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सिविल कानून
निर्धन व्यक्ति
« »06-Jun-2024
परिचय:
'निर्धन व्यक्ति' शब्द का अर्थ है- वह व्यक्ति जो अत्यधिक गरीबी से पीड़ित है।
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश XXXIII (33) के नियम 1 में निर्धन व्यक्ति को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, “यदि किसी व्यक्ति के पास विधि द्वारा निर्धारित शुल्क का भुगतान करने के लिये पर्याप्त साधन नहीं हैं, तो वह निर्धन व्यक्ति है”।
- जहाँ ऐसा कोई शुल्क निर्धारित नहीं है, वहाँ उस व्यक्ति के पास एक हज़ार रुपए मूल्य की संपत्ति से अधिक नहीं होनी चाहिये।
उद्देश्य:
- आदेश XXXIII को तीन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये अधिनियमित किया गया है, जिसमें शामिल हैं:
- किसी निर्धन व्यक्ति के वास्तविक दावों की रक्षा करना
- राजस्व के हितों की रक्षा हेतु
- प्रतिवादी को उत्पीड़न से बचाने के लिये
आदेश XXXIII के घटक:
- अनुमति के लिये आवेदन: कोई भी निर्धन व्यक्ति CPC, 1908 के नियम 1, XXXIII के अंतर्गत विधिक कार्यवाही का वित्तीय भार वहन किये बिना वाद चलाने अथवा अपना बचाव करने की अनुमति के लिये न्यायालय में आवेदन कर सकता है।
- आवेदन की जाँच: आदेश XXXIII के नियम 1A के अनुसार, प्रत्येक आवेदन की जाँच प्रथमतः न्यायालय के मुख्य न्यायिक अधिकारी द्वारा की जाएगी।
- आवेदन की विषय-वस्तु: निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद चलाने की अनुमति के लिये प्रत्येक आवेदन में वाद के संबंध में अपेक्षित विवरण शामिल होंगे।
आदेश XXXIII के प्रमुख नियम:
- आवेदन की अस्वीकृति: नियम 5
- न्यायालय निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद चलाने की अनुमति के लिये आवेदन को अस्वीकार कर देगा-
- जहाँ इसे निर्धारित तरीके से तैयार और प्रस्तुत नहीं किया गया है
- जहाँ आवेदक निर्धन व्यक्ति न हो
- जहाँ उसने आवेदन प्रस्तुत करने से पूर्व, दो महीने के भीतर किसी संपत्ति का धोखाधड़ी से निपटान किया हो अथवा उस व्यक्ति ने ऐसा कार्य, निर्धन व्यक्ति के रूप में अनुमति हेतु आवेदन के लिये किया हो
- जहाँ उसके आरोपों में कार्रवाई का कोई कारण प्रतीत न हो
- जहाँ उसने प्रस्तावित वाद की विषय-वस्तु के संदर्भ में कोई ऐसा करार किया है जिसके अधीन किसी अन्य व्यक्ति का हित, इस विषय-वस्तु में निहित है
- जहाँ आवेदन में आवेदक द्वारा लगाए गए आरोपों से ज्ञात होता है कि वाद वर्तमान में लागू किसी भी विधि द्वारा वर्जित होगा,
- जहाँ किसी अन्य व्यक्ति ने वाद के वित्तपोषण हेतु उसके साथ समझौता किया हो।
- न्यायालय निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद चलाने की अनुमति के लिये आवेदन को अस्वीकार कर देगा-
- अनुमति कहाँ दी जाती है: नियम 8-9 A:
- जहाँ निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद लाने के लिये आवेदन स्वीकृत किया जाता है, वहाँ उसे वाद में वाद-पत्र के रूप माना जाएगा तथा उस पर सामान्य तरीके से कार्यवाही की जाएगी।
- न्यायालय किसी निर्धन व्यक्ति को वाद हेतु एक अधिवक्ता नियुक्त कर सकता है, यदि उसका प्रतिनिधित्व कोई अधिवक्ता नहीं कर रहा हो।
- जहाँ अनुमति अस्वीकृत की जाती है: नियम 15:
- आवेदक को निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद दायर चलाने की अनुमति देने से प्रतिषेध करने वाला आदेश, आगामी समान आवेदन पर रोक लगाएगा।
- आवेदक को ऐसे अधिकार के संबंध में सामान्य तरीके से वाद प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता होगी।
- निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद करने की अनुमति वापस लेना: नियम 9
- न्यायालय, प्रतिवादी अथवा शासकीय अधिवक्ता के आवेदन पर आदेश दे सकता है कि वादी को निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद चलाने की अनुमति निम्नलिखित मामलों में वापस ले ली जाए:
- जहाँ वह मुकदमे के दौरान तंग करने वाले या अनुचित आचरण का दोषी पाया जाता है।
- जहाँ उसके पास ऐसे साधन हैं कि उसे निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद जारी नहीं रखना चाहिये।
- जहाँ उसने ऐसा समझौता किया है जिसके अंतर्गत किसी अन्य व्यक्ति का हित, वाद की विषय-वस्तु में निहित है।
- न्यायालय, प्रतिवादी अथवा शासकीय अधिवक्ता के आवेदन पर आदेश दे सकता है कि वादी को निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद चलाने की अनुमति निम्नलिखित मामलों में वापस ले ली जाए:
- न्यायालय शुल्क और लागत की वसूली: नियम 10-11
- जहाँ एक निर्धन व्यक्ति सफल होता है– जहाँ कोई निर्धन व्यक्ति वाद में सफल होता है, वहाँ न्यायालय, न्यायालय शुल्क एवं लागत की राशि की गणना करेगा तथा न्यायालय के आदेशानुसार पक्षकार से वसूल करेगा।
- जहाँ एक निर्धन व्यक्ति असफल होता है– जहाँ कोई निर्धन व्यक्ति असफल हो जाता है या वाद समाप्त हो जाता है, वहाँ न्यायालय उसे न्यायालय शुल्क और लागत का भुगतान करने का आदेश देगा।
- राज्य सरकार का अधिकार: नियम 12-13
- राज्य सरकार को न्यायालय शुल्क वसूलने का अधिकार है। इस उद्देश्य के लिये, उसे वाद में एक पक्ष माना जाता है।
- निर्धन व्यक्ति द्वारा बचाव: नियम 17
- कोई भी प्रतिवादी जो क्षतिपूर्ति अथवा प्रतिदावा प्रस्तुत करना चाहता है, उसे निर्धन व्यक्ति के रूप में ऐसा दावा प्रस्तुत करने की अनुमति दी जा सकती है।
- निर्धन व्यक्ति द्वारा अपील: आदेश 43-44
- निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद दायर करने के आवेदन को अस्वीकार करने वाले आदेश पर आदेश 43 नियम 1 के अंतर्गत अपील की जा सकती है।
- जो व्यक्ति अपील ज्ञापन के लिये न्यायालय शुल्क का भुगतान नहीं कर सकता, वह आदेश 44 नियम 1 के अंतर्गत निर्धन व्यक्ति के रूप में अपील कर सकता है।
निर्णयज विधियाँ:
- एम. एल. सेठी बनाम आर.पी.कपूर (1972):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि पक्षकारों को शामिल करने से संबंधित आदेश 1 नियम 10 के प्रावधान तथा उपस्थिति एवं अनुपस्थिति के परिणामों से संबंधित आदेश 9 के प्रावधान, CPC के आदेश XXXIII के अंतर्गत लागू होंगे।
- यूनियन बैंक ऑफ इंडिया बनाम खादर इंटरनेशनल कंस्ट्रक्शन (2001):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि आदेश XXXIII एक सक्षमकारी प्रावधान है जो निर्धन व्यक्ति को प्रारंभिक चरण में न्यायालय शुल्क का भुगतान किये बिना वाद दायर करने की अनुमति देता है।
- यदि वाद अस्वीकृत कर दिया जाता है, तो राज्य वादी द्वारा देय न्यायालय शुल्क वसूलने के लिये कदम उठाएगा तथा यह न्यायालय शुल्क, वाद की विषय-वस्तु पर प्रथम शुल्क होगा।
- श्रीमती लक्ष्मी बनाम विजया बैंक (2010):
- इस मामले में यह माना गया कि एक निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद दायर करने का अधिकार एक व्यक्तिगत अधिकार है और व्यक्ति की मृत्यु होने पर संपूर्ण कार्यवाही समाप्त हो जाती है।
- बाद में, उच्च न्यायालय ने मृतक के विधिक प्रतिनिधि द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया तथा उन्हें एक निर्धन व्यक्ति के रूप में याचिका दायर करने की अनुमति दे दी।
निष्कर्ष:
CPC का आदेश XXXIII, समानता और न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिये भारतीय विधिक प्रणाली की प्रतिबद्धता का प्रमाण है। निर्धन व्यक्तियों को न्यायालय शुल्क का भुगतान किये बिना वाद दायर करने की व्यवस्था प्रदान कर, यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि आर्थिक बाधाएँ किसी को भी विधिक उपाय प्राप्त करने के उनके अधिकार से वंचित न करें। हालाँकि इसके कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियाँ हैं, परंतु आदेश XXXIII समाज के सभी वर्गों के लिये न्याय तक पहुँच को बढ़ावा देने में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण बना हुआ है।