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आपराधिक कानून

भारतीय साक्ष्य अधिनियम पर सूचना प्रौद्योगिकी का प्रभाव

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 11-Jun-2024

परिचय:

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT अधिनियम) के अधिनियमन के साथ भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) के कई प्रावधानों में संशोधन किया गया। ये संशोधन इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के माध्यम से प्रस्तुत साक्ष्य को विधिक मान्यता देते हैं।

IT अधिनियम:

  • IT अधिनियम का उद्देश्य एवं प्रयोजन इलेक्ट्रॉनिक डेटा इंटरचेंज और इलेक्ट्रॉनिक संचार के अन्य साधनों, जिन्हें आमतौर पर "इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स" कहा जाता है, के माध्यम से किये गए लेन-देन को विधिक मान्यता प्रदान करना था।
  • IT अधिनियम की दूसरी अनुसूची IEA में प्रस्तुत किये गए संशोधनों का प्रावधान करती है।

IT अधिनियम 21, 2000 द्वारा संशोधन:

IEA में IT अधिनियम द्वारा प्रस्तुत संशोधन इस प्रकार हैं:

  • धारा 3:
    • “साक्ष्य” की परिभाषा में संशोधन करके इसमें न्यायालय द्वारा निरीक्षण के लिये प्रस्तुत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड सहित सभी दस्तावेज़ शामिल किये गए।
    • “प्रमाणन प्राधिकरण”, “इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर”, “इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाण-पत्र”, “इलेक्ट्रॉनिक प्रपत्र”, “इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड”, “सूचना”, “सुरक्षित इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड”, “सुरक्षित डिजिटल हस्ताक्षर” और “ग्राहक” जैसे शब्दों का अर्थ IT अधिनियम के अंतर्गत समान होगा।
  • धारा 17:
    • प्रवेश की परिभाषा में संशोधन करके इसमें इलेक्ट्रॉनिक रूप में विवरण शामिल किया गया।
  • धारा 22A:
    • यह धारा इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की विषय-वस्तु के बारे में मौखिक स्वीकारोक्ति के बारे में बात करती है।
    • धारा में प्रावधान है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की विषय-वस्तु के बारे में मौखिक स्वीकारोक्ति प्रासंगिक है, यदि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की वास्तविकता संदिग्ध है।
  • धारा 34:
    • यह धारा लेखा पुस्तकों में प्रविष्टियों की प्रासंगिकता के बारे में प्रावधान करती है।
    • वर्ष 2000 के संशोधन में प्रावधान किया गया है कि इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखी गई लेखा पुस्तकों सहित सभी प्रविष्टियाँ प्रासंगिक हैं।
  • धारा 35:
    • इस धारा में संशोधन करके यह प्रावधान किया गया कि कर्त्तव्य पालन के दौरान सार्वजनिक अभिलेख या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख में की गई प्रविष्टि की प्रासंगिकता सुनिश्चित की जा सकती है।
  • धारा 39:
    • यह धारा यह प्रावधानित करती है कि जब कोई कथन किसी दस्तावेज़, वार्तालाप या पत्रों या कागज़ों की शृंखला का भाग होता है तो क्या साक्ष्य दिया जाना चाहिये।
    • संशोधन का प्रभाव यह था कि जब कोई कथन जिसके विषय में साक्ष्य दिया जाना है, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का भाग होता है, तो इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के उतने भाग का साक्ष्य दिया जाएगा जितना न्यायालय आवश्यक समझे।
  • धारा 59:
    • इस धारा में संशोधन का परिणाम यह हुआ कि इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों या दस्तावेज़ों की विषय-वस्तु को छोड़कर सभी तथ्यों को मौखिक साक्ष्य द्वारा सिद्ध किया जा सकेगा।
  • धारा 65A:
    • यह धारा यह प्रावधान करती है कि इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों की विषय-वस्तु को धारा 65B के प्रावधानों के अनुसार सिद्ध किया जा सकता है।
  • धारा 65B:
    • IEA की धारा 65B में यह प्रावधान है कि किसे दस्तावेज़ माना जाएगा तथा साक्ष्य किस प्रकार स्वीकार्य होगा।
    • धारा 65B (1) में प्रावधान है कि, "इस अधिनियम में किसी प्रावधान के होते हुए भी, किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में निहित कोई सूचना जो कागज़ पर मुद्रित, संग्रहीत, रिकॉर्ड की गई या कंप्यूटर द्वारा उत्पादित ऑप्टिकल या चुंबकीय मीडिया में कॉपी की गई है (जिसे इसके बाद कंप्यूटर आउटपुट कहा जाएगा) को भी दस्तावेज़ माना जाएगा, यदि इस खंड में उल्लिखित शर्तें संबंधित सूचना एवं कंप्यूटर के संबंध में संतुष्ट हैं तथा किसी भी कार्यवाही में, बिना किसी अतिरिक्त साक्ष्य या मूल की प्रस्तुति के, साक्ष्य के रूप में या मूल की किसी भी सामग्री या उसमें वर्णित किसी भी तथ्य के रूप में स्वीकार्य होगी, जिसके लिये प्रत्यक्ष साक्ष्य स्वीकार्य होगा।"
    • यहाँ एक विधिक कल्पना रची गई है।
    • यह कल्पना इसलिये रची गई है क्योंकि साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 के अनुसार परिभाषित "दस्तावेज़" में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड शामिल नहीं हैं।
    • धारा 65B के खंड 2 में कहा गया है कि कंप्यूटर आउटपुट के लिये प्रदान की गई शर्तों का पालन किया जाना चाहिये।
    • धारा 65B के खंड 4 में यह प्रावधान है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की पहचान करने वाला एक प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किया जाना चाहिये, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के उत्पादन में शामिल उपकरण का विवरण दिया गया हो तथा खंड 2 के अधीन उल्लिखित "किसी भी" स्थिति से निपटा गया हो, जिस पर उपकरण के संबंध में उत्तरदायी आधिकारिक पद पर आसीन व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किये जाने चाहिये।
    • माननीय न्यायालय ने यह अच्छी तरह से तय किया है कि खंड 4 में प्रयुक्त शब्द “हो सकता है” को संदर्भ के अनुसार “सभी” के रूप में पढ़ा जाएगा।
    • IEA की धारा 65B के संबंध में निर्णयज विधियों का विश्लेषण करना महत्त्वपूर्ण है।
  • अनवर पी.वी. (एस) बनाम पी.के. बशीर एवं अन्य (2014):
    • इस मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली राज्य बनाम नवजोत संधू उर्फ ​​अफशान गुरु (2005) में निर्धारित विधि को खारिज कर दिया।
    • माननीय न्यायालय ने माना कि धारा 65B एक पूर्ण संहिता एवं विशेष विधि है, धारा 63 और धारा 65 के अंतर्गत सामान्य विधि को लागू किया जाना चाहिये।
    • माननीय न्यायालय ने यहाँ जेनेरालिया स्पेशलिबस नॉन डेरोगेंट की व्याख्या के द्वारा नियम का आह्वान किया।
    • इस प्रकार, माननीय न्यायालय ने माना कि धारा 63 एवं 65 का इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के माध्यम से द्वितीयक साक्ष्य के मामले में कोई आवेदन नहीं है, यह पूरी तरह से धारा 65-A और 65-B द्वारा शासित है।
  • शफी मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2018):
    • इस मामले में माननीय न्यायालय ने विधि की स्थिति तब निर्धारित की जब इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य किसी ऐसे पक्ष द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जिसके पास डिवाइस नहीं है।
    • न्यायालय ने माना कि IEA की धारा 63 एवं धारा 65 की प्रयोज्यता को बाहर नहीं रखा जा सकता है।
    • माननीय न्यायालय ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता के विषय पर विधिक स्थिति निर्धारित की, विशेष रूप से उस पक्ष द्वारा जिसके पास वह उपकरण नहीं है जिससे दस्तावेज़ प्रस्तुत किया गया है। न्यायालय ने माना कि ऐसे पक्ष को साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B(4) के अंतर्गत प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं हो सकती।
    • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि प्रमाण-पत्र की आवश्यकता की प्रयोज्यता प्रक्रियागत है तथा न्यायालय द्वारा इसमें छूट दी जा सकती है, जहाँ न्याय का हित उचित हो।
  • अर्जुन पंडितराव खोतकर बनाम कैलाश कुशनराव गोरांटयाल एवं अन्य (2020):
    • अंत में, इस मामले में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य से जुड़े विवाद को माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा सुलझाया गया।
    • माननीय न्यायालय ने सबसे पहले शफी मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य के मामले को खारिज कर दिया तथा माना कि अनवर पी.वी. बनाम पी.के. बशीर में निर्णयज विधि ही युक्तियुक्त विधि है।
    • न्यायालय ने आगे कहा कि यदि मूल दस्तावेज़ ही प्रस्तुत किया जाता है तो धारा 65B(4)के अंतर्गत प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं है। लैपटॉप, मोबाइल फोन आदि के स्वामी द्वारा साक्षी के कठघरे में आकर ऐसा किया जा सकता है। ऐसे मामलों में जहाँ "कंप्यूटर" किसी "कंप्यूटर सिस्टम" या "कंप्यूटर नेटवर्क" का भाग होता है तथा ऐसे सिस्टम या नेटवर्क को भौतिक रूप से न्यायालय में लाना असंभव हो जाता है, तो ऐसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में निहित जानकारी प्रदान करने का एकमात्र साधन धारा65B(1) के अनुसार हो सकता है, साथ ही धारा 65B(4) के अंतर्गत अपेक्षित प्रमाण-पत्र भी।
    • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के अंतर्गत धारा 67C में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उचित नियम एवं निर्देश तैयार किये जाने चाहिये तथा अपराधों के अभियोजन में शामिल आँकड़ों को बनाए रखने, उनके पृथक्करण, अभिरक्षा शृंखला के नियमों, मुद्रांकन एवं अभिलेख रखरखाव के लिये विचारणों और अपीलों की पूरी अवधि के लिये उपयुक्त नियम बनाए जाने चाहिये तथा भ्रष्टाचार से बचने के लिये मेटा डेटा के संरक्षण के संबंध में भी नियम बनाए जाने चाहिये।
  • धारा 73A:
    • यह धारा डिजिटल हस्ताक्षर के सत्यापन के संबंध में प्रमाण उपलब्ध कराती है।
  • धारा 90A:
    • यह धारा पाँच वर्ष पुराने इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों के बारे में उपधारणा प्रदान करती है।
    • यह धारा यह प्रदान करती है कि जहाँ इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पाँच वर्ष पुराना है और इसे ऐसी अभिरक्षा से प्रस्तुत किया गया है जिसे न्यायालय उचित समझता है, वहाँ न्यायालय यह मान सकता है कि इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर (IT अधिनियम 10, 2009 द्वारा संशोधित) जो किसी विशेष व्यक्ति का इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर होने का दावा करता है, उसे उसके द्वारा या उसके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा लगाया गया था।
  • धारा 131:
    • यह धारा उन दस्तावेज़ों या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों को प्रस्तुत करने का प्रावधान करती है, जिन्हें कोई अन्य व्यक्ति प्रस्तुत करने से मना कर सकता है।

IT अधिनियम 21, 2000 द्वारा संशोधन

इस अधिनियम द्वारा किये गए संशोधन इस प्रकार हैं:

  • धारा 47A:
    • यह धारा यह प्रावधान करती है कि इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के विषय में सलाह कब प्रासंगिक है।
    • ध्यान देने वाली बात यह है कि यह प्रावधान 2000 के IT अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था, हालाँकि, वर्ष 2009 के IT अधिनियम ने “डिजिटल हस्ताक्षर” शब्द को “इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर” से बदल दिया।
  • धारा 45A:
    • यह धारा यह प्रावधान करती है कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य परीक्षक की राय स्वीकार्य है।
  • धारा 85A:
    • यह धारा इलेक्ट्रॉनिक करारों के संबंध में अनुमान का प्रावधान करती है।
  • धारा 85B:
    • यह धारा इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों एवं इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों के संबंध में उपधारणा प्रदान करती है।
  • धारा 85C:
    • यह धारा इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाण-पत्र के संबंध में उपधारणा प्रदान करती है।

निष्कर्ष:

IT अधिनियम के माध्यम से संशोधन ने IEA में बड़े बदलाव लाए तथा इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के माध्यम से साक्ष्य के संबंध में एक शून्य को भर दिया। माननीय उच्चतम न्यायालय ने माना है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की सामग्री के संबंध में साक्ष्य देने के उद्देश्य से धारा 65B एक पूर्ण संहिता है तथा अन्य प्रावधान इसमें शामिल नहीं होंगे। इस प्रकार, IT अधिनियम के माध्यम से संशोधन बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।