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आपराधिक कानून

परिद्वेषपूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिये संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो

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 09-Jan-2024

परिचय:

यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर दूसरों में संक्रम रोग फैलाता है, जिससे मृत्यु हो सकती है, तो वह भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 270 के तहत अपराध होता है।

  • यह धारा 269 के तहत अपराध का एक गंभीर रूप है जो एक उपेक्षक कृत्य होता है जिससे परिद्वेषपूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिये संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य होता है।
  • इसका उद्देश्य जीवन के लिये संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलाने वाले व्यक्तियों को दंडित करना है।
  • यह IPC के अध्याय XIV के तहत निहित है।
  • अपराध को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की अनुसूची 1 के तहत वर्गीकृत किया गया है।
  • यह अपराध CrPC की धारा 320 के तहत शमनीय अपराधों की सूची में सूचीबद्ध नहीं है।

धारा 270: परिद्वेषपूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिये संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो:  

जो कोई परिद्वेष से ऐसा कोई कार्य करेगा जिससे कि, और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो, कि जीवन के लिये संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रम फैलना संभाव्य है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या ज़ुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

आवश्यक संघटक:

  • रोग का संचरण:
    • धारा 270 के तहत अपराध कायम करने के लिये, इसकी उचित संभाव्यता होनी चाहिये कि इस कृत्य से जीवन के लिये संकटपूर्ण रोग फैल जाएगा।
    • यह तत्त्व रोग संचरण के माध्यम से नुकसान पहुँचाने के विशिष्ट लक्ष्य के साथ किये गए अनजाने कार्यों से अलग करता है।
  • जीवन के लिये संकटपूर्ण:
    • इस धारा में वे बीमारियाँ शामिल हैं जो मानव जीवन के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करती हैं।
    • अपराध की गंभीरता का निर्धारण करने में रोग की प्रकृति एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
    • उच्च मृत्यु दर या दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणाम वाले रोग इस श्रेणी में आते हैं।
  • संक्रम फैलाने का कार्य या लोप:
    • धारा 270 केवल सकारात्मक कृत्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें वे लोप भी शामिल हैं जो संक्रम रोगों के प्रसार में योगदान करते हैं।
    • आवश्यक सावधानी बरतने में विफल होना या जानबूझकर निवारक उपायों से बचना इस धारा के तहत अपराध माना जा सकता है।
  • परिद्वेषपूर्ण आशय:
    • इस धारा 270 का सार कृत्य के आशय में निहित है।
    • "परिद्वेषपूर्ण" शब्द का तात्पर्य एक जानबूझकर किये गए हानिकारक उद्देश्य से है।
    • जीवन के लिये संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलाने के उद्देश्य से कार्यों में संलग्न व्यक्ति इस धारा के दायरे में आते हैं।
  • वर्गीकरण:
    • संज्ञेय
    • ज़मानती
    • अशमनीय
    • किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय
  • धारा 270 लागू करने के उदाहरण:
    • ऐसे मामलों में जहाँ व्यक्ति HIV से संक्रमित है, उसे अपने साथी को बताए बिना विवाह करने की अनुमति नहीं है।
    • इस धारा को कोविड-19 के प्रसार के दौरान कई बार लागू किया गया था। कोविड-19 महामारी के संदर्भ में, वायरस के प्रसार में योगदान देने वाले जानबूझकर किये गए कृत्यों पर इस धारा के तहत मुकदमा चलाया गया।

ऐतिहासिक मामले:

  • मिस्टर X बनाम हॉस्पिटल Z (2003):
    • अस्पताल प्रशासन ने HIV पॉजिटिव व्यक्ति की मंगेतर को उसके संक्रामक रोग के बारे में जानकारी दी।
    • उसने निजता के अधिकार का उल्लंघन करने के लिये अस्पताल के खिलाफ याचिका दायर की। बाद में न्यायालय ने अस्पताल के कृत्य को संवैधानिक ठहराया।
    • यह कहा गया कि याचिकाकर्त्ता का कृत्य IPC की धारा 270 के तहत जीवन के लिये संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलाने वाले परिद्वेषपूर्ण कृत्य के अंतर्गत आता है।
  • पी. रविकुमार बनाम मलारविज़ी (2011)
    • न्यायालय ने कहा कि अगर HIV पॉजिटिव व्यक्ति का विवाह उसके साथी की सहमति से होता है तो उस पर IPC की धारा 270 आरोपित नहीं होती है।

निष्कर्ष:

  • धारा 269 और 270 आमतौर पर एक-दूसरे के साथ बदली जाती हैं लेकिन धारा 269 उपेक्षा से किये गए कृत्य से संबंधित है जबकि धारा 270 के मामले में, अपराधी जानबूझकर रोग फैलाता है। यदि सरकार को किसी व्यक्ति के जीवन के लिये संकटपूर्ण और मृत्यु का कारण बनने वाले संक्रम रोग से संबंधित जानकारी मिलती है तो वह दूसरों को सूचित करना अपनी ज़िम्मेदारी समझती है। यह धारा अन्य व्यक्तियों को जीवन के लिये संकटपूर्ण संक्रम रोगों के प्रभावों के बारे में जागरूक रखने के लिये शामिल किया गया है।