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आपराधिक कानून

अन्वेषण समाप्त होने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट

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 06-Feb-2024

परिचय

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 173 अन्वेषण समाप्त होने पर एक पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से संबंधित है जिसे अंतिम रिपोर्ट माना जाता है और पुलिस अन्वेषण पूर्ण होते ही इसे प्रस्तुत किया जाना चाहिये।

  • यह धारा संज्ञेय और असंज्ञेय दोनों मामलों के अन्वेषण पर लागू होती है।

CrPC की धारा 173

  • धारा 173 (1) के अनुसार, इस अध्याय के अधीन किया जाने वाला प्रत्येक अन्वेषण अनावश्यक विलंब के बिना पूरा किया जाएगा।
    • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376, धारा 376A, धारा 376AB, धारा 376B, धारा 376C, धारा 376D, धारा 376DA, धारा 376DB या धारा 376E के अधीन बालिका के साथ बलात्संग के अपराध के संबंध में अन्वेषण उस तारीख से, जिसको पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा इत्तिला अभिलिखित की गई थी, दो मास के भीतर पूरा किया जा सकेगा।
  • जैसे ही वह पूरा होता है, वैसे ही पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी, पुलिस रिपोर्ट पर उस अपराध का संज्ञान करने के लिये सशक्त मजिस्ट्रेट को राज्य सरकार द्वारा विहित प्रारूप में एक रिपोर्ट भेजेगा, जिसमें निम्नलिखित बातें कथित होंगी-
    (a) पक्षकारों के नाम।
    (b)  इत्तिला का स्वरूप।
    (c) मामले की परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले व्यक्तियों के नाम।
    (d) क्या कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है और यदि किया गया प्रतीत होता है, तो किसके द्वारा।
    (e) क्या अभियुक्त गिरफ्तार कर लिया गया है।
    (f) क्या वह अपने बंधपत्र पर छोड़ दिया गया है और यदि छोड़ दिया गया है तो वह बंधपत्र प्रतिभुओं सहित है या प्रतिभुओं रहित।
    (g) क्या वह धारा 170 के अधीन अभिरक्षा में भेजा जा चुका है।
    (h) जहाँ अन्वेषण IPC की धारा 376, धारा 376A, धारा 376AB, 376B, धारा 376C, धारा 376D, 376DA, 376DB, या धारा 376E के अधीन किसी अपराध के संबंध में है, वहाँ क्या स्त्री की चिकित्सा परीक्षा की रिपोर्ट संलग्न की गई है।
  • वह अधिकारी अपने द्वारा की गई कार्यवाही की संसूचना, उस व्यक्ति को, यदि कोई हो, जिसने अपराध किये जाने के संबंध में सर्वप्रथम इत्तिला दी उस रीति से देगा, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए।
  • जहाँ धारा 158 के अधीन कोई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नियुक्त किया गया है वहाँ ऐसे किसी मामले में, जिसमें राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा ऐसा निदेश देती है, वह रिपोर्ट उस अधिकारी के माध्यम से दी जाएगी और वह, मजिस्ट्रेट का आदेश होने तक के लिये, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह निदेश दे सकता है कि वह आगे और अन्वेषण करे।
  • 173(4) के अनुसार, मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट द्वारा बाध्य नहीं है।
    • जब कभी इस धारा के अधीन भेजी गई रिपोर्ट से यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त को उसके बंधपत्र पर छोड़ दिया गया है तब मजिस्ट्रेट उस बंधपत्र के उन्मोचन के लिये या अन्यथा ऐसा आदेश करेगा जैसा वह ठीक समझे।
    • यदि वह क्लोज़र रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं है और संज्ञान लेने का निर्णय करता है, तो वह उस बंधपत्र के आधार पर अभियुक्त को समन करेगा।
  • धारा 173(5) के तहत, पुलिस अधिकारी का कर्त्तव्य है कि वह अपनी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को भेजे:
    • वे सब दस्तावेज़ या उनके सुसंगत उद्धरण, जिन पर निर्भर करने का अभियोजन का विचार है और जो उनसे भिन्न हैं जिन्हें अन्वेषण के दौरान मजिस्ट्रेट को पहले ही भेज दिया गया है।
    • उन सब व्यक्तियों के, जिनकी साक्षियों के रूप में परीक्षा करने का अभियोजन का विचार है, धारा 161 के अधीन अभिलिखित कथन।
  • धारा 173(6) में कहा गया है कि यदि पुलिस अधिकारी की यह राय है कि ऐसे किसी कथन का कोई भाग कार्यवाही की विषयवस्तु से सुसंगत नहीं है या उसे अभियुक्त को प्रकट करना न्याय के हित में आवश्यक नहीं है और लोकहित के लिये असमीचीन है तो वह कथन के उस भाग को उपदर्शित करेगा तथा अभियुक्त को दी जाने वाली प्रतिलिपि में से उस भाग को निकाल देने के लिये निवेदन करते हुए एवं ऐसा निवेदन करने के अपने कारणों का कथन करते हुए एक नोट मजिस्ट्रेट को भेजेगा।
  • पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट को उन कथनों या उसके भाग के बारे में भी बताएगा, जिन्हें न्याय के हित में अभियुक्त को उसके कारणों के साथ प्रकट नहीं किया जाना चाहिये। लेकिन मजिस्ट्रेट पुलिस अधिकारी की राय मानने के लिये बाध्य नहीं है क्योंकि यह उसका विवेक है कि वह उस प्रति से उस भाग को हटा दे या नहीं, जो अभियुक्त को दिया जाना है।
  • धारा 173(7) के अनुसार, जहाँ मामले का अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी ऐसा करना सुविधापूर्ण समझता है वहाँ वह उपधारा (5) में निर्दिष्ट सभी या किन्हीं दस्तावेज़ों की प्रतियाँ अभियुक्त को दे सकता है।
  • उपधारा (8) के तहत प्रस्तुत की गई रिपोर्ट को आस्थगित आरोप पत्र कहा जाता है। यह एक पुलिस रिपोर्ट है जो उपधारा (2) के तहत पहली अंतिम रिपोर्ट दर्ज करने के बाद उपधारा (8) के तहत दर्ज की जाती है।
  • इस धारा की कोई बात किसी अपराध के बारे में उपधारा (2) के अधीन मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेज दी जाने के पश्चात् आगे और अन्वेषण को प्रविरत करने वाली नहीं समझी जाएगी तथा जहाँ ऐसे अन्वेषण पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को कोई अतिरिक्त मौखिक या दस्तावेज़ी साक्ष्य मिले वहाँ वह ऐसे साक्ष्य के संबंध में अतिरिक्त रिपोर्ट या रिपोर्टें मजिस्ट्रेट को विहित प्ररूप में भेजेगा तथा उपधारा (2) से (6) तक के उपबंध ऐसी रिपोर्ट या रिपोर्टों के बारे में, जहाँ तक हो सके, ऐसे लागू होंगे, जैसे वे उपधारा (2) के अधीन भेजी गई रिपोर्ट के संबंध में लागू होते हैं।

पुलिस रिपोर्ट

  • पुलिस रिपोर्ट का अर्थ एक औपचारिक आरोप, पत्र या चालान है जिसमें अन्वेषण के पश्चात् एक पुलिस अधिकारी द्वारा संज्ञेय अपराध के आरोप शामिल होते हैं।
  • एक चालान, जिसमें संज्ञेय अपराध का कोई आरोप नहीं लगाया गया है, लेकिन यह उल्लेख किया गया है कि व्यक्ति के विरुद्ध कोई मामला नहीं है, पुलिस रिपोर्ट नहीं है।

निर्णयज विधि:

  • सतीश कुमार न्यालचंद शाह बनाम गुजरात राज्य, (2020) में, उच्चतम न्यायालय ने दोहराया है कि न्यायालय संहिता की धारा 173(8) के तहत आगे के अन्वेषण के लिये किसी भी निर्देश से पहले अभियुक्त को सुनने के लिये बाध्य नहीं है।