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आपराधिक कानून

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 530

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 02-Sep-2025

परिचय 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 530, कार्यवाही के इलेक्ट्रॉनिक तरीके को सांविधिक रूप से मान्यता देकर आपराधिक प्रक्रिया में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाती है। यह उपबंध सभी आपराधिक विचारणों, जांच और सहायक कार्यवाहियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से संचालित करने के लिये विधिक आधार स्थापित करता है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया का आधुनिकीकरण होता है। यह धारा न्यायिक प्रशासन में तकनीकी प्रगति की विधायी स्वीकृति का प्रतिनिधित्व करती है और आभासी न्यायालय की कार्यवाहियों के लिये सांविधिक स्वीकृति प्रदान करती है, जो पहले न्यायिक विवेकाधिकार के अधीन संचालित होती थीं।  

इलेक्ट्रॉनिक कार्यवाही और आदेशिकाओं की तामील का दायरा 

  • धारा 530 अपने इलेक्ट्रॉनिक ढाँचे के अंतर्गत संपूर्ण आपराधिक कार्यवाही को समाहित करती है, और न्यायिक प्रक्रिया के चार महत्त्वपूर्ण घटकों को विशेष रूप से रेखांकित करती है। यह उपबंध स्पष्ट रूप से समन और वारण्ट के इलेक्ट्रॉनिक जारी करने, तामील करने और निष्पादन को अधिकृत करता है, जिससे पारंपरिक प्रक्रियात्मक मानदंडों के अधीन भौतिक वितरण की अनिवार्य आवश्यकता समाप्त हो जाती है। 
  • प्रक्रिया की इलेक्ट्रॉनिक तामील, क्षेत्रीय अधिकारिता और मैन्युअल तामील में निहित प्रक्रियागत विलंब के दीर्घकालिक विवाद्यकों का समाधान करती है। इस ढाँचे के अंतर्गत, न्यायालय इलेक्ट्रॉनिक तामील के माध्यम से अधिकारिता प्राप्त करते हैं, बशर्ते कि उचित प्रक्रिया की आवश्यकताओं को पर्याप्त सूचना और सुनवाई के अवसर के माध्यम से पूरा किया जाए। यह उपबंध स्वतंत्रता के मनमाने हनन के विरुद्ध सांविधानिक सुरक्षा उपायों को बनाए रखते हुए रचनात्मक तामील के सिद्धांतों को निहित रूप से समाहित करता है। 
  • इलेक्ट्रॉनिक वारण्ट निष्पादन तंत्र, अन्वेषण एजेंसियों और न्यायिक अधिकारियों के बीच वास्तविक समय में समन्वय स्थापित करके विधि प्रवर्तन प्रक्रियाओं को पूरी तरह परिवर्तित कर देता है। यह डिजिटल एकीकरण वारण्ट की वैधता के तत्काल सत्यापन की सुविधा प्रदान करता है और मैन्युअल निष्पादन प्रक्रियाओं के दौरान अक्सर उत्पन्न होने वाली प्रक्रियागत अनियमितताओं को कम करता है। 

पक्षकारों की परीक्षा और डिजिटल साक्ष्य अभिलेखन 

  • यह उपबंध परिवादकर्त्ताओं और साक्षियों की इलेक्ट्रॉनिक परीक्षा को अधिकृत करता है, जिससे आपराधिक विचारण में परिसाक्ष्य की प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन होता है। यह ढाँचा न्यायलयों को ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों से शपथ-युक्त परिसाक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम बनाता है, जबकि संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन प्रत्याभूतिकृत शपथ-ग्रहण और प्रतिपरीक्षा के अधिकारों की पवित्रता को बनाए रखता है। 
  • साक्ष्य के इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखन से स्थायी डिजिटल अभिलेखागार निर्मित होते हैं, जो अपीलीय पुनरीक्षण की प्रक्रिया को सुदृढ़ करते हैं तथा न्यायालय की कार्यवाही की मैनुअल लिप्यांकन प्रणाली से सामान्यतः उत्पन्न होने वाली त्रुटियों को न्यूनतम करते हैं। डिजिटल प्रारूप, विश्वसनीयता मूल्यांकन के लिये महत्त्वपूर्ण गैर-मौखिक संसूचना और व्यवहार संबंधी साक्ष्य सहित, साक्ष्य के शब्दशः संरक्षण को सुनिश्चित करता है। 
  • यह उपबंध भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65ख के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों के साक्ष्यात्मक मूल्य को स्पष्ट रूप से मान्यता देता है, जिससे प्रक्रियात्मक और मूल विधि के बीच सांविधिक सामंजस्य स्थापित होता है। इलेक्ट्रॉनिक रूप से अभिलिखित किये गए साक्ष्यों पर विचार करते समय न्यायालयों को प्रमाणीकरण आवश्यकताओं और अभिरक्षा प्रोटोकॉल की श्रृंखला का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिये 

अपीलीय अधिकारिता और आभासी कार्यवाही 

  • धारा 530 अपीलीय मंचों तक इलेक्ट्रॉनिक कार्यवाहियों का विस्तार करती है, जिसके अंतर्गत उच्चतर न्यायालय आभासी प्लेटफॉर्म के माध्यम से सुनवाई संपन्न कर सकते हैं, बिना अपीलीय पक्ष-विवाद की प्रकृति से समझौता किये। यह रूपरेखा दूरस्थ भौगोलिक क्षेत्रों से आने वाले वादकारियों के लिये उच्च न्यायिक मंचों तक पहुँच को सुगम बनाती है तथा साथ ही साथ प्रक्रमिक निष्पक्षता को भी बनाए रखती है।  
  • इलेक्ट्रॉनिक अपीलीय कार्यवाहियाँ सुनवाई एवं प्रतिनिधित्व के मौलिक अधिकारों को संरक्षित करती हैं, साथ ही उन भौगोलिक अवरोधों को समाप्त करती हैं, जो प्रायः प्रभावी अपीलीय पक्ष-विवाद में बाधक सिद्ध होते हैं। यह उपबंध वास्तविक समय में अभिलेखों के आदान-प्रदान एवं प्रस्तुतीकरण को सक्षम बनाता है, जिससे अपीलीय निवेदन-पत्र की गुणवत्ता तथा न्यायिक निर्णय-प्रक्रिया की दक्षता में वृद्धि होती है। 
  • यह ढाँचा विविध आवेदनों, अंतरिम आदेशों और प्रशासनिक कार्यवाहियों को भी सम्मिलित करता है, जिससे आपराधिक न्याय प्रशासन के लिये एक व्यापक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होता है। अब न्यायालय जमानत की सुनवाई, रिमांड कार्यवाही और वाद प्रबंधन सम्मेलन इलेक्ट्रॉनिक रूप से आयोजित कर सकती हैं, जिससे न्यायिक संसाधनों का अधिकतम आवंटन हो सकेगा। 

सांविधानिक वैधता और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय 

  • धारा 530 के कार्यान्वयन को अनुच्छेद 14, 19 और 21 में निहित उचित प्रक्रिया, निष्पक्ष विचारण और न्याय तक पहुँच के सांविधानिक आदेशों का पालन करना होगा। इलेक्ट्रॉनिक कार्यवाही अभियुक्त व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों से समझौता नहीं कर सकती है, जिसमें विधिक प्रतिनिधित्व और पर्याप्त बचाव तैयारी का अधिकार सम्मिलित है। 
  • इलेक्ट्रॉनिक कार्यवाही की अखंडता सुनिश्चित करने के लिये न्यायालयों को मज़बूत प्रमाणीकरण तंत्र, साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल और तकनीकी अवसंरचना स्थापित करनी होगी। इस उपबंध में न्यायिक विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये तकनीकी विफलताओं, कनेक्टिविटी संबंधी समस्याओं और डिजिटल साक्ष्य संरक्षण हेतु मानकीकृत प्रक्रियाओं के विकास की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 530 एक परिवर्तनकारी विधायी हस्तक्षेप है जो तकनीकी प्रगति को आपराधिक न्याय प्रशासन के सांविधानिक सिद्धांतों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। यह उपबंध निष्पक्ष विचारण की प्रत्याभूति के लिये आवश्यक मौलिक प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को संरक्षित करते हुए इलेक्ट्रॉनिक कार्यवाही के लिये व्यापक सांविधिक अधिकार स्थापित करता है। जैसे-जैसे न्यायालय कार्यान्वयन ढाँचे विकसित करेगा, यह धारा न्यायिक प्रशासन में प्रणालीगत सुधारों को गति प्रदान करेगी, जिससे अंततः डिजिटल वातावरण में विधि का शासन बनाए रखते हुए न्याय तक पहुँच बढ़ेगी।