर्ष से अधिक की जेल की सज़ा या ज़ुर्माना नहीं है, और उस सूचना के आधार पर पुलिस की राय है कि अमुक व्यक्ति ने उक्त अपराध किया है। या;
    • जब ऐसा व्यक्ति घोषित अपराधी हो। या;
    • जिसके कब्ज़े में कुछ चोरी की संपत्ति पाई जाती है और यह मानने का कारण मौज़ूद है कि ऐसे व्यक्ति ने उस चोरी की संपत्ति के संबंध में कोई अपराध किया है। या;
    • जब ऐसा व्यक्ति पुलिस अधिकारी को उसके कर्त्तव्य के निष्पादन में बाधा डालता है। या;
    • जो वैध हिरासत से भाग गया है या भागने का प्रयास किया है। या;
    • जब ऐसे व्यक्ति पर संघ के सशस्त्र बलों से भगोड़ा होने का उचित संदेह हो। या;
    • जब ऐसा व्यक्ति भारत के बाहर किये गए किसी कार्य से चिंतित होता है, जो भारत में अपराध है और जिसके विरुद्ध उचित शिकायत प्राप्त हुयी है या कुछ विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हुयी है या उचित संदेह मौजूद है और उसी के लिये, वह भारत में लागू किसी भी कानून के तहत प्रत्यर्पण या गिरफ्तारी के लिये उत्तरदायी है। या;
    • जब ऐसा व्यक्ति रिहा किया गया अपराधी हो और उसने अपनी रिहाई से संबंधित कुछ नियमों का उल्लंघन किया हो। या;
    • जब उसे किसी पुलिस अधिकारी द्वारा ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने की मांग के तहत गिरफ्तार किया जाता है, जिसे बिना वॉरंट के गिरफ्तार किया जा सकता है।

वॉरंट के साथ गिरफ्तारी (धारा 42 के तहत)

गैर-संज्ञेय अपराध में शामिल कोई भी व्यक्ति या जिसके विरुद्ध शिकायत की गई है या विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हुयी है या उसके ऐसा करने का उचित संदेह है, उसे वॉरंट या मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना गिरफ्तार नहीं किया जाएगा

प्राइवेट व्यक्ति

CrPC की धारा 43 एक प्राइवेट व्यक्ति को गिरफ्तारी की अनुमति देती है। जब कोई व्यक्ति:

उसकी उपस्थिति में गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध करता है। या;

घोषित अपराधी है।

मजिस्ट्रेट

एक मजिस्ट्रेट (कार्यकारी या न्यायिक) CrPC की धारा 44 के तहत किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी कर सकता है:

  • जब कार्यपालक या न्यायिक मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर कोई अपराध किया जाता है, तब वह अपराधी को स्वयं गिरफ्तार कर सकता है या गिरफ्तार करने के लिये किसी व्यक्ति को आदेश दे सकता है और तब जमानत के बारे में इसमें अंतर्विष्ट उपबंधों के अधीन रहते हुए, अपराधी को अभिरक्षा के लिये सुपुर्द कर सकता है ।
  • कोई कार्यपालक या न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी भी समय अपनी स्थानीय अधिकारिता के भीतर किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है, या अपनी उपस्थिति में उसकी गिरफ्तारी का निर्देश दे सकता है, जिसकी गिरफ्तारी के लिये वह उस समय और उन परिस्थितियों में वॉरंट जारी करने के लिये सक्षम है।

गिरफ्तारी की प्रक्रिया

गिरफ्तारी कैसे की जाए इसकी प्रक्रिया संहिता की धारा 46 के तहत प्रदान की गई है।

धारा 46 - गिरफ्तारी कैसे की जाएगी -

(1) गिरफ्तारी करने में पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति, जो गिरफ्तारी कर रहा है, गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति के शरीर को वस्तुतः छुएगा या परिरुद्ध करेगा, जब तक उसने वचन या कर्म द्वारा अपने को अभिरक्षा में समर्पित न कर दिया हो;
परंतु जहाँ किसी स्त्री को गिरफ्तार किया जाना है वहाँ जब तक कि परिस्थितियों से इसके विपरीत उपदर्शित न हो, गिरफ्तारी की मौखिक सूचना पर अभिरक्षा में उसके समर्पण कर देने की उपधारणा की जाएगी और जब तक कि परिस्थितियों में अन्यथा अपेक्षित न हो या जब तक पुलिस अधिकारी महिला न हो, तब तक पुलिस अधिकारी महिला को गिरफ्तार करने के लिये उसके शरीर को नहीं छुएगा।

(2) यदि ऐसा व्यक्ति अपने गिरफ्तार किये जाने के प्रयास का बलात् प्रतिरोध करता है या गिरफ्तारी से बचने का प्रयत्न करता है तो ऐसा पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति गिरफ्तारी करने के लिये आवश्यक सब साधनों को उपयोग में ला सकता है।

(3) इस धारा की कोई बात ऐसे व्यक्ति की जिस पर मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध का अभियोग नहीं है, मृत्यु कारित करने का अधिकार नहीं देती है।

(4) असाधारण परिस्थितियों के सिवाय, कोई स्त्री सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं की जाएगी और जहाँ ऐसी असाधारण परिस्थितियाँ विद्यमान हैं वहाँ स्त्री पुलिस अधिकारी, लिखित में रिपोर्ट करके, उस प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुज्ञा अभिप्राप्त करेगी, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर अपराध किया गया है या गिरफ्तारी की जानी है।

गिरफ्तारी संबंधी आवश्यक शर्तें

  • जहाँ गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है, वहाँ गिरफ्तारी से पहले अनिवार्य रूप से नोटिस जारी किया जाना चाहिये।
  • CrPC की धारा 41B के अनुसार - गिरफ्तारी करते समय प्रत्येक पुलिस अधिकारी को:
    • अपने नाम की सटीक, दृश्यमान और स्पष्ट पहचान रखनी होगी, जिससे पहचान में आसानी होगी।
    • गिरफ्तारी का एक ज्ञापन तैयार करे जो कम-से-कम एक गवाह द्वारा प्रमाणित हो, जो गिरफ्तार किये गए व्यक्ति के परिवार का सदस्य हो या उस इलाके का सम्मानित सदस्य हो, जहाँ गिरफ्तारी की गई है और गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित हो।
    • गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को यह अधिकार है, कि उसके द्वारा नामित किसी रिश्तेदार या मित्र को उसकी गिरफ्तारी के बारे में सूचित किया जाए।
  • CrPC की धारा 41C के अनुसार प्रत्येक ज़िले और राज्य स्तर पर पुलिस नियंत्रण कक्ष स्थापित किये जाने हैं।
  • एक पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के अलावा, निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग कर सकता है::
    • गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति द्वारा प्रवेश किये गए स्थान की तलाशी ले सकता है।
    • भारत में किसी भी स्थान पर किसी भी व्यक्ति का पीछा कर सकता है।
    • किसी व्यक्ति पर आवश्यकता से अधिक अंकुश नहीं लगाया जाएगा।
    • गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी का कारण के बारे में सूचित करे।
    • गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत के अधिकार के बारे में सूचित करे।
    • किसी नामित व्यक्ति को गिरफ्तारी के बारे में सूचित करने का दायित्व है।
    • गिरफ्तार व्यक्ति की तलाश करे।
    • आक्रामक हथियार जब्त करे।
    • पुलिस अधिकारी के अनुरोध पर आरोपी की चिकित्सीय जाँच करे।
    • बलात्कार के आरोपी व्यक्ति की चिकित्सीय जाँच करवाए।
    • गिरफ्तार व्यक्ति की चिकित्सीय जाँच करवाए।
  • गिरफ्तार व्यक्ति के स्वास्थ्य और सुरक्षा की उचित देखभाल करना अभिरक्षा में रखने वाले व्यक्ति का कर्त्तव्य है।
  • CrPC की धारा 57 के अनुसार गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को 24 घण्टे से अधिक निरुद्ध नहीं किया जाएगा।
  • प्रभारी अधिकारी बिना वॉरंट के सभी गिरफ्तारियों की रिपोर्ट ज़िला मजिस्ट्रेट को देगा।
  • गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को उसके स्वयं के मुचलके/जमानत/मजिस्ट्रेट के विशेष आदेश पर रिहा किया जायेगा।
  • भागने की स्थिति में पीछा करने और पुनः गिरफ्तार करने का अधिकार पुलिस अधिकारी के पास होगा।
  • CrPC की धारा 60A के अनुसार सख्ती से गिरफ्तारी की जाएगी।
    • अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014) में, भारत के उच्चतम न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि पुलिस अधिकारी आरोपी को अनावश्यक रूप से गिरफ्तार न करे और मजिस्ट्रेट ऐसे मामलों में अभिरक्षा को अधिकृत न करे।

निर्णयज विधि

  • डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1996) का ऐतिहासिक मामला संवैधानिक और वैधानिक सुरक्षा उपायों के अलावा उच्चतम न्यायालय द्वारा अनिवार्य दिशा अनुदेशों का प्रावधान करता है, जिसका गिरफ्तारी और अभिरक्षा संबंधी मामलों में पालन किया जाना आवश्यक है। उपरोक्त दिशा अनुदेश इस प्रकार हैं:
    • गिरफ्तार करने वाले अधिकारी की पहचान स्पष्ट रूप से दिखाई देनी चाहिये और सभी विवरण रजिस्टर में दर्ज़ किये जाने आवश्यक हैं।
    • एक ज्ञापन तैयार किया जाना चाहिये, जिसमें सभी विवरण शामिल हों, जिसे बंदी के नजदीकी या प्रियजन द्वारा देखा जाना चाहिये।
    • पुलिस को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि आरोपी को सूचना पाने के अधिकार का लाभ मिले।
    • पुलिस को गिरफ्तारी के 8-12 घंटे के भीतर कानूनी सहायता संगठन के बारे में सूचित करना होगा।
    • गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को आरोपी के रूप में उसके अधिकार की जानकारी अवश्य दी जानी चाहिये।
    • निर्धारित डायरी में प्रविष्टि अवश्य करनी होगी।
    • यदि गिरफ्तार व्यक्ति घायल हो तो उसकी वैधानिक जाँच की जानी चाहिये।
    • चिकित्सीय जाँच 48 घंटे के भीतर होनी चाहिये।
    • सभी विवरण मजिस्ट्रेट को लिखित रूप में भेजे जाने चाहिये।
    • गिरफ्तार व्यक्ति को वकील से मिलने की अनुमति दी जानी चाहिये।
    • अधिकारियों को संचार हेतु एक कमरा उपलब्ध कराया जाए।