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व्यवहार विधि
करार सहित एक वैध संविदा के मर्मभूत
« »06-Oct-2023
परिचय
एक संविदा का अर्थ है जब दो पक्षकार एक करार लिखते हैं, जिसमें कुछ बाध्यता (वचन) होती है, जिन्हें पक्षकारों द्वारा पूरा किया जाना होता है तथा जब ऐसा लिखित करार विधि द्वारा प्रवर्तनीय हो जाता है, तो यह एक संविदा बन जाता है।
परिभाषा/परिनिश्चय
- भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 2 (h) 'संविदा' शब्द को 'विधि द्वारा प्रवर्तित करने योग्य एक करार' के रूप में परिभाषित करती है।
- इस परिभाषा के दो प्रमुख तत्त्व हैं: करार तथा विधि द्वारा प्रवर्तनीय।
- करार - वह प्रत्येक वचन अथवा समुच्चय वचन है, जो दोनों पक्षकारों के लिये विचारण का निर्माण करते हैं, करार कहलाते हैं।
- विधि द्वारा प्रवर्तनीय- संविदा, विधि द्वारा प्रवर्तनीय तब होता है जब इन वचनों को न्यायलय में वैध ठहराया जाता है तथा संविदा के पक्षकारों को अपने वचनों को पूरा करने के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता हो।
- वचन- भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 2(b) वचन को इस प्रकार परिभाषित करती है: 'जब संबंधित व्यक्ति प्राप्त प्रस्ताव पर अपनी सहमति व्यक्त करता है, तो प्रस्ताव एक स्वीकृत प्रस्ताव बन जाता है। यह प्रस्ताव जब स्वीकार कर लिया जाता है, तो एक वचन का रूप ले लेता है'। जब इसे करार में शामिल सभी पक्षकारों द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो कुछ करने अथवा न करने का यह वचन एक करार बन जाता है।
- करार
- एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को दिया गया एक वचन अथवा अभिबंधन ही करार है। इसमें एक ऐसा प्रस्ताव शामिल है, जो एक व्यक्ति द्वारा दिया गया है तथा दूसरे व्यक्ति द्वारा स्वीकार किया गया है।
- करार के मर्मभूत:
- पक्षकार- किसी करार के लिये दो अथवा दो से अधिक पक्षकार होने चाहिये।
- प्रस्थापना अथवा प्रस्ताव - प्रस्ताव एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को दिया जाना चाहिये।
- जिस व्यक्ति(यों) को प्रस्ताव दिया गया है, उसे प्रस्ताव के सभी पहलुओं एवं शर्तों को स्पष्ट रूप से समझना चाहिये।
- स्वीकृति - प्रस्थापनकर्त्ता अथवा जिस व्यक्ति को प्रस्ताव दिया गया है, उसे प्रस्ताव स्वीकार करना होगा तथा इसकी सभी शर्तों पर अपनी सहमति देनी होगी।
- वचन - जब प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तो वह स्वीकृत प्रस्ताव अथवा वचन बन जाता है। एक प्रस्ताव को स्वीकृति मिलने के बाद ही उसे वचन के रूप में माना जाता है।
- प्रतिफल - एक करार एक प्रतिफल के साथ स्वीकार किया जाता है जो प्रतिफल के रूप में भुगतान किये जाने वाले वचन की कीमत है।
प्रस्थापना + स्वीकृति= करार
करार/स्वीकृत वचन + विधि द्वारा प्रवर्तनीय = संविदा
- संविदा
- विधि द्वारा प्रवर्तनीय करार को संविदा कहा जाता है। किसी करार को तब तक संविदा नहीं कहा जा सकता, जब तक कि वह विधि द्वारा प्रवर्तित न किया गया हो। संविदा एक ऐसा करार है, जिसे दोनों पक्षकारों द्वारा स्वीकार किया जाता है तथा विधि द्वारा प्रवर्तित किया जाता है।
- एक वैध संविदा के मर्मभूत: एक संविदा के वैध होने के लिये, इसे विधि द्वारा प्रवर्तित किया जाना चाहिये तथा इसमें भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 10 के तहत दिये गए निम्नलिखित मर्मभूत शामिल होने चाहिये।
- दो पक्षकार- एक वैध संविदा में कम से कम दो पक्षकार शामिल होने चाहिये; एक जो प्रस्ताव पेश करता है तथा दूसरा जिसे प्रस्ताव दिया गया है एवं जिसको इसे प्रवर्तनीय बनाने के लिये प्रस्ताव को स्वीकार करना होगा।
- विधिक् बाध्यता- संविदा से संबंधित पक्षकारों का आशय विधिक् बाध्यता का पालन करना होना चाहिये। सामाजिक करार और बाध्यताओं को संविदा नहीं माना जाता क्योंकि वे किसी भी पक्षकार पर कोई विधिक बाध्यता नहीं बनाते हैं।
- निम्न शर्तें- एक वैध संविदा में अर्थ की निश्चितता होनी चाहिये।
- उदाहरण- A उचित राशि पर B का घर खरीदने के लिये सहमत होता है। एक वैध संविदा में वह निश्चित राशि उल्लिखित होनी चाहिये जो A, B को उसका घर खरीदने के लिये भुगतान करना चाहता है।
- संभाव्य निष्पादन - कोई अनुबंध तभी वैध माना जाता है जब उसमें किसी असंभव कार्य का निष्पादन शामिल न हो।
- उदाहरण- A, B के पिता को दस हज़ार रुपए में पुनः जीवित करने के लिये B के साथ संविदा करता है। चूँकि संविदा में एक असंभव कार्य का निष्पादन शामिल है, इसलिये यह वैध संविदा नहीं है।
- स्वतंत्र सम्मति - संविदा करने वाले पक्षकारों को संविदा के लिये अपनी स्वतंत्र सम्मति प्रदान करनी होगी।
- सक्षमता - संविदा में भाग ले रहे पक्षकरों को विधिक् रूप से सक्षम होना चाहिये। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 11 के अनुसार, जिन लोगों को संविदा में भाग लेने के लिये सक्षम माना जाता है उनमें शामिल हैं: एक व्यक्ति जो कानून के अनुसार वयस्क है, स्वस्थ मानसिकता वाला है तथा संविदा में भाग लेने के लिये विधिक् रूप से अयोग्य नहीं है ( इसमें दोषी, अन्यदेशीय शत्रु, विदेशी नागरिक आदि शामिल हैं)
- प्रतिफल- संविदा में ‘क्विड प्रो क्वो’ अथवा ली हुई वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु देना/विनिमय के सिद्धांत के अनुसार प्रतिफल शामिल होना चाहिये। एक वैध संविदा में मूल्यवान प्रतिफल अवश्य शामिल होना चाहिये।
- वैध प्रतिफल - 'संविदा अधिनियम', 1872 की धारा 23, वैध प्रतिफल को ऐसे रूप में परिभाषित करती है जो कानून द्वारा निषिद्ध नहीं है।
निर्णयज विधि
- लालमन शुक्ला बनाम गौरी दत्त (वर्ष 1913):
- इस मामले में, प्रतिवादी (गौरीदत्त) का भतीजा गौरीदत्त के घर से फरार हो गया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि लापता लड़के को ढूँढने वाला नौकर लालमन शुक्ला उस समय इस प्रस्ताव से अनजान था। तद्नुसार, यदि कोई व्यक्ति प्रस्ताव के बारे में जानता है और फिर शर्तों के अनुसार कार्य करता है, तो इनाम का कोई सवाल ही नहीं है। यह प्रस्ताव की स्वीकृति के समान है अन्यथा, ऐसा नहीं होता।
- भारत संघ बनाम श्री उत्तम सिंह दुग्गल एंड कंपनी प्रा. लिमिटेड (वर्ष 1971):
- इस मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि किसी भी तात्त्विक निबंधन के संबंध में जब प्रस्ताव तथा स्वीकृति के बीच मतभेद होता है एवं करार आत्यंतिक होता है तो इसके परिणामस्वरूप वैध संविदा का प्ररूप नहीं होगा।
- मोहरी बीबी बनाम धर्मोदास घोष (वर्ष 1903):
- इस मामले में 'प्रिवी कौंसिल' ने माना कि नाबालिग के साथ संविदा शुरू से ही शून्य है क्योंकि नाबालिग संविदा करने में अक्षम है।
निष्कर्ष-
सरल शब्दों में, संविदा का अर्थ है जब दो पक्षकार एक करार लिखते हैं, जिसमें कुछ बाध्यता (वचन) होते हैं, जिन्हें पक्षकरों द्वारा पूरा किया जाना होता है तथा जब यह लिखित करार विधि द्वारा प्रवर्तनीय हो जाता है तो यह एक 'संविदा' का रूप ले लेता है। विधि द्वारा प्रवर्तनीय का अर्थ है कि जब करार ने केवल उन लोगों के लिये विधि की शक्ति हासिल कर ली है, जो इसके पक्षकार हैं एवं उन बाध्यताओं का उल्लंघन करने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी, जिसमें संपूर्ण संविदा को अस्वीकार भी किया जा सकता है।