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आपराधिक कानून
आपराधिक अभित्रास
« »31-Jan-2024
परिचय:
भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 503 आपराधिक अभित्रास से संबंधित है जिसका अर्थ है किसी को डराना या धमकाना ताकि वह दूसरे व्यक्ति की इच्छा के अनुसार कार्य करे। जो व्यक्ति दूसरे को धमकी देता है, उसे धमकानेवाला कहा जाता है।
IPC की धारा 503:
- इस धारा में कहा गया है कि जो कोई किसी अन्य व्यक्ति के शरीर, ख्याति या संपत्ति को, या किसी ऐसे व्यक्ति के शरीर या ख्याति को, जिससे कि वह व्यक्ति हितबद्ध हो कोई क्षति करने की धमकी उस अन्य व्यक्ति को इस आशय से देता है कि उसे संत्रास (भय) कारित किया जाए, या उससे ऐसे धमकी के निष्पादन का परिवर्जन करने के साधन स्वरूप कोई ऐसा कार्य कराया जाए, जिसे करने के लिये वह वैध रूप से आबद्ध न हो, या किसी ऐसे कार्य को करने का लोप कराया जाए, जिसे करने के लिये वह वैध रूप से हकदार हो, वह आपराधिक अभित्रास करता है।
- स्पष्टीकरण: किसी ऐसे मृत व्यक्ति की ख्याति को क्षति करने की धमकी जिससे वह व्यक्ति, जिसे धमकी दी गई है, हितबद्ध हो, इस धारा के अंतर्गत आता है।
- दृष्टांत: सिविल वाद चलाने से उपरत रहने के लिये B को उत्प्रेरित करने के प्रयोजन से B के घर को जलाने की धमकी A देता है। A आपराधिक अभित्रास का दोषी है। इस स्थिति में, A ने B को धमकी दी है कि वह B की संपत्ति को नुकसान पहुँचाएगा और बाद में उसे कोई कार्य (सिविल वाद दायर करने के लिये) करने से रोकने के लिये कहा, जिसे करने के लिये वह कानूनी रूप से बाध्य है, इसलिये A आपराधिक अभित्रास के अपराध का दोषी होगा।
IPC की धारा 503 की अनिवार्यताएँ:
- धमकी:
- किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने की धमकी,
- किसी की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाने की धमकी
- उसकी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने की धमकी
- धमकी का तात्पर्य उस व्यक्ति या किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाना है, जिसमें वह व्यक्ति रुचि रखता है।
- आपराधिक मनःस्थिति:
- रोमेश चंद्र अरोड़ा बनाम राज्य (1860) के मामले में धमकी के तीन तत्त्व संरेखित थे। तीन तत्त्वों का उल्लेख नीचे दिया गया है:
- किसी को संत्रास करना। अमूल्य कुमार बेहरा बनाम नभागना बेहरा अलियास नबीना (1995) के मामले में संत्रास को आतंक का पर्याय घोषित किया गया था।
- किसी को गैरकानूनी कार्य करने के लिये प्रेरित करना। नंद किशोर बनाम सम्राट (1927) के मामले में भी इसे बरकरार रखा गया था।
- किसी को वह कार्य करने से रोकना जो उसे कानूनी रूप से करना चाहिये था।
- रोमेश चंद्र अरोड़ा बनाम राज्य (1860) के मामले में धमकी के तीन तत्त्व संरेखित थे। तीन तत्त्वों का उल्लेख नीचे दिया गया है:
IPC की धारा 504:
- IPC की धारा 504 शांति भंग करने के आशय से जानबूझकर अपमान करने से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जो कोई भी किसी व्यक्ति को उकसाने के आशय से जानबूझकर उसका अपमान करे, इरादतन या यह जानते हुए कि इस प्रकार की उकसाहट उस व्यक्ति की लोक शांति भंग करने, या अन्य अपराध का कारण हो सकती है, को किसी एक अवधि के लिये कारावास की सज़ा, जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या ज़ुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा।
- यह एक गैर-संज्ञेय, शमनीय और ज़मानती अपराध है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
IPC की धारा 506:
- यह धारा आपराधिक अभित्रास के लिये सज़ा से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जो कोई आपराधिक अभित्रास का अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या ज़ुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
- यदि धमकी मृत्यु या गंभीर उपहति इत्यादि कारित करने की हो, या अग्नि द्वारा किसी संपत्ति का नाश कारित करने की, या मृत्युदंड से या आजीवन कारावास से, या सात वर्ष की अवधि तक के कारावास से दंडनीय अपराध कारित करने की, या किसी स्त्री पर अस्तित्व का लांछन लगाने की हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक हो सकेगी, या ज़ुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
IPC की धारा 507:
- यह धारा अनाम संसूचना द्वारा आपराधिक अभित्रास से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जो कोई अनाम संसूचना द्वारा या उस व्यक्ति का, जिसने धमकी दी हो, नाम या निवास स्थान छिपाने की पूर्वावधानी करके आपराधिक अभित्रास का अपराध करेगा, वह पूर्ववर्ती अंतिम धारा द्वारा उस अपराध के लिये उपबंधित दंड के अतिरिक्त, दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक हो सकेगी, दंडित किया जाएगा।
- यह अधिनियम प्रकृति में ज़मानती, अशमनयोग्य, असंज्ञेय और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
ऐतिहासिक मामले:
- दोरास्वामी अय्यर बनाम राजा-सम्राट (1924) के मामले में, मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि अभित्रास की प्रकृति काल्पनिक नहीं बल्कि, यथार्थवादी होनी चाहिये।
- श्री वसंत वामन प्रधान बनाम दत्तात्रेय विट्ठल साल्वी (2004) के मामले में, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने आपराधिक अभित्रास के अपराध में आपराधिक मनःस्थिति को सबसे आवश्यक घटक घोषित किया।