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आपराधिक कानून

राजद्रोह-124 A

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 21-Nov-2023

परिचय:

  • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 124A के तहत 'राजद्रोह' एक अपराध है।
  • धारा 124A को वर्ष 1870 में 'जेम्स स्टीफन' द्वारा पेश किये गए एक संशोधन द्वारा शामिल किया गया था उस दौरान अपराध से निपटने के लिये एक विशिष्ट धारा निर्धार्रित करने की आवश्यकता अनुभव की गई।

परिभाषा:

  • 'राजद्रोह' पर कानून को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 124A के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति पर 'राजद्रोह' का आरोप लगाया जाएगा, यदि:
  • वह घृणा या अवमानना उत्पन्न करने या प्रसारित करने का प्रयास करता है, या;
  • वह शब्दों, संकेतों या दृश्य रूपण के माध्यम से भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को उत्तेजित करता या करने का प्रयास करता है।

धारा 124A के आवश्यक संघटक:

  • धारा 124A के अनुसार, राजद्रोही गतिविधियों को बोले गए या लिखित शब्दों अथवा संकेतों के जरिये या दृश्य रूपण के माध्यम से अथवा अन्यथा प्रकार से अंज़ाम दिया जा सकता है।
  • धारा 124A के अनुसार, राजद्रोही गतिविधि में बोले गए या लिखित संकेत, दृश्य रूपण या अन्य माध्यमों से शब्दों का उपयोग इस तरह से किया जाना चाहिये कि कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा अथवा अवमानना उत्पन्न हो या फैलाने का प्रयास किया जाए।
  • असंतोष में विश्वासघात और शत्रुता की सभी भावनाएँ शामिल होती हैं। हालाँकि घृणा, अवमानना या असंतोष को उत्तेजित करने या उत्तेजित करने का प्रयास किये बिना की जाने वाली टिप्पणियाँ इस धारा के तहत अपराध नहीं मानी जाएँगी।

धारा 124 का बढ़ता दुरुपयोग:

  • समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिये राज्य के पास राजद्रोह के विरुद्ध कानून के रूप में एक उपयोगी उपकरण मौजूद है। हालाँकि इसका उपयोग आपराधिक कृत्यों में संलग्न अपराधियों को चुप कराने के बहाने अशांति को नियंत्रित करने के लिये नहीं किया जा सकता है।
  • जब कोई व्यक्ति स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार पर ज़ोर देता है, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह किसी से कुछ भी कह सकता है। वोट देने के अधिकार पर एक खेदजनक लेकिन आवश्यक सीमा आरोपित कर दी गई है।
  • जो लोग अपनी वाक् स्वतंत्रता का उपयोग धर्म या जाति के आधार पर लोगों को विभाजित करने के लिये करते हैं, वे इसका दुरुपयोग कर रहे हैं। लोकतांत्रिक समाज में दूसरों के अधिकारों की रक्षा के लिये किसी की स्वतंत्रता सीमित होनी चाहिये।

निर्णय विधि:

  • केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962):
    • यह निर्धारित किया गया था कि कानून सांविधिक था और यह किसी भी लिखित या बोले गए शब्दों पर लागू होता था, जिसका स्रोत चाहे जो भी हो, का उद्देश्य हिंसक तरीकों से सरकार की परिवंचना करने का दृण इरादा था।
    • जो नागरिक सार्वजनिक अव्यवस्था उत्पन्न करने के उद्देश्य से सरकार की निंदा करते हैं, उन्हें ऐसा करने की अनुमति है, जब तक कि वे लोगों को सरकार के विरुद्ध हिंसा में शामिल होने के लिये उकसाते नहीं हैं।
    • जबकि उच्चतम न्यायालय ने धारा 124A की सांविधिनिकता को बरकरार रखा, लेकिन इसके उपयोजन को सार्वजनिक अव्यवस्था उत्पन्न करने, कानून और व्यवस्था में व्यवधान या अन्य चीजों के बीच हिंसा भड़काने के इरादे से जुड़े कार्यों तक सीमित कर दिया।
    • जैसा कि न्यायालय ने बताया कि "राजद्रोह" के अपराध का सार हिंसा के लिये उकसाना या वाक् अथवा लिखित रूप में शब्दों के माध्यम से सार्वजनिक अव्यवस्था उत्पन्न करने का इरादा है, जिसमें कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमानना ​​को उकसाने या राज्य के प्रति अविश्वास की भावना में असंतोष उत्पन्न करने की क्षमता या प्रभाव होता है।
  • डॉ. विनायक बिनायक सेन बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2011), (कन्हैया कुमार मामला):
    • उच्चतम न्यायालय ने एक राजद्रोही कृत्य को तभी पुनः परिभाषित माना है, जब इसमें निम्न आवश्यक संघटक शामिल हों:
      • सार्वजनिक व्यवस्था में व्यवधान
      • एक वैध सरकार का हिंसक तरीके से तख्तापलट करने का प्रयास, तथा
      • राज्य या जनता की सुरक्षा को खतरा।