होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)
आपराधिक कानून
आपराधिक मामलों में चरित्र की प्रासंगिकता
« »21-May-2024
परिचय:
आपराधिक मामलों में, किसी पक्ष का चरित्र अच्छा या बुरा होने के आधार पर, प्रासंगिक और अप्रासंगिक होता है।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 53 और 54 आपराधिक मामलों में चरित्र की प्रासंगिकता से संबंधित हैं।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 53:
- धारा 53 के अनुसार, आपराधिक मामलों में, यह तथ्य प्रासंगिक है कि आरोपी व्यक्ति अच्छे चरित्र का है।
- इसका अर्थ यह है कि आरोपी व्यक्ति के अच्छे चरित्र का साक्ष्य उसके आचरण के विषय में अनुकूल धारणा बनाने के लिये प्रस्तुत किया जा सकता हैं तथा यह सुझाव दिया जा सकता है कि आरोपी द्वारा कथित अपराध करने की संभावना कम है।
- हालाँकि यह साक्ष्य निर्णायक नहीं है तथा अभियोजन पक्ष द्वारा इसका खंडन किया जा सकता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 54:
- परिचय:
- धारा 54 में कहा गया है कि, आपराधिक कार्यवाही में, यह तथ्य प्रासंगिक नहीं है कि आरोपी व्यक्ति का चरित्र खराब है।
- यह धारा अनिवार्य रूप से आरोपी व्यक्ति के पूर्व बुरे चरित्र अथवा दोषसिद्धि से संबंधित साक्ष्य की स्वीकार्यता को सीमित करती है, उन विशिष्ट स्थितियों के अतिरिक्त जहाँ यह मामले के लिये प्रासंगिक हो सकता है अथवा आरोपी व्यक्ति के अच्छे चरित्र के दावे का खंडन कर सकता है।
- अपवाद:
- यदि इस बात का साक्ष्य दिया गया है कि आरोपी का चरित्र अच्छा है, ऐसी स्थिति में अभियोजन पक्ष आरोपी के बुरे चरित्र को सिद्ध कर, इस बात का खंडन कर सकता है;
- यह धारा उन मामलों पर लागू नहीं होती है जिनमें किसी व्यक्ति का बुरा चरित्र ही मुख्य मुद्दा है।
- जब ऐसे मामले में पिछले मामले की दोषसिद्धि भी सम्मिलित हो, तो यह दोषसिद्धि बुरे चरित्र के साक्ष्य के रूप में प्रासंगिक होती है।
आपराधिक मामलों में चरित्र से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णयज विधियाँ:
- हबीब मोहम्मद बनाम हैदराबाद राज्य (1954):
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि "IEA की धारा 53 के प्रावधान के अधीन किसी आपराधिक मामले में आरोपी का चरित्र सदैव प्रासंगिक होता है"।
- मंगल सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1957):
- यह आग्रह किया गया था कि अपीलकर्त्ताओं के बुरे चरित्र के बहुत सारे साक्ष्यों को अपीलकर्त्ताओं के विरुद्ध स्वीकार किया गया था, अपीलकर्त्ताओं के अनुसार ऐसे साक्ष्य अस्वीकार्य थे तथा उच्चतम न्यायालय से नीचे के न्यायालय, ऐसे साक्ष्यों से अपीलकर्त्ताओं के विरुद्ध पूर्वाग्रह से ग्रसित हो गए होंगे।
- न्यायालय ने कहा कि, हालाँकि, अतीत में अपीलकर्त्ताओं के विषय में कुछ अप्रिय तथ्यों को प्रकट करने वाले साक्ष्यों की जाँच, न्यायालयों द्वारा हत्या के उद्देश्य का पता लगाने के लिये की गयी थी, न कि यह निर्धारित करने के उद्देश्य से कि बुरे चरित्र के कारण, अपीलकर्त्ता द्वारा हत्या होने की संभावना है।