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आपराधिक कानून

विरोध याचिका

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 10-Apr-2024

परिचय:

विरोध याचिका, पीड़ित या गुप्तचर द्वारा पुलिस जाँच के दौरान या उसके पूरा होने के उपरांत किसी मामले में पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट के विरुद्ध आपत्ति जताने के लिये न्यायालय में किया गया एक प्रतिनिधित्व है।

  • इसे दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के अधीन परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन यह एक तंत्र है, जो वर्षों से न्यायिक घोषणाओं के माध्यम से विकसित हुआ है।

विरोध याचिका की अवधारणा:

  • CrPC की धारा 169 में मामले की जाँच कर रहे पुलिस अधिकारी को क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने का प्रावधान है, अगर उसकी राय है कि मामले में आरोपी के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य मौजूद नहीं हैं ताकि मजिस्ट्रेट मामले में संज्ञान ले सके।
  • क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल करने से विचारण वस्तुतः समाप्त हो जाता है, हालाँकि शिकायतकर्त्ता या पीड़ित व्यक्ति न्यायालय के समक्ष ऐसी क्लोज़र रिपोर्ट के विरुद्ध विरोध याचिका दायर कर सकता है।

विरोध याचिका का महत्त्व:

  • विरोध याचिका देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि यह पीड़ित पक्ष को जाँच की नियमित प्रक्रिया का विकल्प देती है जो कभी-कभी लंबी हो सकती है और अक्सर मामले की सत्यता सामने लाने में असमर्थ होती है।
  • यह पीड़ित पक्ष को सीधे मजिस्ट्रेट से संपर्क करने एवं न्यायालय से उपाय मांगने की अनुमति देता है। हालाँकि, आपराधिक विधियों में इस अवधारणा के संहिताकरण की कमी इसे पूरी तरह से न्यायालयों के विवेक पर छोड़ देती है।

विरोध याचिका दाखिल करना:

  • जब कोई भी पीड़ित व्यक्ति CrPC की धारा 156(3) के अधीन मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कराता है तो मजिस्ट्रेट शिकायत याचिका से संतुष्ट होकर पुलिस को जाँच के लिये निर्देश देता है।
  • जाँच करने के बाद पुलिस अधिकारी CrPC की धारा 173(2) के अधीन अपनी जाँच रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को सौंपता है
  • पीड़ित या शिकायतकर्त्ता पुलिस से संतुष्ट नहीं होने की स्थिति में संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष विरोध याचिका दायर करता है तथा अपना असंतोष जताते हुए न्यायालय की निगरानी में आगे की जाँच के लिये प्रार्थना करता है। साथ ही पीड़ित व्यक्ति CrPC की धारा 200 और 202 के तहत भविष्य की कार्यवाही के लिये भी प्रार्थना कर सकता है।
  • यदि विरोध याचिका स्वीकार कर ली जाती है, तो मजिस्ट्रेट CrPC की धारा 190 के तहत मामले का संज्ञान लेता है और आरोपी व्यक्ति को नोटिस जारी करता है।

विरोध याचिका का परिणाम:

  • मजिस्ट्रेट पुलिस अधिकारी की अंतिम रिपोर्ट को स्वीकार कर सकता है तथा विरोध याचिका को खारिज कर सकता है।
  • मजिस्ट्रेट अंतिम रिपोर्ट को स्वीकार कर सकता है और विरोध याचिका को शिकायत याचिका के रूप में भी मान सकता है तथा CrPC की धारा 200 एवं 202 के अधीन इस पर कार्यवाही कर सकता है।
  • मजिस्ट्रेट विरोध याचिका स्वीकार कर सकता है और अंतिम रिपोर्ट को अस्वीकार कर सकता है तथा CrPC की धारा 190 के तहत संज्ञान ले सकता है।
  • मजिस्ट्रेट का विवेक:
    • मजिस्ट्रेट पुलिस अधिकारी द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिये बाध्य नहीं है।
    • मजिस्ट्रेट उस रिपोर्ट से असहमत हो सकता है तथा पुलिस रिपोर्ट के साथ प्रस्तुत या संलग्न दस्तावेज़ों के आधार पर संज्ञान ले सकता है।

निर्णयज विधि:

  • राजेश बनाम हरियाणा राज्य (2019) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि न्यायालयों को किसी आरोपी को समन करने के लिये CrPC के अधीन अपनी शक्ति का प्रयोग करना चाहिये, भले ही उसका नाम आरोप पत्र में न हो। इसका प्रयोग इसलिये नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि एक न्यायाधीश की राय है कि कोई अन्य भी दोषी हो सकता है, लेकिन केवल तभी जब किसी व्यक्ति के विरुद्ध साक्ष्य के द्वारा मज़बूत एवं अकाट्य साक्ष्य हों।
  • विष्णु कुमार तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2019) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सभी विरोध याचिकाओं को शिकायत याचिका के रूप में नहीं माना जाना चाहिये। न्यायालय ने कहा कि यदि मजिस्ट्रेट अंतिम रिपोर्ट एवं पुलिस द्वारा दर्ज साक्षियों के बयानों पर विचार के आधार पर आश्वस्त है कि प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं है तो उसे विरोध याचिका को शिकायत याचिका मानकर संज्ञान लेने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता।