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आपराधिक कानून

कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न की रोकथाम अधिनियम के अधीन परिवाद की जांच

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 28-May-2025

परिचय 

महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम (कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न की रोकथाम अधिनियम) का अध्याय 5 लैंगिक उत्पीड़न की परिवादों की जांच करने के लिये एक व्यापक और विस्तृत रूपरेखा प्रदान करता है, जो परिवादकर्त्ता एवं प्रतिवादी दोनों के अधिकारों के संतुलन को बनाए रखते हुए न्यायसंगत एवं पारदर्शी कार्यवाही सुनिश्चित करता है। यह अध्याय जांच की प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक पक्षकार को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अंतर्गत उचित अवसर प्राप्त हो, जिससे कार्यस्थल पर महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। 

धारा 12: जांच लंबित रहने के दौरान कार्रवाई 

  • अंतरिम राहत उपाय: 
    • धारा 12(1) आंतरिक समिति या स्थानीय समिति को व्यथित महिला के लिखित अनुरोध पर जांच के लंबित रहने के दौरान अंतरिम अनुतोष उपायों की सिफारिश करने का अधिकार देती है। उपलब्ध अनुतोष उपायों में सम्मिलित हैं: 
      • स्थानांतरण उपबंध: व्यथित महिला या प्रत्यर्थी को आगे उत्पीड़न को रोकने या निष्पक्ष कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिये किसी अन्य कार्यस्थल पर स्थानांतरित किया जा सकता है। 
      • छुट्टी का अधिकार: व्यथित महिला को आघात से उबरने या कार्यवाही की तैयारी के लिये तीन मास तक की छुट्टी अनुदान की जा सकती है। 
      • अतिरिक्त अनुतोष: अन्य निर्धारित अनुतोष उपाय, जिन्हें आवश्यक समझा जाए। 

  • अतिरिक्त अवकाश पात्रता: 
    • धारा 12(2) स्पष्ट करती है कि इस उपबंध के अधीन अनुदत्त की गई कोई भी छुट्टी व्यथित महिला की नियमित छुट्टी के अतिरिक्त होगी, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्याय मांगने से उसके रोजगार लाभ पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। 
  • कार्यान्वयन अधिदेश: 
    • धारा 12(3) नियोजक पर समिति की सिफारिशों को लागू करने और कार्यान्वयन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का अनिवार्य दायित्त्व डालती है, जिससे अंतरिम अनुतोष प्रक्रिया में जवाबदेही सुनिश्चित हो सके। 

धारा 13: जांच रिपोर्ट और सिफारिशें 

  • रिपोर्ट प्रस्तुत करने की समयसीमा: 
    • धारा 13(1) कठोर समयसीमा निर्धारित करती है जिसके अधीन आंतरिक समिति या स्थानीय समिति को जांच पूरी होने के दस दिनों के भीतर अपने निष्कर्ष नियोजक या जिला अधिकारी को प्रस्तुत करने होंगे। 
    • प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये रिपोर्ट सभी संबंधित पक्षकारों को उपलब्ध कराई जानी चाहिये 
  • गैर-प्रमाणीकरण के निष्कर्ष: 
    • धारा 13(2) उन मामलों को संबोधित करती है जहाँ अभिकथन साबित नहीं होते हैं, प्रत्यर्थी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं करने की सिफारिश की जाती है, जिससे निराधार अभिकथनों से संरक्षण मिलता है। 
  • प्रमाणित अभिकथनों के निष्कर्ष: 
    • धारा 13(3) अभिकथन साबित होने पर समिति की शक्तियों को रेखांकित करती है, जिसमें सम्मिलित हैं: 
      • अनुशासनात्मक कार्रवाई: लागू सेवा नियमों के अनुसार कार्रवाई के लिये सिफारिशें। 
      • प्रतिकर का अवधारण: धारा 15 के दिशा-निर्देशों के अनुसार व्यथित महिला को संदत्त करने के लिये वेतन कटौती की सिफारिश करने का प्राधिकार 
      • वसूली तंत्र : जब प्रत्यक्ष कटौती संभव न हो तो जिला अधिकारियों के माध्यम से वसूली का उपबंध 
  • कार्यान्वयन समयसीमा: 
    • धारा 13(4) में यह अनिवार्य किया गया है कि नियोजक या जिला अधिकारी समिति की सिफारिशों पर प्राप्ति के साठ दिनों के भीतर कार्रवाई करें, जिससे शीघ्र समाधान सुनिश्चित हो सके। 

धारा 14: मिथ्या या द्वेषपूर्ण परिवादों के लिये दण्ड  

  • द्वेषपूर्ण परिवादों के विरुद्ध कार्रवाई:  
    • धारा 14(1) मिथ्या या द्वेषपूर्ण परिवादों के गंभीर मुद्दे को संबोधित करती है तथा इसमें महत्त्वपूर्ण संरक्षण उपाय सम्मिलित किये गए हैं: 
      • जानबूझकर मिथ्या परिवाद और कूटरचित दस्तावेज़ सहित द्वेषपूर्ण आशय का अवधारण करने के लिये मानदंड स्थापित करता है। 
      • इसमें उपबंध है कि परिवाद को प्रमाणित न कर पाने मात्र से दण्ड नहीं दिया जाएगा। 
      • कार्रवाई की सिफारिश करने से पूर्व उचित जांच प्रक्रियाओं के माध्यम से द्वेषपूर्ण आशय की स्थापना की आवश्यकता होती है।  
  • मिथ्या साक्ष्य के विरुद्ध कार्रवाई: 
    • धारा 14(2) समितियों को जांच प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखते हुए मिथ्या साक्ष्य देने वाले या भ्रामक दस्तावेज़ प्रस्तुत करने वाले साक्षियों के विरुद्ध कार्रवाई की सिफारिश करने का अधिकार देती है। 

धारा 15: प्रतिकर का अवधारण   

  • धारा 15 प्रतिकर राशि अवधारित करने के लिये एक व्यापक ढाँचा स्थापित करती है, जिसमें निम्नलिखित पर विचार किया जाता है: 
    • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: मानसिक आघात, यातना, पीड़ा और भावनात्मक कष्ट 
    • व्यावसायिक परिणाम: उत्पीड़न के कारण वृत्ति के अवसरों की हानि  
    • चिकित्सा व्यय : शारीरिक या मनश्चिकित्सीय उपचार के लिये किया गया व्यय 
    • वित्तीय क्षमता: प्रत्यर्थी की आय और वित्तीय हैसियत  
    • संदाय के तरीके: एकमुश्त बनाम किश्तों में संदाय की साध्यता  

धारा 16: प्रकाशन का प्रतिषेध  

  • धारा 16 कठोर गोपनीयता आवश्यकताओं को स्थापित करती है, जो निम्नलिखित के प्रकाशन या प्रकटीकरण को प्रतिषेध करती है: 
    • परिवाद की अंतर्वस्तु और कार्यवाही का विवरण। 
    • पक्षकारों और साक्षियों की पहचान और पते। 
    • समिति की सिफारिशें और नियोजक की कार्रवाइयां।  
  • इस धारा में एक प्रावधान शामिल है, जो पीड़ित महिला और गवाहों की पहचान का विवरण उजागर किए बिना प्राप्त न्याय के बारे में सूचना के प्रसार की अनुमति देता है। 

धारा 17: अनधिकृत प्रकाशन के लिये शास्ति 

  • धारा 17 गोपनीयता उपबंधों का उल्लंघन करने वाले परिवादों से निपटने वाले व्यक्तियों पर दण्ड अधिरोपित करती है, तथा प्रक्रियागत अखंडता बनाए रखने के लिये उत्तरदायी व्यक्तियों की जवाबदेही सुनिश्चित करती है। 

धारा 18: अपील का उपबंध 

  • अपील का अधिकार 
    • धारा 18(1) निम्नलिखित से व्यथित व्यक्तियों को व्यापक अपील अधिकार प्रदान करती है: 
    • विभिन्न उपधाराओं के अंतर्गत समिति की सिफारिशें 
    • सिफारिशों का कार्यान्वयन न होना 
    • गोपनीयता उल्लंघन उपबंधों के अधीन की गई कार्रवाई 
  • अपील समयरेखा 
    • धारा 18(2) सिफारिशों की तारीख से अपील दायर करने के लिये नब्बे दिन की परिसीमा काल स्थापित करती है, जो अपील की तैयारी के लिये पर्याप्त समय के साथ समय पर समाधान की आवश्यकता को संतुलित करती है। 

निष्कर्ष 

महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम का अध्याय 5 लैंगिक उत्पीड़न की परिवादों की जांच के लिये एक मजबूत और व्यापक ढाँचा स्थापित करता है। यह उपबंध एक ऐसी प्रणाली बनाने में विधायी बुद्धिमत्ता को प्रदर्शित करते हैं जो व्यथित के अनुकूल और प्रक्रियात्मक रूप से निष्पक्ष है, जिसमें वास्तविक परिवादों के प्रभावी निवारण को सुनिश्चित करते हुए दुरुपयोग को रोकने के लिये कई सुरक्षा उपाय सम्मिलित हैं।