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सिविल कानून
एक ही बात पर एक ही अर्थ में मतैक्य
« »21-Dec-2023
परिचय:
'कंसेन्सस एड आइडेम' (Consensus ad idem) एक 'लैटिन' शब्द है जिसका अर्थ है, सहमति। यह पहला सिद्धांत है जो लागू करने योग्य संविदाओं की नींव है क्योंकि संविदाओं को लागू करने के लिये, सभी शामिल पक्षों के बीच सहमति या विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है।
- यह एक सामान्य कानून अवधारणा है जिसके लिये संविदा में उल्लिखित दोनों पक्षों को संविदा में उल्लिखित शर्तों को स्वीकार करने और उनका अनुपालन करने के लिये एक समान आशय की आवश्यकता होती है।
- भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (Indian Contracts Act- ICA) की धारा 2(a) में प्रावधान है कि 'कोई व्यक्ति किसी कार्य के लिये दूसरे की सहमति प्राप्त करने की दृष्टि से कुछ भी करने या करने से प्रविरत रहने के संबंध में किसी अन्य के समक्ष एक प्रस्ताव रखता है। अर्थात प्रस्ताव एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष के विशिष्ट प्रदर्शन के बदले में कुछ करने या न करने के संबंध में किया गया वादा है।
- एक बार जब दूसरा पक्ष प्रस्ताव स्वीकार कर लेता है, तो एक समझौता हो जाता है। यद्यपि एक वैध संविदा होने से पहले अन्य तत्त्वों को पूरा करना पड़ता है, आम सहमति का सिद्धांत संविदा के आधार के रूप में कार्य करता है।
स्पष्टीकरण:
- A अपनी कार B को बेचने के लिये सहमत है। A के पास तीन कारें हैं और वह मारुति बेचना चाहता है। B सोचता है कि वह अपनी होंडा खरीद रहा है। यहाँ A और B एक ही बात पर एक ही अर्थ में सहमत नहीं हैं। इसलिये कोई सहमति और संविदा नहीं है।
पक्षों को एक ही बात पर एक ही अर्थ में सहमत होना चाहिये
- ICA की धारा 13 के अनुसार सहमति का तात्पर्य दो या दो से अधिक व्यक्तियों का किसी सामान्य बात पर सहमत होने से है।
- दूसरे शब्दों में दृष्टिकोण पर सहमति तब होती है जब संविदा करने वाले दोनों पक्ष पूरी तरह से उसे समझते हैं और संविदा करने पर सभी संविदात्मक दायित्वों को निभाने के लिये स्वतंत्र रूप से सहमत होते हैं।
त्रुटि:
- ICA की धारा 20, 21 और 22, जो त्रुटि से संबंधित अवधारणा से संबंधित हैं, में त्रुटि को परिभाषित नहीं किया गया है।
- त्रुटि का अर्थ गलत धारणा से है, अर्थात किसी निर्दोष पक्ष के लिये गलतफहमी उत्पन्न होना।
- समझौते के नियम एवं शर्तें स्पष्ट न होने पर त्रुटि होते हैं। दोनों पक्ष अलग-अलग शर्तों पर परिणामों को समझते हैं तथा इनमें एक ही बात पर एक ही अर्थ में मतैक्य (Consensus Ad Idem) का अभाव रहता है।
तथ्य की त्रुटि:
- तथ्य की अनदेखी कानून के तहत क्षम्य है। इस अधिनियम की धारा 20 के तहत इस शब्द की व्याख्या की गई है।
- द्विपक्षीय त्रुटि:
- जब किसी संविदा के संबंध में दोनों पक्षों के बीच तथ्यों के संबंध में त्रुटि हो, तो ऐसी त्रुटि को हम द्विपक्षीय त्रुटि (Bilateral Mistake) कहते हैं।
- चूँकि ऐसे में सहमति का पूरी तरह से अभाव होने से समझौता शून्य होता है।
- एकपक्षीय त्रुटि:
- एकपक्षीय त्रुटि तब होती है जब संविदा के केवल एक पक्ष द्वारा त्रुटि की जाती है।
- इस अधिनियम की धारा 22 में कहा गया है कि तथ्य के संबंध में मात्र एक पक्ष की त्रुटि से संविदा को शून्य या अमान्य नहीं माना जाएगा। इसलिये यदि केवल एक पक्ष ने तथ्यात्मक त्रुटि की है तो संविदा एक वैध संविदा बनी रहेगी।
द्विपक्षीय त्रुटियों के प्रकार:
- विषय वस्तु के अस्तित्त्व के संबंध में त्रुटि:
- जब संविदा की विषय वस्तु का अस्तित्त्व संविदा के पक्षकारों के बीच समझौता होने से पहले ही समाप्त हो जाता है और उन्हें इस तथ्य की जानकारी नहीं होती है, तो यह माना जाता है कि संविदा समाप्त हो गई है और इसलिये संविदा को शून्य माना जाएगा।
- विषय वस्तु की गुणवत्ता के संबंध में त्रुटि:
- यदि संविदा के पक्षकार संविदा की विषय-वस्तु के संबंध में नहीं बल्कि उसकी गुणवत्ता के संबंध में गलत हैं, तो संविदा को वैध माना जाएगा।
- विषयवस्तु की मात्रा के संबंध में त्रुटि:
- यदि संविदा के दोनों पक्ष विषय वस्तु की मात्रा के संबंध में त्रुटि करते हैं, तो समझौते को शून्य माना जाता है।
- उदाहरण के लिये, अंकिता ने अपने पत्र के आधार पर शुभम से एक कार खरीदने पर सहमति व्यक्त की जिसमें टाइपिंग एरर के कारण उल्लिखित कीमत 5 लाख के बजाय 50000 थी। विषय वस्तु की मात्रा संबंधी त्रुटि के कारण उक्त समझौता शून्य माना जाता है।
- विषय वस्तु के शीर्षक के संबंध में त्रुटि:
- कभी-कभी उक्त संपत्ति या वस्तु का क्रेता पहले से ही उस चीज़ का मालिक हो सकता है जिसे विक्रेता बेचना चाहता है।
- यहाँ दोनों पक्षों द्वारा उक्त वस्तु या संपत्ति के स्वामित्व को लेकर त्रुटि हो सकती है।
- चूँकि ऐसे मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे विक्रेता अंतरित कर सके, ऐसी कोई संविदा नहीं है जो बाद में शून्य हो जाए।
निर्णयज विधि:
- कंडी बनाम लिंडसे (1878):
- यह त्रुटि के विषय पर एक अंग्रेज़ी संविदा कानून का मामला है, जो इस अवधारणा को प्रस्तुत करता है कि पहचान के संबंध में त्रुटि से संविदा स्वयं रद्द हो सकती है, जहाँ यह प्रमुख महत्त्व की है।
- स्मिथ बनाम ह्यूजेस (1870):
- वादी प्रतिवादी से कुछ जई खरीदने के लिये यह विश्वास करते हुए सहमत हुआ कि वे पुराने थे जबकि वास्तव में वे नए थे। अंग्रेज़ी न्यायालय (English Court) ने माना कि प्रतिवादी इस आधार पर संविदा से बच नहीं सकता कि जई के पुराने होने के बारे में उससे त्रुटि हुई थी।